एलोपेसिया के कारण जब केतकी का सिर पूरी तरह गंजा हो गया, तब उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला किया। मगर बच्चों के बारे में सोचकर पीछे हट गई और आज हिम्मत के साथ सिर उठाए जीवन जी रही हैं।
हमारे समाज में लोगों को बालों से भी जज किया जाता है। बालों से हमारे चेहरे की सुंदरता बढ़ती है, ऐसा हमारे समाज का नजरिया है। लेकिन कल्पना कीजिए एक ऐसी महिला के बारे में जिसके सर पर बाल ही न हो क्या वह इस समाज में खुल कर जी सकती है? आज के आधुनिकता के दौर में भी एक गंजी महिला को समाज स्वीकार नहीं करता बल्कि मजाक बनाता है। जब एक गंजे पुरुष का ही इतना मजाक बनाया जाता है तो एक गंजी महिला को कितने तीखे सवालों का सामना करना पड़ता होगा आप कल्पना कर सकते हैं।
ऐसी ही एक महिला है केतकी जानी। केतकी का जन्म अहमदाबाद में हुआ। पढ़ाई के बाद शादी हुई और पुणे आ गई। यहां महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ब्यूरो में गुजराती भाषा विभाग में काम करने लगी। आम महिलाओं की तरह वह भी अपने पारिवारिक जीवन में दो बच्चों के साथ खुश थी। लेकिन 40 साल की उम्र में उनकी जिंदगी बदल गई, उन्होंने अपने पूरे शरीर के बाल खो दिए।
बात 2010 की है, केतकी ने देखा कि उनके सिर में बिंदी जैसा गंजापन दिख रहा है। धीरे-धीरे रोज उनको तकिए पर काफी सारे बाल मिलने लगे। घबराकर उन्होंने डॉक्टर से मुलाकात की। लेकिन कुछ ही समय में वह समझ गई कि अब कुछ भी नहीं किया जा सकता। तकरीबन आठ से दस महीने में केतकी ने अपने शरीर के सारे बाल खो दिए। दरअसल वह एलोपेसिया की बीमारी से ग्रसित हो गई थी। बाल खोने के बाद भी उपचार जारी रहा और डॉक्टर ने दवाएं और स्टेरॉयड लेने के लिए कहा। ऑफिस जाते समय केतकी मुंह ढककर जाती थी और ऑफिस खत्म होने के बाद सीधे घर आ जाती थी, ताकि कोई उन्हें देख न सके। स्टेरॉयड लेने के चलते वजन बढ़ने लगा और धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में चली गई। एक ऐसा वक्त भी आया, जब वह आत्महत्या के बारे में भी सोचने लगी।
तीखे सवाल जिनका केतकी ने सामना किया
हमारे समाज में एक प्रथा थी जब पति मर जाता है तो उसकी पत्नी को गंजा कर दिया जाता था। लोग कहते थे तुम्हारा तो पति जिंदा है, फिर भी तुम गंजी हो गई हो ऐसा कौन सा पाप किया था तुमने? लोग आकर पूछने लगते थे आप कैंसर से पीड़ित हैं क्या? मुहल्ले में मां अपने बच्चों से कहती थी कि यह अंटी कुछ दिन में मर जाएंगी। बड़े बुजुर्ग कहते थे कोई घोर पाप किया होगा उसकी की सजा मिल रही है? लोगों के ऐसे तीखे सवालों से बचने के लिए वह ऑफिस से घर आने के लिए अंधेरा होने का इंतजार किया करती थी।
दुनिया से लड़ाई
एक दिन केतकी ने अपनी जिंदगी खत्म करने के बारे में सोच लिया। लेकिन बच्चों के बारे में सोचकर अपने कदम पीछे खींच लिए। तभी उन्होंने फैसला किया कि अब तक शरीर से लड़ती आई हूं, अब दुनिया से लड़ूंगी। उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि हां वह गंजी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि वह गंजी हैं तो क्या हुआ उनका दिल तो साफ है। उनकी बेटी ने भी उनको समझाया कि आप सिर्फ अपने बारे में सोचो दुनिया क्या कहती है उसकी चिंता मत करों। फिर उन्होंने अपने अंदर आत्म विश्वास जगाया और विग्स व दुपट्टे को अलविदा कह दिया। जब वह इस तरह बाहर निकती लोग देखते रह जाते। कोई कुछ कहता तो वह पलटकर जवाब दे देतीं।
सिर पर टैटू बनवाए
केतकी को टैटू बनवाने की हमेशा से चाह थी। जब सिर गंजा हो गया तो उन्होंने इस पर टैटू बनवाने का फैसला किया। अपने सिर पर मां-बेटी और ॐ के टैटू बनवाए तथा बेझिझक बाहर निकलने लगी। इस बीच उन्हें पता चला कि इस बीमारी से और भी महिलाएं ग्रस्त हैं। इस तरह केतकी 'वर्ल्ड वाइड एलोपेशियन ग्रुप' के संपर्क में आई, जहां उनके जैसी अन्य महिलाएं मौजूद थीं।
रैंप वॉक का मौका
इस बीच केतकी को मिसेज इंडिया पेजेंट प्रतियोगिता के बारे में पता चला और उन्होंने इसके लिए आवेदन कर दिया। स्पर्धा में उनका चुनाव कर लिया गया और मुंबई बुलाया गया। प्रतियोगिता में केतकी को न केवल रैंप वॉक का मौका मिला, बल्कि हिम्मत और साहस के लिए प्रशंसा भी मिली। गंजे सिर पर टैटू फैशन की तरह काम आया और उन्हें मिसेज इंडिया वर्ल्डवाइड की फाइनलिस्ट भी चुन लिया गया। इस स्पर्धा में उन्हें जीनत अमान के हाथों "इंस्परेशन अवॉर्ड" भी मिला। खिताब जीतकर जब वह अपने शहर पहुंची तो लोगों ने उनको सम्मान की नजरों से देखा शुरू कर दिया। केतकी की नई जिंदगी में अब उन पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं।
गंजी महिला का जिक्र पुराणों में भी नहीं
केतकी कहती हैं, हमारा भारतीय समाज इसीलिए असफल है क्योंकि यह बालों वाली महिलाओं को सुंदर मानता है। हमारे पुराणों में भी गंजी महिलाओं का जिक्र नहीं है। गंजी महिला का जिक्र वहीं पर किया गया है जहां उसका पति मर जाता है। गंजी महिला को समाज अपशगुन के तौर पर देखता है। अछूतों की तरह व्यवहार करता है। इसीलिए यह समाज आज भी गंजी महिलाओं को सम्मान देने में असफल है। समाज की जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि बुरे दौर से गुजर रहे लोगों की मदद करे, न कि उसका मजाक बनाए। फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष।
हमारे समाज का यह कड़वा सत्य है कि आज भी एलोपेसिया जैसी बीमारी पीडित महिलाएं समाज में जीने के लिए दुपट्टा या बिग का सहारा लेती है। बहुत सी महिलाएं समाज के डर से खुद को एक कमरे में कैद कर लेती है। समाज की इसी सोच के प्रति केतकी की लड़ाई अभी जारी है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.