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भारत की इकलौती महिला कमांडो ट्रेनर हैं सीमा, नहीं लेती फीस

Published - Sun 08, Mar 2020

सीमा राव भारत की इकलौती महिला कमांडो ट्रेनर हैं। वह पिछले 20 सालों से बिना किसी फीस के तमाम सेना के जवानों को कमांडो ट्रेनिंग दे रही हैं। इनकी इतनी सारी उपलब्‍धियां है कि शायद आप इनको गिनते-गिनते थक जाएं। सीमा एक सर्टिफाइड डॉक्‍टर हैं। इसके साथ ही उन्‍होंने क्राइसिस मैनेजमेंट में एमबीए की डिग्री भी ले रखी है। सीमा मिलिट्री मार्शल आर्ट्स में 7-डिग्री ब्लैक बेल्ट होल्डर हैं।

seema rao

नई दिल्ली। दुनिया में मार्शल आर्ट की सबसे कठिन ट्रेनिंग सर्टिफिकेट होती है 'जीत कुने दो'। इसे ब्रूस ली ने वर्ष 1967 में शुरू किया था। अब तक यह सर्टिफिकेट दुनिया की जिन 10 महिलाओं ने हासिल किया है, उसमें एक नाम भारत की डॉ. सीमा राव का भी है। वो सिर्फ कमांडो ट्रेनर ही नहीं, वो फायरफाइटर भी हैं, फिल्मकार भी हैं, उनको स्कूबा डाइविंग भी आती है और वो मॉडल भी हैं। सीमा मिसेज इंडिया वर्ल्ड की फाइनलिस्ट भी रह चुकी हैं। वह माउंटेनेयररिंग और रॉक क्लाइमिंग में भी कई मेडल हासिल कर चुकीं हैं। उन्हें वर्ल्‍ड पीस अवॉर्ड और प्रेसीडेंट वॉलंटियर सर्विस अवॉर्ड भी मिल चुका है। ब्‍यूटी विद ब्रेन जुमले का बेमिसाल उदाहरण हैं डॉ. सीमा राव। वह दुनिया की उन तमाम औरतों के लिए मिसाल हैं, जो अपने आप को कमजोर आंकती हैं। वह पिछले 20 सालों से बिना किसी फीस के सेना के जवानों को कमांडो ट्रेनिंग दे रहीं हैं। सीमा और उनके पति ने एनएसजी ब्‍लैक कैट से लेकर मार्कोज और गॉर्ड जैसी सर्वश्रेष्ठ भारतीय सेना को प्रशिक्षण दिया है। इसके साथ ही सीमा मार्शल आर्ट्स पर बनी देश की पहली फिल्म 'हाथापाई' की प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं और इसमें उन्‍होंने एक रोल भी किया है। सीमा इंडियन पैरा स्पेशल फोर्सेस, कमांडो विंग, विभिन्न अकादमियों, नेवी मारकोस मरीन कमांडो, एनएसजी, वायु सेना गरुड़, आईटीबीपी, पैरामिलिट्री और पुलिस के जवानों को प्रशिक्षण देती हैं।

पिता जैसे बनने का है ख्वाब

सीमा के मुताबिक, 'मैं बचपन से ही अपने पिता जैसा बनना चाहती थी। मेरे पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। मैं हमेशा से देश के लिए कुछ करना चाहती थी। फिर मेरी मुलाकात मेरे पति मेजर दीपक राव से हुई। एक व्यक्ति में मुझे मेरी पूरी दुनिया मिल गई। मात्र 18 साल की उम्र में हमें यह महसूस हो चुका था कि हम अपनी पूरी जिंदगी एक-दूसरे के साथ बिताना चाहते हैं। मेरे पति जानते थे कि मैं खुद को सशक्त करना चाहती थी और साथ ही देश के लिए भी कुछ करना चाहती हूं। मेरी इस चाहत की मजबूत नींव उन्होंने डाली मुझे मार्शल आर्ट्स सिखाकर। सुबह से शाम तक हम लोग अपना रूटीन का काम करते और रात में घर लौटने के बाद मार्शल आर्ट्स। मार्शल आर्ट्स सीखने के बाद मैं दिन-ब-दिन ज्यादा शक्तिशाली महसूस करने लगी थी। एक बार पुणे में हमारी मुलाकात आर्मी के कुछ लोगों से हुई जो सुबह के वक्त ट्रेनिंग कर रहे थे। हमने उन्हें अपना परिचय दिया और उनसे पूछा कि क्या हम उन्हें अपनी ट्रेनिंग दिखा सकते हैं? उस एक हां के बाद से हमने आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा है। हमने आर्मी के सैनिकों को उसके बाद से ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। सीमा ने पुरुष प्रधान क्षेत्र में खुद को हमेशा साबित किया है। परन्तु उन्हें आज भी ट्रेनिंग के दौरान कई ऐसे जवान मिल जाते हैं जो महिला से सीखना नहीं चाहते। सीमा ने बताया, 'मुझे न सिर्फ उन्हें अनुशासन में रखना पड़ता है बल्कि अपनी काबिलियत से उनका भरोसा भी जीतना होता है। बहरहाल मैं हमेशा अपने प्रशिक्षित कमांडो का सम्मान पाने में सफल हो ही जाती हूं। अकसर लोग कहते हैं कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है, पर मैंने कभी अपने महिला होने को अपने सपनों की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। एक समाज आगे तभी बढ़ सकता है, जब पुरुष और महिला दोनों एक जैसे मजबूत हों और जहां दोनों को एक जैसा सम्मान मिले।'

