जब फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान सोना चौधरी के पैरों ने खेल के दौरान जवाब दे दिया, तो उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपनी संघर्ष की कहानी को महिलाओं की प्रेरणा बनाने के लिए उन्होंने कलम का सहारा लिया।
कहते हैं कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो तूफान भी रास्ता नहीं रोक सकता। इस कहावत को चरितार्थ किया फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान सोना चौधरी ने, जिनके पैरों ने खेल के दौरान जवाब दे दिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपनी संघर्ष की कहानी को महिलाओं की प्रेरणा बनाने के लिए उन्होंने कलम का सहारा लिया। आज हालात यह है कि वह दिल्ली पुलिस समेत देश की सुरक्षा एजेंसियों बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ को इमेज मैनेजमेंट का प्रशिक्षण दे रही हैं। अब तक उनकी पायदान, विचित्र, द फर्स्ट माइनट्रॉम, गेम इज गेम, किताब आ चुकी है। साथ ही वह अंग्रेजी सीखने वालों के लिए क्यूट कस्टर किताब लिख रही है।
दूसरों को देखकर सीखा किक मारना
80 के दौर में मैदान में लड़कियां कम ही देखी जाती थीं। उस समय सोना ने लिंग भेद की बेड़ियों को तोड़कर फुटबॉल को अपने करियर के रूप में चुना। मगर कोच नहीं मिलने की वजह से उन्होंने दूसरों को देखकर जोरदार किक मारना शुरू कर दिया था। इस दमदार किक की चर्चा जल्द ही देश भर में हुई और 1995 से 98 तक भारतीय फुटबॉल टीम की कप्तान के तौर पर उभर कर सामने आई। सही मार्गदर्शक न मिलने की वजह से खेलने के दौरान सोना को काफी चोटें लगी। उनके घुटने खराब होने लगे थे। पहले उनका दायां घुटना खराब हुआ तो वह बायें घुटने का इस्तेमाल करने लगीं मगर धीरे-धीरे सोना के दोनों घुटनों ने अपनी शक्ति खो दी। तीन ऑपरेशन हुए और 6 महीने तक व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। घुटने खराब होने के साथ ही फुटबॉल का सफर यहीं खत्म हो गया था लेकिन जिंदगी में कुछ अलग कर दिखाने का सफर फिर से शुरू हुआ।
सोना को खुद को फिट रखने का शौक है मगर लगातार काम करने से उनके घुटने लॉक हो जाते हैं। हर समय उन्हें दर्दनिवारक दवाओं का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन वह आज भी हिम्मत नहीं हारती है और महिलाओं की प्रेरणा बनती है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.