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पिता हुए लाचार, तो उच्च-शिक्षित बेटी बन गयी किसान

Published - Tue 04, Feb 2020

महाराष्ट्र के छोटे से जिले नासिक के लोनवाड़ी गांव की ज्योत्सना एक पढ़ी-लिखी सफल किसान हैं और अपने पारंपरिक व्यवसाय को बखूबी चला रही हैं।

Jyotsna

 

नई दिल्ली। वक्त के आगे किसी की नहीं चलती। वक्त की मार के आगे सबकुछ धरा रह जाता है। कुछ ऐसा ही महाराष्ट्र के नासिक जिले के लोनवाड़ी गांव के विजय गौंड के साथ हुआ। पढ़-लिखकर विजय वकील बनना चाहते थे, लेकिन परिवार की हालत देखते हुए उनका सपना पूरा न हो सका। शादी हुई, तो उनकी पत्नी की आंखों में भी डॉक्टर बनने का सपना था, लेकिन वो भी बाहरवीं कक्षा के बाद पढ़ाई न कर सकीं। पर यह दंपति चाहती थी कि उनके बच्चे उनके अधूरे सपनों को पूरा करें। शादी के बाद उन्हें एक बेटी हुई। नाम रखा गया ज्योत्सना। वह पढ़ाई-लिखाई में अव्वल थीं और माता-पिता को आशा थी कि ज्योत्सना उनके सपने को जरूर पूरा करेगी। पर समय को कुछ और ही मंजूर था। जब ज्योत्सना सिर्फ 6 साल की थी और उसका भाई सिर्फ एक साल का, तब एक दुर्घटना में उनके पिता के पैर की हड्डी टूट गयी और उन्हें 7 महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। पति के बिस्तर पर जाने के बाद ज्योत्सना की मां को परिवार की अंगूर की खेती को अपने हाथ में लेना पड़ा। मां लता खेत में अपने साथ ज्योत्सना को भी ले जाती। 12 साल की होते-होते ज्योत्सना ने खेत के ज्यादातर काम सीख लिए थे और वह अपनी मां की मदद करने लगी थी।
स्कूल से खेत की ओर
ज्योत्सना स्कूल से वापस आतीं। होमवर्क पूरा करतीं। थोड़ा आराम करने के बाद खेत पर चली जातीं। खेत में बैठकर पढ़ती रहतीं और मां के साथ खेती में भी हाथ बंटातीं। धीरे-धीरे उन्होंने खेती की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। समय ने जख्म भरे और पिता पूरी तरह ठीक होकर चलने लगे, लेकिन तब तक ज्योत्सना खेती में पारंगत हो चुकी थीं। हालातों को सुधरता देख ज्योत्सना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। अब वह इंजीनियर बनने का सपना देखने लगी। लेकिन ये सपना अधूरा ही रहा। उनके पिता 2010 में हुई तेज बारिश से फसल को बचाने के लिए उर्वरक खरीदने निकले थे, लेकिन रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हुए और अपने पैर हमेशा के लिए खो दिए। फिर एक बार ज्योत्सना ने खेतों की ओर रुख किया। अस्पताल में जब पिता से मिलने जातीं, तो पिता अस्पताल से ही ज्योत्सना को खेत में क्या-क्या करना है यह सिखाया, और ज्योत्सना वैसा ही करती गयी।
पढ़ाई भी रही जारी
ज्योत्सना कंप्यूटर इंजीनियरिंग करना चाहती थी, पर उसने बी.एससी कंप्यूटर में प्रवेश लेने का फैसला किया, ताकि वह पढ़ाई के दौरान खेत का प्रबंधन कर सके। उनके गांव से ज्योत्सना का कॉलेज 18 किलोमीटर दूर था, जहां जाने के दो बस बदलने के साथ-साथ दो किलोमीटर पैदल भी जाना पढ़ता था, लेकिन ज्योत्सना हारी नहीं और सुबह जल्दी उठकर कॉलेज जातीं और आकर खेतों में भी काम करतीं। इसी बीच उन्होंने ट्रैक्टर चलाना भी सीख लिया। कंप्यूटर में मास्टर्स पूरा करने के बाद ज्योत्सना को कैंपस में ही नासिक में एक सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनी के लिए चुना गया। उसने यह नौकरी स्वीकार तो कर ली थी , लेकिन वह खेत के बारे में लगातार चिंता करती रहती थी। आखिरकार डेढ़ साल तक एक सॉफ्टवेयर डेवलपर के रूप में काम करने के बाद, उसने 2017 में अपनी नौकरी छोड़ दी और एक बार फिर से खेती संभालने के लिए वापस आ गई। इस बीच उसने अपने भाई की शिक्षा और घर के खर्चों के लिए कुछ पैसे इकट्ठे कर लिए थे। अगले 6 महीनों के लिए, ज्योत्सना ने अपना पूरा ध्यान खेत पर दिया। जैसे-जैसे पौधे बड़ रहे थे, वह दिन-रात खेत में रहती और उनकी देखभाल करती। उनकी देखभाल से अंगूर की बेलें मजबूत हो गईं। ज्योत्सना के पास अब कुछ खाली समय होता था। इसलिए उसने शिक्षा से जुड़े रहने और कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए एक स्थानीय स्कूल में एक शिक्षक के रूप में नौकरी कर ली। पर नौकरी करने के बावजूद, वह कभी खेत की अनदेखी नहीं करती। उसकी इस मेहनत का फल उसे तब मिला, जब अंगूर के फलो का मौसम आया। उनकी फसल में हर एक गुच्छे में 25 से 30 फल आए और उनकी आय दोगुनी हो गई।
मिला ‘कृषिथोन बेस्ट वुमन किसान अवॉर्ड’
2018 में ज्योत्सना को ‘कृषिथोन बेस्ट वुमन किसान अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया और उसके पिता अब पहले से कहीं ज्यादा खुश हैं।