केरल की सबसे शक्तिशाली महिला नेताओं में गिनी जाने वालीं गौरी अब हमारे बीच नहीं रहीं। 102 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। वह केरल की पहली विधानसभा की एकमात्र जीवित सदस्य भी थीं। केरल की राजनीति में उन्हें 'आयरन लेडी' के तौर पर जाना जाता था। गौरी अम्मा केरल के इतिहास के कुछ उन नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने लोगों के कारण जीवन में सब कुछ बलिदान कर दिया।
केरल की वयोवृद्ध नेता गौरी अम्मा का मंगलवार (11.05.2021) को निधन हो गया। वे 102 साल की थीं। गौरी अम्मा लंबे समय से बीमार चल रही थीं। अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। हाल ही में उन्होंने जनप्रतिनिधि समृद्धि समिति (जेएसएस) के महासचिव पद से इस्तीफा दिया था। यह उनकी अपनी पार्टी थी, जिसका गठन (1994) में उन्होंने किया था और वह शुरू से ही अपनी पार्टी में महासचिव पद पर रही थीं।
कानून की पढ़ाई की
गौरी अम्मा का जन्म तटीय अलप्पुझा के पट्टनक्कड़ गांव में 14 जुलाई, 1919 को केए रमनन और पार्वती अम्मा के घर हुआ था। उन्होंने तिरुवनंतपुरम स्थित गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की अपनी पढ़ाई की थी। वह एझावा समुदाय से आने वाली पहली महिला थीं, जिसने लॉ की पढ़ाई पूरी की थी। गौरी अम्मा स्टूडेंट्स फेडरेशन की सक्रिय सदस्य थीं। बाद में, वह वकील बन गईं। उनकी पढ़ाई में उनके पिता का बहुत योगदान था। गौरी अम्मा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि कैसे उनके पिता खेती के लिए पट्टे पर जमीन लेते थे, ताकि वह अपनी बेटी को शिक्षित कर सकें। यही नहीं, उन्होंने चेरथला की एक अदालत में कानून का अभ्यास करने के लिए गौरी की काफी मदद भी की थी। गौरी अम्मा के बड़े भाई सुकुमारन राजनीतिक कार्यकर्ता थे। अपनी आत्मकथा में वह बताती हैं कि पिता की मृत्यु के बाद, अन्नन (उसका भाई) दोपहर के भोजन के लिए घर आता था और साथ में एक या दो कॉमरेड भी उसके साथ होते थे। वे विभिन्न ट्रेड यूनियनों में अन्नन के साथ काम करते थे। अन्नन कई ट्रेड यूनियनों का नेतृत्व भी करते थे। अन्नन भोजन के बाद कुछ समय के लिए कम्युनिस्ट और श्रमिक आंदोलनों के बारे में बात करते थे, मैं उन सब बातों को सुनती रहती थी और इस तरह मेरा भी राजनीति की तरफ रुझान बढ़ता गया।
जेल में भी गईं
वकालत करने के साथ-साथ उनकी रूचि राजनीति में हो गई और इस तरह वह 1948 में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं। आत्मकथा में गौरी ने उस समय का भी वर्णन किया जब उन्हें पार्टी सिद्धांतों को बढ़ावा देने वाले पर्चे वितरित करने थे। चूंकि तब कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, इसलिए उसे यह गुप्त रूप से करना पड़ा। गौरी अम्मा को 1948 में जेल हुई थी, जिस साल वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुई थीं। सरकार के खिलाफ 'शत्रुतापूर्ण' रुख के लिए उस समय पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसे कई अन्य मौकों पर जेल में डाल दिया गया और साथ ही उसकी राजनीतिक गतिविधियों के लिए भी उन पर नजर रखी गई थी। गौरी अम्मा छह महीने तक चेरतला पुलिस स्टेशन में जेल में थी, जिसके बाद उसे केंद्रीय जेल पूजापुरा में रखा गया था।
बेबाकी से अपने विचार रखने वाली गौरी अम्मा 1952 और 1954 में त्रावणकोर-कोच्चि विधानसभा सीट से चुनी गई थीं। वे साल 1957 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ईं. एम. एस. नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली पहली कम्युनिस्ट सरकार की सदस्य रही थीं। उन्हें केरल की सबसे शक्तिशाली महिला नेताओं में से एक माना जाता है। उल्लेखनीय यह है कि गौरी अम्मा पहली केरल विधानसभा की एकमात्र जीवित सदस्य भी थीं। अपने आठ दशक के लंबे पॉलिटिकल करियर में गौरी ने राज्य के विकास के लिए बहुत योगदान दिया। उन्होंने अपने दल जनाधिपत्य संरक्षण समिति यानी जेएसएस का गठन किया था। ये राज्य में कांग्रेस नीत यूडीएफ का घटक बना।
क्रांतिकारी कृषि विधायक के लिए जाना जाता था
नंबूदरीपाद मंत्रालय में राजस्व मंत्री रहीं गौरी अम्मा को क्रांतिकारी कृषि संबंध विधेयक लाने का भी श्रेय दिया जाता है। इस विधेयक के तहत किसी परिवार के पास जमीन की सीमा तय की गई है। इसी विधेयक के कारण अतिरिक्त जमीन पर अपना दावा पेश करने का भूमिरहित किसानों के लिए मार्ग प्रशस्त हो सका। सामंतवाद के खिलाफ उनकी लड़ाई हमेशा जारी रही। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद गौरी माकपा (सीपीआई-एम) में शामिल हो गईं। लेकिन उनके पति टीवी थॉमस भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे। गौरी अम्मा के पति उनके कैबिनेट सहयोगी भी रहे। थॉमस का निधन 1977 में हो गया था।
सिद्धांतों और अलगाव की एक प्रेम कहानी