राहें हमेशा नहीं रही आसान

सीमा बताती हैं, जैसे-जैसे इस ट्रेनिंग के प्रति हमारा रुझान बढ़ता गया, मेरे सास-ससुर की हमसे दूरियां बढ़ने लगीं। वो इस बात का स्वीकार नहीं कर पाए कि उनकी बहू इस तरह का काम करे। उन लोगों ने हमें घर छोड़ने के लिए कहा। कुछ वक्त हमें उस छोटे-से क्लीनिक में रहना पड़ा, जहां मैं मरीजों को देखती थी। हमारे पास रहने के लिए इसके अलावा कोई और जगह नहीं थी। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मुझे अपने जेवर भी बेचने पड़े। पर, मुझे इन बातों का आज भी कोई अफसोस नहीं है। मैंने अपनी युवावस्था पहाड़ों, रेगिस्तान और एलओसी पर जवानों को ट्रेनिंग देने में बिताई है और मैंने हर एक पल का पूरा मजा लिया है।

खुद के बच्चे की बजाय एक बेटी ली गोद

जब परिवार बढ़ाने की बात आई तो अपना बच्चा पैदा करने की जगह हमने एक बेटी को गोद लेने का निर्णय लिया। मुझे अपने जुनून से किसी तरह का समझौता नहीं करना पड़ा। आज हमारी बेटी डॉक्टर है और वो हर दिन गर्व से हमारा सिर ऊंचा करती है।

पर्सनल लाइफ की कुर्बान

अपनी ड्यूटी के चलते सीमा अपने पिता के अंतिम संस्‍कार तक में शामिल नहीं हो पाई थीं। इसके साथ ही उन्‍होंने अपनी पर्सनल लाइफ तक कुर्बान कर दी। सीमा का जज्‍बा देखते ही बनता है। एक बार एक हमले में उनको इतनी गंभीर चोट आई थी कि कुछ टाइम के लिए उनकी याददाश्त तक चली गई थी। काफी इलाज के बाद वो फिर से नॉमर्ल हो पाई थीं।

पति भी करते हैं पूरी मदद

लगभग 2 दशक से ये दम्पति क्‍लोज क्‍वाॅटर बैटल में ट्रेनिंग दे रहा है। सीमा कॉम्बेट शूटिंग इंस्ट्रक्टर हैं। इनके इस कार्य में सीमा के पति दीपक राव भी उनकी मदद करते हैं। दीपक अभी तक लगभग 15 हजार जवानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। सीमा को वह दौर भी देखना पड़ा, जब वह गंभीर आर्थिक समस्या से जूझ रहीं थीं। इसके बावजूद इस दंपति ने कभी अपनी ट्रेनिंग की फीस नहीं ली। सीमा के पति दीपक राव को वर्ष 2011 में राष्ट्रपति की ओर से उन्हें भारतीय सेना में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए रैंक ऑफ इंडिया के अवार्ड से सम्मानित किया गया। आपको बता दें कि, ये अवार्ड अभी तक सिर्फ दो खिलाड़ियों को ही मिला है। महेंद्र सिंह धोनी और अभिनव बिंद्रा।

शुरू की प्रशिक्षण के लिए एकेडमी

सीमा और दीपक ने मिलकर 'अनआर्म्ड कमांडो कोम्बेट अकेडमी' की स्थापना की है, जो शीर्ष मिलिट्री मार्शल आर्ट अकेडमी है। इसमें सेना के जवानों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ विभिन्न ट्रेनिंग प्रोग्राम की किताबें भी प्रकाशित होती हैं। इसी अकेडमी में सामान्य लोगों के लिए 'अनआर्म्ड काम्बेट ब्लेकबेल्ट प्रोग्राम' भी चलता है। सीमा के मुताबिक, अनआर्म्ड काम्बेट ब्लेकबेल्ट प्रोग्राम के साथ हमने अब तक सात किताबें प्रकाशित की हैं, जिनमें से तीन लिमिटेड एडिशन की किताबें हैं, जो सिर्फ भारतीय सेना के लिए विशेष रूप से प्रयोग की जा रही हैं। हमारी एक किताब, 'एनसाइक्लोपीडिया ऑफ क्लोज कोम्बेट ऑप्स' दुनिया की पहली अनोखी एनसाइक्लोपीडिया है, जिसने एफबीआई और इंटरपोल के पुस्तकालयों में स्थान हासिल किया है।