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94 की उम्र में भी गरीबों के हक के लिए लड़ रही हैं कृष्णम्मल जगन्नाथन

Published - Sun 11, Oct 2020

बचपन में ही उन्होंने भूमि न होने के दुष्परिणाम क्या हो महसूस किया। उन्हीं अनुभवों ने कृष्णम्मल जगन्नाथन को पढ़ाई पूरी करने के बाद भूदान आंदोलन से जुड़ने की प्रेरणा दी।

Krishnammal Jagannathan

कृष्णम्मल जगन्नाथन ने भूमिहीन और हाशिए पर पड़े लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद करने के पीछे एक लंबा सफर तय किया है। कृष्णम्मल को हिंसा पसंद नहीं है। उनका मानना है कि बिना हिंसा के भी किसी भी समस्या को हल किया सकता है। भूमिहीन होने का दंश उन्होंने बचपन में झेला है और तभी उन्होंने फैसल कर लिया था कि भूमिहीनों को भूस्वामी बनाने के लिए आजीवन काम करूंगी। तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले में जन्मी कृष्णम्मल का परिवार भूमिहीन था। उनकी मां दैनिक मजदूर किया करती थी। गर्भावस्था के उन्नत चरण में होने के बावजूद उनकी मां को कठिन परिश्रम करना पड़ता था। इस सब चीजों को देखकर ही वह सामाजिक अन्याय से परिचित हुई। जब वह बहुत छोटी थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ लोगों के सहयोग से उन्होंने उच्चशिक्षा पूरी की। उनकी मां उन्हें हमेशा पीड़ितों के प्रति करुणा भाव ही सिखाया। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गई। वहीं पर कृष्णम्मल अपने होने वाले पति से मिली और देश की आजादी के बाद उन लोगों ने विवाह कर लिया। वर्ष 1953 से 1967 के बीच उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के परिवर्तित रूप ग्रामदान आंदोलन में जमींदारों से अपनी भूमि का छठा हिस्सा भूमिहीनों को देने के लिए सहमत किया। इस तहर उन्होंने हजारों लोगों को जमीनी हक दिलाया। इस बीच नागापट्टिनम जिले में मकान मालिक से हुए मजदूरी विवाद के बाद महिलाओं व बच्चों समेत 42 लोगों को जला दिया गया, जिसने जीवन की दिशा बदल दी। 

लैंड फॉर टिलर्स फ्रीडम 

इस घटना ने कृष्णम्मल जगन्नाथन को झिंझोड़कर कर रख दिया। तब उन्होंने जमींदारों और भूमिहीनों को बातचीत के लिए एक साथ लाने और भूमिहीनों को उचित मूल्य पर भूमि खरीदने में मदद करने के लिए तंजावुर जिले में लैंड फॉर टिलर्स फ्रीडम संस्था की स्थापना की। इसके माध्यम से उन्होंने करीब तेरह हजार परिवारों को न्यूनतम एक एकड़ जमीन मुहैया करवाई। 

कौशल प्रशिक्षण

भूमि प्राप्त करने वालों का जीवन सुधारने के लिए उन्होंने गैर-कृषि मौसम के दौरान कार्यशालाओं का आयोजन कराया, ताकि लोगों को सिलाई, चटाई बुनाई, बढ़ईगीरी और चिनाई के माध्यम से पैसा कमाने का मौका मिल सके। नब्बे के दशक में जब कंप्यूटर आया, तो उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर घरों की लड़कियों के लिए कंप्यूटर प्रशिक्षण की कक्षाएं भी कराई। 

दोबारा उठी 

94 साल की हो चुकी 94 वर्षों में, जगन्नाथन ने दुनिया में कई बदलाव देखे हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन सबसे गरीब लोगों की सेवा में लगा दिया। वर्ष 2013 में पति की मौत के बाद उन्होंने भी बिस्तर पकड़ लिया। लेकिन, दवाओं दम पर वह दोबारा सक्रिय हो गई हैं। 

500 घर बनाने का काम कर रहा है संगठन 

वर्तमान में, उनका संगठन 500 घर बनाने का काम कर रहा है। यह घर उन लोगों के दिए जाएंगे जिनके घर 2018 के चक्रवात में नष्ट हो गए थे। अब तक, 54 घर पूरे भी हो चुके हैं। वह हर झोपड़ी वाले को एक घर देना चाहती है। इस उम्र में भी एक बेहतर दुनिया बनाने का उनका जनून अभी भी कम नहीं हुआ है।