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एक डॉक्टर जो बच्चियों का जीवन संवार रही हैं

Published - Sun 29, Dec 2019

पंजाब की डॉ. हरशिंदर कौर की जिंदगी कन्या भ्रूण हत्या की एक घटना ने बदल दी। इसे रोकने को ही जीवन का उद्देश्य बना चुकीं डॉ. कौर अब तक 415 कन्याओं का जीवन संवार चुकी हैं।

डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है। इस वाक्य को पंजाब की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. हरशिंदर कौर और उनके पति डॉ. गुरपाल सिंह पूरा कर रहे हैं। दोनों  पति-पत्नी कन्याभ्रूण हत्या रोकने की मुहिम छेड़े हुए हैं और अपना जीवन इसी को समर्पित कर दिया है। आज वह कन्या हत्या रोकने के लिए अपनी ओर से प्रयासरत्त हैं और जीवन को जागरूक भी कर रहे हैं।

एक घटना ने बदला जीवन
पंजाब। बात लगभग पांच साल पुरानी हैं। दोनों पति-पत्नी एक गांव में लगे मेडिकल कैंप में भाग लेने जा रहे थे। गांव के बीच एक स्थान पर जहां मृत पशुओं को फेंका जाता है, वहां उन्होंने किसी मासूम की चित्कार सुनी। जब दोनों रुके तो उनहोंने देखा कि वहां एक नवजात बच्ची पड़ी थी और कुत्ते उसे नोंच रहे थे। ये देखकर दोनों हैरान रह गए। जब तक बच्ची को बचाने का प्रयास करते, बच्ची मर चुकी थी। गांव पहुंचकर ग्रामीणों से इस बारे में पूछा, तो गांव वालों ने ऐसी किसी भी घटना से इंकार किया। हैरानी तो तब हुई, जब ग्रामीण इस गंभीर मुद्दे पर उदासीन थे। एक ग्रामीण व्यक्ति ने उन्हें बिना किसी पछतावे के बताया कि यह बच्ची किसी गरीब परिवार की होगी, जिन्हें बेटी नहीं चाहिए। बस यहीं से उनके जीवन का मकसद बदल गया और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ दोनों ने अभियान चलाने की पहल की।

गांव-गांव शुरू हुआ सफर
घटन से विचिलत डॉ. दंपती ने कन्या भ्रूण हत्या के समाधान के लिए गांव-गांव जाना शुरू किया और लोगों को प्रजजन संबंधी क्रोमोजोम की भूमिका के बारे में जानकारी देना शुरू किया। अब दोनों ही पति-पत्नी सामाजिक आयोजनों, गांव की सभाओं, धार्मिक सभाओं, और शादी के समारोह के दौरान लोगों के बीच चर्चा करने लगे। सबसे पहले दोनों ने पटियाला के एक गांव को केंद्र बनाया जहां पांच साल तक लोगों को समझाने में बिताए। यहां उनके अभियान का ये फायदा हुआ कि जहां पहले लड़कियों और लड़कों का अनुपात 845/1000 था वह बढ़ कर 1013/1000 तक आ गया।

करनी पड़ी खास मशक्कत
डॉ. कौर ने गांव वालों को मानव प्रजनन के बारे में बताने के लिए रंगीन धागों का इस्तेमाल किया। मूल बातें बताना शुरू किया। कानूनी जागरुकता फैलायी। इसक लाभ ये हुआ कि लोगों ने इस बात को समझा और अपनाना शुरू किया। डॉ कौर ने अभियान के दौरान देखा कि गांव के लोग बेटियों को मारने और फेंकने में जरा भी नहीं डरते थे, उनके लिए ये सब करना बेहद आम था। बिना किसी झिझक के वो आपको वो जगह दिखा देते थे, जहां भ्रूण फेंका गया है। पीढ़ियों से चली आ रही रूढ़िवादी सोच के लड़ने और ग्रामीणों को समझाना मुश्किल था। डॉ. कौर को अपने अस्पताल से सिर्फ इसलिए निकाल दिया गया था कि उन्होंने अपने ही राज्य के विरोध में बोला था। लेकिन वो रुकी नहीं। ग्रामीण आयोजनों से लेकर मीडिया संचार मंचों पर भाषण देना शुरू किया।  धीरे-धीरे उनके काम ने जोर पकड़ा और उन्हें ग्रामीण इलाकों के उत्थान के लिए अपने जैसे और भी लोगों का सहयोग मिलने लगा।

मिली पहचान
भ्रूण हत्या के विरुद्ध उठायी गयी डॉ. कौर की आवाज, जेनेवा के मानवाधिकार सम्मलेन, ऑस्ट्रेलिया के संघीय संसद, कनाडा की संसद और टोरंटो के अन्तराष्ट्रीय सम्मेलन तक पहुंची। उन्होंने राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय मंच पर कई पुरस्कार भी जीते हैं। केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत 100 सफल महिलाओं की सूची में भी इनका नाम दर्ज है।

महिला मुद्दो पर भी कर रही हैं काम
डॉ. कौर कन्या भ्रूण हत्या के अलावा, लिंग-भेद, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, दहेज आदि विषयों पर भी काम कर रही हैं। उनका अभियान कनाडा तक पहुंच चुका है। कनाडा में उनके द्वारा नो डाऊरी अभियान शुरू किया गया है, जिसे अन्य देशो में भी फैलाया जा रहा है, जहां भारतीय अधिक संख्या में रहते हैं। अब तक, करीब 55,000 लड़के और लड़कियों ने दहेज़ लेने और देने से परहेज करने का संकल्प किया है। कनाडा, युएसए, होंगकोंग, मलेशिया, युरोप,और भारत के विद्यार्थियों ने मेरा साथ दिया और अब तक करीब 800 बच्चों ने संकल्प को पूरा किया है।”

बनाया ट्रस्ट

साल 2008 में, अपने पति और दोस्तों के साथ मिल कर डॉ. कौर ने ज़रूरतमंद लड़कियों को अच्छी शिक्षा देने के मकसद से ‘डॉ. हर्ष चैरिटेबल ट्रस्ट’ की शुरुआत की। पिछले 10 सालों में, इस ट्रस्ट ने 415 लड़कियों को पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद देने की जिम्मेदारी उठायी है। कुछ लड़कियां किसान समुदाय से आती हैं जहां घर के मुखिया ने आत्महत्या कर ली है। इनमें दो लड़कियाँ कारगिल शहीद की बेटी भी थीं जिन्हें ट्रस्ट ने तब तक वित्तीय सहायता प्रदान की, जब तक इन शहीदों की पत्नी को सरकार द्वारा मुआवजा नहीं मिला। आज भी वे पूरी दुनिया से मिल रहे समर्थन से अपने देश के कई हिस्सों में बदलाव लाने में जुटी हैं।