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पीएम मोदी के सम्मान को ठुकरा चुकी 8 साल की बिटिया के जुनून को सलाम करती है दुनिया

Published - Fri 20, Mar 2020

पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुटी मणिपुर की महज 8 साल की लिसीप्रिया कंगुजम के जुनून और हौसले की कायल पूरी दुनिया है। एक साल पहले स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सीओपी-25 जलवायु शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं के सामने जलवायु संकट जैसे गंभीर मसले पर इस छोटी सी बच्ची ने जिस गंभीरता के साथ अपनी बात रखी सभी उसके कायल हो गए। अपने साहसिक कदमों को लेकर चर्चा में रहने वाली लिसीप्रिया एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी की ओर सम्मानित किए जाने के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि सरकार जब उनकी बात नहीं सुनती तो वह सम्मान लेकर क्या करेंगी। लिसीप्रिया ने इस मसले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश में जुटी कांग्रेस को भी फटकार लगाई। आइए जानते हैं इस बहादुर बेटी के बारे में ....

नई दिल्ली। ग्लोबल वार्मिंग को लेकर आज पूरी दुनिया चिंतित है। विश्व के शीर्ष नेताओं से इस समस्या से निपटने के लिए गुहार लगाई जा रही है। रैली से लेकर धरने-प्रदर्शन तक हो रहे हैं। कई पर्यावरणविद् इसके लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। भारत में भी जलवायु संकट को लेकर कई लोग आवाज बुलंद कर रहे हैं। इन्हीं में शामिल है महज 8 साल की लिसीप्रिया कंगुजम। बशीखोंग, मणिपुर के रहने वाले केके सिंह और बिदारानी देवी कंगुजम ओंगबी की सबसे बड़ी बेटी लिसीप्रिया कंगुजम पिछले तीन साल से जलवायु संकट को लेकर देश के साथ वैश्विक मंच पर भी मुखर हैं। लिसीप्रिया की तुलना दुनियाभर के लोग ग्रेटा थुनबर्ग से करते हैं।

संसद के सामने प्रदर्शन कर आई चर्चा में

लिसीप्रिया कंगुजम 2019 में तब यकायक चर्चा में आईं जब पूरा देश अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहा था और यह नन्हीं बच्ची संसद के बाहर तख्ती लेकर सांसदों समेत पूरी दुनिया को जलवायु संकट से बचने के लिए गुहार लगाती नजर आई। बच्ची ने सफेद रंग की तख्ती पर लिखा था, 'डियर मिस्टर मोदी और सांसद... जलवायु परिवर्तन पर कानून पास करें और हमारे भविष्य को बचाएं।' बच्ची ने कहा, 'समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और पृथ्वी गर्म हो रही है, उन्हें इस पर काम करना चाहिए।'

स्पेन भी हो चुका है इस बच्ची का मुरीद

मणिपुर की इस नन्ही पर्यावरण कार्यकर्ता ने 12 दिसंबर 2019 में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आयोजित सीओपी-25 जलवायु शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और वैश्विक नेताओं से अपनी धरती और उन जैसे मासूमों के भविष्य को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की गुहार लगाई। लिसिप्रिया ने वैश्विक पर अपने भाषण के दौरान कहा- 'मैं यहां वैश्विक नेताओं से कहने आई हूं कि यह कदम उठाने का वक्त है क्योंकि यह वास्तविक क्लाइमेट इमरजेंसी है।' इतनी छोटी उम्र में इतने अहम मसले पर बात रखने के कारण लिसिप्रिया स्पेन के अखबारों की सुर्खियां बनीं। स्पेनिश अखबारों ने उन्हें भारतीय 'ग्रेटा' बताते हुए उनकी जमकर तारीफ की है। स्वीडन की 16 साल की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने सितंबर 2018 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक नेताओं को झकझोरा था।

