अदिति को बचपन से ही बाइक रेसिंग पसंद थी। उनके पिता ने उन्हें एक खिलौना बाइक भी लाकर दी थी। बड़ी होने पर उन्होंने पेशेवर तरीके से बाइक चलाना सीखा। अब वह रेसिंग चैंपियन बनने के लिए प्रशिक्षण ले रही हैं।
अपने शौक को अपना पेशा बनाना करियर का सबसे अच्छा विकल्प है। लोगों की तमाम आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए अदिति कृष्णन भी इसी राह चलीं। उन्हें बचपन से ही बाहक रेसिंग का शौक था। वह बंगलूरू में 10वीं की पढ़ाई कर रही हैं। बाइक के प्रति दिलचस्पी को देखते हुए उनके पिता ने बचपने में उनकों एक खिलौना बाइक लाकर दी। इसके बाद बाइक रेसर बनने की उनकी तमन्ना और बढ़ गई। एक बार शिक्षक ने पूंछा कि वह क्या बनना चाहती हैं तो अदिति ने जवाब दिया बाइक रेसर। इस पर उनके सहपाठियों ने उनका खूब मजाक बनाया और कहा यह तो लड़को का खेल है, लड़कियों का नहीं। हालांकि उनके माता-पिता ने उन्हें कभी भी नहीं रोका। स्कूल वाली बात जब उन्होंने अपने पिता को बताई तो उन्होंने कहा लड़कियां जो चाहे बन सकती हैं। इसके बाद पापा ने उन्हें पेशेवर रेसर बनने के लिए प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने रूकी कप चैंपियनशिप की तैयारी शुरू की। लेकिन एक प्रशिक्षण सत्र के दौरान उनकी उंगली टूट गई। डॉक्टर ने उंगली पर प्लास्टर चढ़ा दिया। उनके घर वालों ने घर लौटने को कहा। लेकिन अदिति ने हार नहीं मानी और हिस्सेदारी करने का फैसला किया। इस रेस में वह दूसरे स्थान पर रहीं। उसके बाद उनका नाम स्पेन जाने के लिए चयनीत हुआ। इससे न सिर्फ आदिति सपना साकार हुआ, बल्कि घर वालों को भी खुशी हुई। साथ ही यह धारणा भी टूटी कि लड़की बाइक रेसिंग नहीं कर सकती।
पढ़ाई भी और रेसिंग भी
हालांकि स्पेन की रेस में अदिति को आशानुरूप सफलता नहीं मिली, लेकिन उनके पिता ने उन्हें हौसला दिया। उन्होंने समझाया कि और मेहनत करो और अगले साल फिर वापसी करना। घर लौटने के बाद अदिति ने अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने अपने दोस्तों से नोट्स लिए औ पढ़ाई जारी रखी। पढ़ाई के साथ-साथ उनका प्रशिक्षण जारी है। प्रत्येक सप्ताहांत वह छह घंटे ट्रैक पर प्रैक्टिस करती हैं।
पापा का प्रोत्साहन
अदिति कहती हैं, 'कुछ महीने पहले, मैंने दो राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया था। उसमें करीब 60 लोग शामिल थे। मैंने शीर्ष चार में अपना स्थान बनाया, तब मुझे लगा कि मैं कुछ भी कर सकती हूं। हालांकि इस सफर में मुझे कई लोगों ने हतोत्साहित भी किया है। लेकिन पापा ने मुझसे खुद पर भरोसा रखने और उन लोगों को अनदेखा करने के लिए कहा।'
राष्ट्रीय चैंपियन बनना है लक्ष्य
वह कहती हैं, 'मैं दो साल से रेसिंग कर रही हूं, और इस दौरान बहुत कुछ सीखा है। मेरे अभिभावकों ने कभी मेरे साथ भेदभाव नहीं किया, न ही मुझे रेसिंग करने से रोका। हालांकि बाइक चलाते समय मुझे डर लगता है, लेकिन उतना ही मजा भी आता है। मेरा लक्ष्य राष्ट्रीय चैंपियन बनना है, जिसके लिए मैं खूब मेहनत कर रही हूं।'
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.