Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

महिलाओं पर एक शॉर्ट फिल्म, जो स्तब्‍ध कर देती है सबको

Published - Thu 05, Mar 2020

भारत की अदालतों में बलात्कार के करीब एक लाख मामले अब भी लंबित हैं। देश में औसतन बलात्कार के 90 मामले रोज होते हैं और इन मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने का प्रतिशत एक तिहाई से भी कम है। ये सब उस देश में हो रहा है जिसकी 80 फीसदी आबादी किसी न किसी देवी की पूजा करती है।

devi

काजोल, मुक्ता बर्वे, नीना कुलकर्णी, नेहा धूपिया, रमा जोशी, संध्या म्हात्रे, शिवानी रघुवंशी, श्रुति हासन और यशस्विनी दायमा जैसी उम्दा अदाकाराओं से सजी शॉर्ट फिल्म 'देवी' ने यूट्यूब पर रिलीज होते ही हलचल मचा दी है। फिल्म में गौर करने वाली बात ये है कि यहां हर महिला पुरूष प्रधान समाज के उसी मर्द की मर्दागनी का शिकार हुई हैं, जिसका हुंकार वे हमेशा से भरते आए हैं। 13 मिनट में 9 महिलाएं अपना दर्द रूबरू कराती हैं। ये वो टीस है, जिसको वे आज भी भुला नहीं पाई हैं। तभी अचानक, दरवाजे की घंटी बजती है, जो हर पीड़िता के दर्द को उकेरती है। दरवाजा खुलने के बाद जो सामने आता है, उसे देख हर कोई हक्का-बक्का रह जाता है....। 

भारत की अदालतों में बलात्कार के करीब एक लाख मामले अब भी लंबित हैं। देश में औसतन बलात्कार के 90 मामले रोज होते हैं और इन मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने का प्रतिशत एक तिहाई से भी कम है। ये सब उस देश में हो रहा है जिसकी 80 फीसदी आबादी किसी न किसी देवी की पूजा करती है। लार्ज शॉर्ट फिल्म्स के यूट्यूब चैनल पर रिलीज हुई फिल्म देवी ये सारे आंकड़े फिल्म खत्म होने के बाद बताती है।

फिल्म की कहानी
हिंदू माइथालॉजी के अनुसार देवी के 9 रूप होते हैं। 'देवी' में भी 9 औरतें हैं। एक कमरे में एक तरफ निम्न आयवर्ग की महिलाएं हैं। दूसरी तरफ कुछ संभ्रांत घराने की युवतियां हैं। यहां हर तरह की औरतें हैं... पढ़ी-लिखी, गूंगी, नशे में धुत्त, बुजुर्ग, हाउसवाइफ। कोई पूजा कर रही है तो कोई मटर छील रही है और एक किताब पढ़ने में मसरूफ है।  इन सबके साथ एक मूक बधिर लड़की भी है, जो टीवी पर समाचार देखने के लिए संघर्ष कर रही है। एक कमरे में अलग-अलग उम्र कह, मजहब की अमीर-गरीब महिलाओं को देखकर रोचकता बढ़ती है।
इसी बीच घर की डोर बेल बज जाती है और अचानक घर के शांत माहौल में हलचल शुरू हो जाती है। बाहर कौन है, ये जानने से पहले अंदर इस बात पर सभी औरतों में बहस शुरू हो जाती है कि जो आएगा वो इस कमरे में कैसे रहेगा? सब महिलाएं लड़ पड़ती हैं कि वो अब किसी को अंदर नहीं आने देंगी, क्योंकि यहां अब जगह नहीं हैं। जिंदगी की साधारण सी दिखने वाली बहस धीरे-धीरे दर्शक के मन में रिसती है। परत दर परत दर्द उघड़ता है और पता चलता है कि इनमें से हर एक देह मर्यादा के मर्दन का भी शिकार हुई है। हर महिला अपने साथ हुए गलत काम पर अपनी कहानी कहती हैं। किसी के साथ 15 साल में गंदा काम हुआ तो किसी के साथ 50 साल में। सबका दर्द भले एक सा है पर टीस सबकी अपनी है और इस घाव को कुरेद रही है वह आमद, जिसे भीतर लाने का साहस आखिर इनको करना ही होता है। ज्योति (काजोल) आखिर में ये कहते हुए दरवाजा खोलती हैं कि, जो भी होगा वो हमारे साथ इस कमरे में वैसे ही एडजस्ट करेगा। दरवाजा खुलता है और इस बार जो इनके साथ रहने आई है, उसे देखकर कलेजा मुंह को आ जाता है। नए मेहमान को देखकर सबकी आंखें भर आती हैं, क्योंकि घर में आई नई मेहमान एक 7-8 साल की बच्ची है। 

हर करेक्टर कमाल का, सभी का उम्दा अभिनय 
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से पहले यूट्यूब पर रिलीज इस लघु फिल्म को प्रियंका बनर्जी ने वाकई काफी संजीदगी से लिखा है और फिल्माया भी इसे बहुत संवेदनाशीलता के साथ है। सभी 9 अभिनेत्रियों की एक्टिंग कमाल की है। हर करेक्टर आपको आखिरी तक फिल्म को देखने के लिए विवश करेगा। काजोल और श्रुति हासन के चेहरे के हाव-भाव कमाल के हैं। फिल्म की कहानी में काजोल सूत्रधार की भूमिका में हैं। उनके मराठी संवाद असर करते हैं। श्रुति हसन, नीना कुलकर्णी और नेहा धूपिया की हालात से हड़बड़ी सहज लगती है। फिल्म में हर बात तफ्तीश से नहीं खुलती, ये दर्शकों के विवेक पर बहुत कुछ छोड़ देती है, लेकिन ये शॉर्ट फिल्म है और इसमें गागर में सागर भरने की कला दिखानी होती है यानी फिल्म आखिरी फ्रेम तक अपना संदेश मजबूती से सामने रखने में कामयाब होती है।

ज्यादा कुछ मत सोचिए 13 मिनट की मूवी है अभी देख डालिए, ये रहा वीडियो-


https://www.youtube.com/watch?v=2KP0aDTVtFI

 

Story by - Sunita kapoor