पूर्णा ने हाल ही में अंटार्कटिका महाद्वीप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी विन्सन मासिफ (4,987 मीटर) को महज 18 साल की उम्र में ही फतह कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
'सफलता पाने के लिए, आपको यह विश्वास होना चाहिए कि आप किसी से कमतर नहीं हैं' ऐसा मानना है महज 13 साल की उम्र में देश की सर्वोच्च शिखर श्रेणी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली मालावथ पूर्णा का। पूर्णा ने हाल ही में अंटार्कटिका महाद्वीप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी विन्सन मासिफ (4,987 मीटर) को महज 18 साल की उम्र में ही फतह कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वह ऐसा करने वाली सबसे कम उम्र की पर्वतारोही बन गई हैं। साथ ही वह दुनिया की पहली और सबसे कम उम्र की आदिवासी महिला बन गई, जिसने छह महाद्वीपों की छह सबसे ऊंची पर्वत चोटियों पर कदम रखा है। पूर्णा का लक्ष्य दुनिया के सातो महाद्वीपों के सभी लंबे शिखर को फतह करना है। जिसके वह बेहद करीब हैं।
पिता जी चाहते थे अच्छी शिक्षा दिलाना : पूर्णा जब 10 वर्ष की थी तब उनके पिता देवीदास मालावथ ने उन्हें तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन सोसायटी (टीएसडब्ल्यूआरइआईएस) को ज्वॉइन करने के लिए प्रोत्साहित किया था। क्योंकि वह चाहते थे कि उनकी बेटी गांव के परिवेश से दूर रहकर बेहतर शिक्षा ग्रहण करें। पूर्णा कहती है कि 'गांव से बाहर निकल कर पढ़ने के बारे में मैंने सपने भी नहीं सोचा था। अपने नए स्कूल में जाकर मुझे ऐसा अहसास हुआ कि जैसे एक नई जन्मी तितली उड़ना सीख रही हो। वहीं पर पूर्णा को एक पर्वतारोहण वर्कशॉप के लिए चुना गया था। वहां पर उन्हें पेशेवर पर्वतारोही शेखर बाबू ने प्रशिक्षित किया।
मैं कर सकती हूं तो आप क्यों नहीं : पूर्णा कहती हैं कि 'मैं अपनी कहानी को अधिक से अधिक लोगों के साथ साझा करना चाहता हूं क्योंकि अगर मैं यह कर सकती हूं, तो आप भी कर सकती हैं।' पूर्णा ने अब तक कई बड़े-बड़े पर्वतों की चोटियों को फतह किया है। इसमें एवरेस्ट (एशिया, वर्ष 2014), माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका, 2016), माउंट एल्ब्रस (यूरोप, 2017), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका, 2019) माउंट कारस्टेंसज (ओशिनिया क्षेत्र, 2019) और माउंट। विंसन मासिफ (अंटार्कटिका, 2019) हैं। वह सात महाद्वीपों में स्थित सातवें सबसे लंबे शिखर के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के बेहद करीब हैं।
अपर्णा थोता ने लिखी है पूर्णा की बायोग्राफी : मालावथ पूर्णा की जिंदगी से प्रभावित होकर अपर्णा थोता ने 'पूर्णा' नाम से एक पूरी किताब लिख डाली। इस किताब में उन्होंने पूर्ण के जन्म स्थान तेलंगाना के निजामाबाद जिले के 'पकल' गांव से लेकर उनके माउंट एवरेस्ट को फतह करने तक की यात्रा के बारे में लिखा है।
बन चुकी है फिल्म : पूर्णा की जिंदगी पर आधारित 'पूर्णा : करेज हैज नो लिमिट' नामक फिल्म राहुल बोस ने बनाई है। यह फिल्म साल 2017 में रिलीज हुई थी। राहुल ने इसमें पूर्णा के संघर्ष और उनके सफलता की दास्तां को दिखाया है। खेती किसानी करने वाले पूर्णा के माता-पिता (लक्ष्मी और देवीदास) ने भी कभी ये नहीं सोचा होगा कि उनकी बेटी कुछ ऐसा कर दिखाएगी, जिससे उनका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा और उसके कारनामों पर फिल्म बनेगी, पुस्तक लिखी जाएगी।
Story by - Rohit Pal
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.