संध्या कटनी रेलवे स्टेशन पर 65 पुरुष कुलियों के बीच वह अकेली महिला कुली हैं। उनका मानना है, काम कोई छोटा नहीं होता, सोच और संकोच छोटा होता है। संध्या का कहना है, कि वह कुली का करके अपने बच्चे को पढ़ा-लिखाकर भारतीय सेना में भेजना चाहती हैं।
संध्या...अपने इस नाम के मायने को मात देने वाली बुंदेलखंड की एक महिला। जिक्र सिर्फ इसलिए कि घर-परिवार और समाज के लिए वह नया सवेरा बनी हुई है। वह कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली नंबर-36 के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है और रेलवे के लिए भी कुछ खास है। महिला सशक्तीकरण की बात आते ही उसका नाम लिया जाता है। वह अपना पूरा नाम संध्या मारावी बताती है। बांह पर पहने पीतल के कुली नंबर-36 के बिल्ले को भी दिखाती है मानो नाम और काम के 36 के आंकड़े को समझा रही हो। 65 पुरुष कुलियों के बीच वह अकेली महिला कुली है।
संध्या को घर से कटनी रेलवे स्टेशन तक आने के लिए जबलपुर से रोज 45 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। 2016 में बीमारी से पति की मौत के बाद पहले यह मजबूरी थी। अब लक्ष्य बन गया है। वह कहती है, काम कोई छोटा नहीं होता, सोच और संकोच छोटा होता है। संध्या की मंशा है कि उसके बच्चे पढ़-लिखकर भारतीय सेना में शामिल हों। तीन छोटे बच्चों के अलावा घर में बूढ़ी सास भी हैं। अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच के राष्ट्रीय महासचिव नसीर अहमद सिद्दीकी का कहना है कि बुंदेलखंड में संध्या जैसे हौसलों वाली महिलाओं की खासी तादाद है। उन्हें अवसर और प्लेटफार्म की जरूरत है।
पति की मौत के बाद भी हिम्मत नहीं खोई
मूलरूप से मध्यप्रदेश के जबलपुर की रहने वाली संध्या मारावी के मजदूर पेशा पति की मौत बीमारी के चलते 22 अक्तूबर 2016 को हो गई थी। तीन छोटे बच्चों के अलावा कुनबे में उसकी बूढ़ी सास भी हैं। पति की मौत के बाद विधवा हो गई संध्या ने अपनी हिम्मत और हौसला नहीं खोया। कुनबे की परवरिश का जिम्मा उसी के कंधों पर आ पड़ा। पेट की भूख और बच्चों संग बूढ़ी सास की परवरिश की खातिर इस बोझ को उसने अपने सिर पर उठा लिया और कुली बन गई।
रोजाना खुद पढ़ाती हैं तीनों बच्चों को
महिला कुली के रूप में संध्या जनवरी 2017 से काम कर रही है। उसके तीन बच्चों 8 वर्षीय साहिल, 6 वर्षीय हर्षित और 4 वर्ष की पुत्री पायल है। संध्या ने खुद 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। वह अपने तीनों बच्चों को प्राइमरी स्तर की शिक्षा रोजाना घर पर ही दे रही हैं। ड्यूटी से आने के बाद बच्चों को नियमित रूप से पढ़ाती हैं। संध्या का कहना है कि वह नहीं चाहती की उसके बच्चे भी अपने पिता भोलाराम मरावी या मां संध्या की तरह किसी का बोझा ढोएं। संध्या के पति भी कुली थे।
भर्ती में 50 किलो वजन के साथ 200 मीटर की दौड़
रेलवे विभाग ने कुली की भर्ती की शर्तों में कुछ बदलाव किए हैं। पहले जहां कुली का लाइसेंस/बिल्ला हासिल करने के लिए 8वीं पास योग्यता निर्धारित थी उसे अब बढ़ाकर 10वीं (हाईस्कूल) कर दी है। भर्ती नियमों में भी बदलाव हुआ है। साथ ही साइकिल चलाना भी अनिवार्य है। भर्ती के समय 50 किलो वजन लेकर 200 मीटर दौड़ाया जाता है। कुलियों का बीमा कराने की भी रेलवे की योजना है।
200 मीटर तक एक रुपये किलो भाड़ा
कुलियों का भाड़ा भी रेलवे विभाग ने तय कर रखा है। मौजूदा समय में यह दर एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से है। भाड़ा ढोने की दूरी भी रेलवे विभाग ने 200 मीटर निर्धारित कर रखी है। यानी सामान का वजन जितना होगा, उसी दर से यात्री को मेहनताना अदा करना होगा। निर्धारित दर से अधिक लेने पर रेलवे कुली के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है।
कोरोना में कुलियों की भी रही जेब खाली
कोरोना संक्रमण के चलते पूरे देश में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान जहां ट्रेनों का संचालन ठप हुआ तो कुलियों की हालत भी काफी पतली हो गई। रोज कमाने-खाने वाले लाल वर्दीधारी मजदूर पेशा कुली कोरोना संक्रमण के दौरान आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट गए। ट्रेनें बंद रहीं और रेलवे स्टेशन वीरान रहे। अब कुछ ट्रेनों के शुरू हो जाने से इनकी जिंदगी फिर आहिस्ता-आहिस्ता पुराने ढर्रे पर लौटने लगी है और रोजी-रोटी भी चलने लगी है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.