दुनिया में जहां एक ओर स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग ने यूएन में दिए अपने भाषण से सुर्खिया बटोरी हैं। वहीं भारत की बेटी रिद्धिमा पांडेय ने भी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर अपनी शिकायत दर्ज कराई है।
10-11 साल की उम्र खेलने कूदने की उम्र मानी जाती है। इस उम्र की एक लड़की हमारे पर्यावरण को बचाने के लिए संर्घष कर रही है। इसके लिए वह सिर्फ अपने देश से नहीं बल्कि पूरे विश्व से टकराने को तैयार है। दुनिया में जहां एक ओर स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग ने यूएन में दिए अपने भाषण से सुर्खिया बटोरी हैं। वहीं भारत की बेटी रिद्धिमा पांडेय ने भी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर अपनी शिकायत दर्ज कराई है। रिद्धिमा भी न्यूयॉर्क में यूएन के उस क्लाइमेट एक्शन समिट का हिस्सा थीं जिसमें ग्रेटा ने पर्यावरण को लेकर भाषण दिया था। इस समिट को पर्यावरण संरक्षण के नजरिये से बेहद अहम माना जा रहा है। पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान को लेकर 16 बच्चों ने सरकारों के खिलाफ यूएन में शिकायत दर्ज करवाई है। जिनकी उम्र 8 से 17 साल के बीच है। रिद्धिमा की बात करें तो उनकी उम्र महज 11 साल है और हरिद्वार के बीएम डीएवी पब्लिक स्कूल की छात्रा हैं।
न्यूयॉर्क से स्वदेश लौटी रिद्धमा
यूएन में अपनी शिकायत दर्ज करा कर 26 सितंबर की रात को रिद्धमा स्वदेश लौटी आईं। उनका कहना है कि पर्यावरण केवल भारत में ही नहीं बिगड़ रहा बल्कि यह एक विश्वव्यापी समस्या बनती जा रही है। हम इस मुद्दे को विश्व स्तर पर उठाएंगे। मुझे लगता है कि विश्व नेता हमारी अनदेखी नहीं कर पाएंगे। रिद्धिमा ने बताया कि न्यूयॉर्क में लोग उससे अकसर कहते थे कि तुम एक कार्यकर्ता बनने के लिए अभी बहुत छोटी हो। लेकिन रिद्धिमा को ऐसा नहीं लगता क्योंकि बाकी देशों में दूसरे बच्चे भी ऐसा कर रहे हैं।
केदारनाथ हादसे से लिया सबक
साल 2013 में उत्तराखंड में आई त्रासदी का सामना रिद्धिमा और उनके परिवार ने भी किया था। इसके बाद उनका ध्यान पर्यावरण की ओर गया। इससे सबक लेते हुए उसने पर्यावरण से हो रहे खिलवाड़ को रोकने की ठानी। तब से लेकर अब तक वह पर्यावरण के लिए काम कर रही हैं। साल 2017 में उसने भारत के नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में एक याचिका दायर कर अपनी चिंता जाहिर की थी। जिसमें शिकायत की थी कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। एनजीटी ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
नैनीताल से आकर हरिद्वार में बस गया परिवार
छह साल पहले, रिद्धिमा पांडेय का पिरवार नैनीताल से आकर हरिद्वार में रहने लगा। रिद्धिमा जब नैनीताल से हरिद्वार आईं थीं, तब यहां लाखों की तादाद में आने वाले कांवड़ियों की भीड़ के मौसम पर पड़ने वाले असर ने उनका ध्यान खींचा। उन्होंने हरिद्वार की अलग-अलग जगहों पर बारिश की वजह से होने वाली दिक्कतों का भी बारीकी से अध्ययन किया। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रही हरिद्वार की इस बेटी पर सभी को नाज है। स्थानीय लोग भी उनकी उपलब्धियों से बेहद प्रभावित हैं।
बड़ों को लेनी चाहिए प्रेरणा
पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर जिन 16 बच्चों ने यूएन में शिकायत लगाई है। उसमें अपने देश की बेटी का नाम सुनकर अच्छा तो लगता है लेकिन क्या इससे हम सबक लेते हैं। हम बड़े भी उससे सीख सकते हैं और पर्यावरण के सुधार में योगदान कर सकते हैं। स्कूल, कॉलेजों या फिर सभाओं में सिर्फ बड़े-बड़े बयानों से कुछ बदलने वाला नहीं है। रिद्धमा का कहना है कि केवल बातों से कुछ नहीं होने वाला। पर्यावरण के खिलाफ लड़ाई लड़कर लोगों को जागरूक करके ही बर्बाद होते पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
सिंगल यूज प्लॉस्टि हो बैन
रिद्धमा का मानना है कि आम भारतीय लोग को सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल करना बंद कर देना चाहिए। इससे बड़ा बदलाव आ सकता है। वह कहती हैं, 'अगर आप मदद करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमारी मुहिम का समर्थन कीजिए। दूसरी बात, प्लास्टिक के उत्पादों का इस्तेमाल बंद कर दीजिए। अगर हम उन्हें इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो फिर कंपनी ऐसे उत्पाद बनाएंगी ही नहीं।'
Story by - Rohit Pal
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.