डॉ. अदिति पंत एक समुद्र-विज्ञानी हैं और अंटार्कटिका की यात्रा करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उन्होंने उस समय विज्ञान और वो भी समुद्र विज्ञान में उच्च शिक्षा की डिग्री ली, जब भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी महिलाओं को एक सम्मानित शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। डॉ. पंत ने इन बाधाओं को पार किया। वह महत्वाकांक्षी महिला वैज्ञानिकों की रोल मॉडल हैं।
सन् 1981 में जुलाई के महीने में दिल्ली में महासागर विकास विभाग बनाया गया। इसका महत्व इसी बात से साफ हो जाता है कि यह विभाग सीधे प्रधानमंत्री की देख-रेख में आता था। उस समय प्रधानमंत्री थीं श्रीमती इंदिरा गांधी। उन्होंने इस विभाग को अंटार्कटिका में जाने और एक गुप्त योजना पर काम करने का आदेश दिया। इस ऑपरेशन का नाम रखा गया "ऑपरेशन गंगोत्री"। दरअसल यह मिशन दक्षिण गंगोत्री की स्थापना था, जो अंटार्कटिका में भारत का पहला स्टेशन है। इसको गुप्त रखने का एक ही कारण था कि वहां के मौसम के बारे में सही जानकारी नहीं थी और पता नहीं था कि यहां के अनिश्चित वातावरण में यह ऑपरेशन सफल होगा भी या नही। दो बार वहां कैंप लगाए गए, जिनमें पुरूष वैज्ञानिकों ने भाग लिया। फिर सोचा गया कि वहां की कठिन परिस्तिथितियों में क्या महिलाएं रह सकती हैं? चार महीने के इस ऑपरेशन के लिए उनको अपने घर बार से बहुत दूर रहना होगा, वहां तूफानी हवाओं, कड़ाके की ठंड का सामना करना होगा और स्टेशन की देखभाल करने का जिम्मा भी खुद के दम पर उठाना होगा। मुश्किलें बहुत थीं और समस्या यह थी कि तब हर क्षेत्र में पुरूषों का दबदबा था। सिर्फ भारतीय पुरुष ही नहीं, बल्कि विदेशी मर्द भी महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे और दंभ से भरे हुए थे। एक किताब में इस बारे में जिक्र भी आया है कि जब अंटार्कटिका के अमेरिकी स्टेशन मैकमुर्डोपर पर दो अमेरिकी महिला वैज्ञानिक पहुंचीं तो वहां मौजूद कोई भी पुरूष उनके स्वागत के लिए बाहर तक नही आया। ऐसे में तय था कि जब एक अकेली भारतीय महिला वहां जाएगी तो उसे भी अपने साहसिक काम के साथ-साथ मानसिक दबाब भी सहना पड़ेगा। लेकिन इसकी भी प्रवाह किए बिना तीसरे कैंप (1983-84) के लिए डॉ. अदिति पंत का चुनाव हुआ, जो समुद्र विज्ञान के अनुसंधान में निपुण थीं। इस तरह अंटार्कटिका पर कदम रखने वालीं पहली भारतीय महिला बनीं डॉ. अदिति पंत। भारतीय अंटार्कटीक कार्यक्रम में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने अंटार्कटिका पुरस्कार से सम्मानित किया था।
गरीब घर में हुआ जन्म
अदिति पंत का जन्म भारत के नागपूर में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। बहुत ही कम उम्र में उनका रूझान विज्ञान की तरफ हो गया था। थोड़ी बड़ी हुईं तो वह विज्ञान में उच्च डिग्री हासिल करना चाहती थीं और इसके लिए किसी बिवदेशी विश्वविद्यालय में दाखिला लेना चाहती थीं, लेकिन उनका परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था।
"द ओपन सी" ने दिखाई मंजिल
पुणे विश्वविद्यालय में अदिति ने बीएससी में दाखिला ले लिया और लगन से पढ़ने लगीं। एक दिन अचानक उन्हें उनके एक परिवारिक मित्र ने एलिस्टार हार्डी की किताब "द ओपन सी" पढ़ने के लिए दी। इसे पढ़ते ही अदिति की सोच का मानो पूरा संसार ही बदल गया। उनका मन समुद्र को जानने के लिए मचल पड़ा और उन्होंने तब निश्चिय किया कि वह अब समुद्रशास्त्र की पढ़ाई करेंगी।
छात्रवृत्ति ने आगे पढ़ने का रास्ता खोल दिया
समुद्र विज्ञान में एमएस करने के लिए उन्होंने हवाई विश्वविद्यालय में अप्लाई किया और साथ ही अमेरिकी सरकार से छात्रवृत्ति के लिए आवेदन कर दिया। उस दिन उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें हवाई विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए अमेरिकी सरकार का अनुदान स्वीकृति पत्र मिला। दरअसल अदिति ने मछली नेटवर्क मे प्रकाश संश्लेषण पर शोध करने की बात अमेरिकी सरकार को लिखी थी और बताया था कि वह "द ओपन सी" पुस्तक में कही गई समुद्री संरचना पर काम करना चाहती हैं। समुद्रशास्त्र में एसएस करने के बाद अदिति ने लंदन के वेस्टफील्ड कॉलेज में अपनी पीएचडी पूरी की। उनकी पीएचडी थीसिस समुद्री शैवाल पर थी। शोध करने के बाद उनके पास तीन प्रयोगशालाओं में काम करने के प्रस्ताव थे। इन उच्च प्रयोगशालाओं में काम करने का अदिति का सपना पूरा होने जा ही रहा था कि इस बीच उनकी मुलाकात सीएसआईआर के वरिष्ठ शोधकर्ता प्रोफेसर एनके पणिक्कर से हुई और अदिति गोवा में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान में शामिल होने के लिए भारत लौट आईं।
जहां पढ़ीं, वहीं उच्च पद पर आसीन हुईं
अदिति ने तटीय अध्ययन किया है और भारत के पूरे पश्चिमी तट की यात्रा की है। वह राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे विश्वविद्यालय और महाराष्ट्र विज्ञान अकादमी सहित संस्थानों में प्रमुख पदों पर रह चुकी हैं।
महिला वैज्ञानिकों की रोल मॉडल
अदिती पंत 1983 में भारत के अंटार्कटिका अभियान का एक हिस्सा थीं और अंटार्कटिका जाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उन्होंने उस समय विज्ञान और वो भी समुद्र विज्ञान में उच्च शिक्षा ली, जब भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी महिलाओं को एक सम्मानित शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। डॉ. पंत ने इन बाधाओं को पार किया और आज भी वह महत्वाकांक्षी महिला वैज्ञानिकों की रोल मॉडल हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.