आत्मकथा में गौरी ने अपनी शादी पर भी बात की। लिखी-पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक-दूसरे से शादी करना आम बात थी और इन शादियों को ज्यादातर पार्टी फंक्शन के रूप में मनाया जाता था। गौरी अम्मा ने 1957 में टीवी थॉमस (टीवी के नाम से लोकप्रिय) से शादी की और यह कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास का भी हिस्सा था। थॉमस आंदोलन के एक बड़े नेता थे। मैं पहली बार अपने घर पर आयोजित त्रावणकोर समिति की बैठक में टीवी से मिली। इसके बाद टीवी और अन्य नेताओं को पुन्नपरा वलयार मामले में बरी कर दिया गया, क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था। लेकिन पहले से ही अफवाहें थीं कि टीवी और मैं एक दूसरे के साथ प्यार में थे, जबकि मैं उनसे केवल एक बार एर्नाकुलम के महाराजा कॉलेज में मिली थी, लेकिन टीवी के रूप में नहीं, बल्कि मेरे दोस्त थ्रेस्यम्मा के भाई के रूप में। कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद मैं माकपा में शामिल हुई, लेकिन टीवी से दोस्ती रही। उन्होंने मुझे एक कश्मीरी सिल्क की साड़ी भेंट की। यह पहली बार था जब उन्होंने मुझे एक साड़ी भेंट की थी, जो मेरे लिए हमेशा से एक अनमोल उपहार के तौर पर है।
1967 में सीपीआई और सीपीआई (एम) दोनों सरकार में सहयोगी थे। तिरुवनंतपुरम में मंत्रियों के रूप में कार्यभार संभालने के लिए हम दोनों को अलाप्पुझा के चथानड में अपना घर छोड़ना पड़ा था। हमें अलग-अलग आधिकारिक निवास आवंटित किए गए थे। हमने दोनों घरों के बीच की दीवार को नष्ट कर दिया और एक-दूसरे के घर तक पहुंचने के लिए एक दरवाजा बनाया। लेकिन सीपीआई ने उस दरवाजे को बंद कर दिया, जो मेरे लिए बहुत बड़ा झटका था। उस (दरवाजे) ने हमें अलग कर दिया। मुझे दिल का दौरा पड़ा और एक महीना अस्पताल में रही। पर हमारे अलग सिद्धांत होते हुए भी हमारी प्रेम कहानी चलती रही। हमारा विवाह टूटा नहीं।
केरल की पहली सीएम बनने से वंचित रह गईं
राजनीति का शिकार हुईं
1987 के चुनावों में गौरी अम्मा केरल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने वाली थीं। पर वह राजनीतिक खेलों का शिकार हो गईं थी और उन्हें मुख्यमंत्री पद से दरकिनार कर दिया गया था, जबकि विधानसभा चुनाव "केरलनाटील केआर गौरी अम्मा भेरकुम" (केआर गौरी अम्मा केरल में शासन करेंगी) के नारे के साथ लड़े गए थे। वर्ष 1994 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने जनाधिपति समृद्धि समिति का गठन किया। बाद में वे यूडीएफ में शामिल हो गईं और इस सरकार में मंत्री बन गईं। गोरी अम्मा आखिरी बार साल 2011 में चुनाव लड़ीं थीं, इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
उम्र नहीं आई आड़े
जब गौरी ने सीपीआई (एम) को छोड़ा तो उनकी उम्र 76 साल की थी, लेकिन उनकी उम्र कभी भी उनकी राजनीतिक करियर के आड़े नहीं आई। उन्होंने अपनी नई पार्टी जेएसएस बनाई। उनकी पार्टी जेएसएस बाद में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ में जुड़ गई। 2001 में, वह एके एंटनी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री बनीं और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया।
शानदार करियर
गौरी अम्मा को हमेशा से ही राजनीति में रुचि थी। वह 11 बार केरल विधानसभा के लिए चुनी गईं। अकेले अलाप्पुझा में अरूर सीट से 8 बार जीती थीं। चार बार वो वाम दलों के नेतृत्व वाली सरकारों में मंत्री रहीं। इसके बाद वे एक बार चुनाव भी हारीं, लेकिन अगले ही चुनाव में उन्होंने फिर से शानदार जीत दर्ज की। साल 2006 तक बतौर विधायक रहीं।
सच्चे अर्थों में वह क्रांतिकारी थीं
पद के पूर्ण अर्थों में वह एक सच्ची क्रांतिकारी और दलितों की वास्तविक हमदर्द थीं। वह हमेशा उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन में सबसे आगे रहीं। गरीब तबके के हक के लिए लड़ने वालीं गौरी अम्मा को कभी भी गिरफ्तारी और कारावास का डर नहीं था। जिस आंदोलन के लिए खड़ी होतीं, उसके उद्देश्यों के सफल समापन के बाद ही चैन की सांस लेती थीं।
एक नजर में गौरी अम्मा का करियर
* गौरी अम्मा ने 1957, 1967, 1980 और 1987 में केरल में कम्युनिस्ट नेतृत्व वाले मंत्रालयों में मंत्री रहीं।
* 2001 से 2006 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में कृषि मंत्री बनी रहीं।
* 1987 में महिला आयोग विधेयक का मसौदा तैयार करने और प्रस्तुत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
* कई किसान आंदोलनों में भाग लिया और जेल भी गईं।
* केरल की राजनीति में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले राजनेताओं में से एक थीं।
* 1952 और 1954 में भारी बहुमत के साथ त्रावणकोर विधान सभा के लिए चुनी गईं थीं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.