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कलावती ने चिपको की तर्ज पर बचाया तांतरी का जंगल

Published - Fri 21, Feb 2020

उत्तराखंड के चमोली जिले की रहने वाली कलावती ने जिंदगी का सबसे अहम पाठ सीखा कि जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए। इसी का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपने गांव के पास तांतरी के जंगलों को बचाया।

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कलावती ने चिपको की तर्ज पर बचाया तांतरी का जंगल
नई दिल्ली। उत्तराखंड के चमोली जिले की रहने वाली कलावती ने जिंदगी का सबसे अहम पाठ सीखा कि जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए। इसी का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपने गांव के पास तांतरी के जंगलों को बचाया। इसके लिए उन्होंने कठोर परिश्रम किया और महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें भी इसके लिए जागृत किया। आज उनका यह समूह हर गांव में वन कटाई के खिलाफ जागरुकता फैलाता है।

आवाज उठाने का फैसला किया
कलावती देवी रावत के अनुसार मेरा जन्म आर्थिक रूप से विपन्न परिवार में हुआ। बचपन से मैंने देखा कि गांव के पास जंगल में लकड़ी माफिया का बोलबाला था। पर कोई उनके खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा था। तब मैंने आवाज उठाने का फैसला किया। जब मेरा विवाह हुआ, उस समय मेरी उम्र करीब सत्रह साल थी। विवाह के बाद जब मैं अपनी ससुराल चमोली जिले के बाचर गांव में आई, तो समझ आया कि बिजली की समस्या ने सुदूर पहाड़ों पर बसे गांवों के जीवन को कठिन बना रखा है। ससुराल आने के बाद चिपको आंदोलन के नेता चंडी प्रसाद भट्ट से प्रेरणा लेते हुए मैंने जिला मुख्यालय पर सरकारी अधिकारियों से मिलने के लिए गांव की महिलाओं के एक समूह का नेतृत्व किया। समूह ने बिजली की कमी के कारण आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताया और मांग की कि उनके गांव का विद्युतीकरण किया जाए, पर अधिकारी बेपरवाह थे। एक दिन, कुछ महिलाओं व गांव के सरपंच के साथ करीब 25 किलोमीटर की ट्रैकिंग करके हम चंडी प्रसाद भट्ट से उनके निवास पर मिले और अपनी समस्या को लेकर उनके साथ हमने चर्चा की। वह हमें संबंधित अधिकारी के पास ले गए और बातचीत की। लौटते समय हमें रास्ते में कुछ बिजली के खंभे व तार दिखाई दिए, जो आधिकारिक कार्यक्रमों में बिजली पहुंचाने के लिए प्रयोग किए जाते थे। मैंने महिलाओं से बात की और उन खंभों व तारों को गांव में ले जाने के लिए राजी कर लिया। इस बात का पता चलते ही आधिकारी परेशान हो उठे। उन्होंने हमारे खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की धमकी दी। जब सारी महिलाओं ने एकजुटता दिखाई, तो अधिकारियों के तेवर नरम पड़े। यह हमारी पहली जीत थी। चूंकि गांव एक बिजली ग्रिड से जुड़ा था, इसलिए कुछ ही दिनों में पूरे गांव में बिजली पहुंच गई। इस तरह के अनुभव ने वास्तव में हमें भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार किया।

गांव में बिजली तो आ गई पर पेड़ों की कटाई जारी थी, हौसले ने रोकी कटाई
बकौल कलावती गांव में बिजली तो आ गई थी, पर जंगल में अवैध कटाई का सिलसिला थम नहीं रहा था। एक सुबह जब मैं कई महिलाओं के साथ चारा लाने तांतरी के जंगल में पहुंचीं, तो चौंक गई। वहां दर्जनों कटे पेड़ पड़े थे, जबकि कई पेड़ों पर कटाई के लिए निशान बनाए गए थे। मेरे साथ मौजूद महिलाओं ने कटाई का विरोध करना शुरू कर दिया। सभी महिलाएं चिपको आंदोलन की तर्ज पर पेड़ों से चिपक गईं। वनकर्मियों ने हमें समझाने की कोशिशें कीं, तो लकड़ी माफिया ने हमें रिश्वत देने की कोशिश की और मना करने पर हमें जान से मारने की धमकी भी दी। लेकिन हमने अपने कदम पीछे लेने से मना कर दिया। मामला बढ़ने पर जिला प्रशासन मौके पर पहुंच गया। इसके बाद उसने घोषणा की कि तांतरी जंगल में पेड़ नहीं काटे जाएंगे।

लिया चुनाव लड़ने का फैसला
कलावती कहती हैं कि वन माफिया और बाचर गांव के शराबियों के बीच साठगांठ परेशानी का सबब बन रही थी। कई कोशिशों के बाद भी इस साठगांठ को तोड़ा नहीं जा सका। अंतत: मैंने गांव की वन पंचायत के मुखिया का चुनाव लड़ने का फैसला किया। हालांकि यह उतना आसान नहीं था, जितना मैंने सोचा। अधिकारी इस बात पर सहमत नहीं हो रहे थे, पर जब मैंने तर्क दिया कि महिलाओं को पंचायत चुनाव लड़ने के लिए कानूनी रूप से सशक्त बनाया गया है, तब उप-मंडल मजिस्ट्रेट ने मुझे पंचायत चुनाव लड़ने की अनुमति दी। मैंने चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद गांव में एक महिला मंगल दल का गठन किया गया, जो शराबियों व लकड़ी माफिया के खिलाफ अभियान चलाने के साथ गांव के अन्य तबकों में जागरूकता फैलाता है।