8 साल की उम्र में 21 देशों की कर चुकी हैं दौरा

लिसिप्रिया अब तक 21 देशों का दौरा कर चुकी हैं और जलवायु परिवर्तन मसले पर विविध सम्मेलनों में अपनी बात रख चुकी हैं। वह दुनिया में सबसे कम उम्र की पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। लिसिप्रिया को महज छह साल की उम्र में 2018 में मंगोलिया में आपदा मसले पर हुए मंत्री स्तरीय शिखर सम्मेलन में बोलने का अवसर मिला था। उन्होंने कहा, 'इस सम्मेलन से मेरी जिंदगी बदल गई। मैं आपदाओं के चलते जब बच्चों को अपने माता-पिता से बिछड़ते देखती हूं तो रो पड़ती हूं।' मंगोलिया से लौटने के बाद लिसिप्रिया ने पिता की मदद से 'द चाइल्ड मूवमेंट' नामक संगठन बनाया। वह इस संगठन के जरिये वैश्विक नेताओं से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की अपील करती हैं।


छोड़ना पड़ा स्कूल, कई पुरस्कारों से हो चुकी हैं सम्मानित

लिसिप्रिया का जन्म इंफाल में हुआ, लेकिन वह आमतौर पर पूरे समय शहर से बाहर रहती हैं। वह ज्यादातर दिल्ली और भुवनेश्वर में रहती हैं। जलवायु परिवर्तन मसले पर अपने जुनून के चलते वह स्कूल नहीं जा पाती थीं। इस कारण उन्होंने फरवरी 2019 में स्कूल छोड़ दिया। 2 अक्टूबर 2011 को जन्मीं लिसिप्रिया कंगुजम को उनके प्रयासों के लिए 2019 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम चिल्ड्रेन अवार्ड, अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार और इंडिया पीस प्राइज से सम्मानित किया गया है। 2019 में ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम में ग्रेटा थनबर्ग और जेमी मार्गोलिन के साथ एक विशेष पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में चुना गया था। इंडिया टाइम्स ने उन्हें भारत की सबसे कम उम्र की जलवायु कार्यकर्ता का दर्जा दिया है।

मोदी से नहीं लिया सम्मान

5 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा था कि 8 मार्च यानी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वह 7 महिलाओं को अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट सौंप देंगे और वो इन्हें एक दिन के लिए हैंडल करेंगी। इसी कड़ी में भारत सरकार के ट्विटर हैंडल पर कुछ प्रेरणादायक महिलाओं की कहानियों को भी साझा किया गया। इन्हीं में से एक 8 साल की जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता लिसीप्रिया कंगुजम भी थीं। लिसीप्रिया कंगुजम की कहानी को भी भारत सरकार ने अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया। लिसी ने इस सम्मान के लिए ट्वीट कर पहले सरकार का शुक्रिया तो अदा किया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वह इससे खुश नहीं हैं। लिसी ने लिखा, 'सरकार मेरी बात सुनती नहीं है और आज उन्होंने मुझे प्रेरणादायक महिलाओं की श्रेणी में शामिल किया है... लेकिन क्या यह वाकई में सही है? मुझे पता चला है कि पीएम मोदी की पहल के तहत 3.2 मिलियन लोगों के बीच उन्होंने मुझे भी कुछ प्रेरणादायक महिलाओं में शामिल किया है।'  कुछ ही देर बाद लिसिप्रिया ने एक और ट्वीट कर लिखा- 'अगर आप मेरी आवाज नहीं सुन सकते तो आप मुझे इसमें शामिल न करें। मुझे अन्य प्रेणादायक महिलाओं के साथ शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, लेकिन काफी बार सोचने के बाद मैंने इस सम्मान को अस्वीकार करने का फैसला किया है।'

कांग्रेस को लगाई फटकार

लिसिप्रिया के पीएम मोदी के सम्मान को ठुकराने के बाद कांग्रेस ने नन्ही पर्यावरण कार्यकर्ता की आड़ में मोदी सरकार पर हमला बोला। कांग्रेस को हमलावर होते देख लिसिप्रिया ने कांग्रेस पर भी तंज कसते हुए ट्वीट किया। कांग्रेस ने ट्वीट किया था कि, 'महिला सशक्तिकरण के प्रति पीएम मोदी की बातों और पाखंड को बहादुर पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया कंगुजम ने नकार दिया है। लिसिप्रिया के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद, उन्होंने पीएम को याद दिलाया कि उनकी आवाज सुनना किसी भी ट्विटर अभियान की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।' इसके बाद लिसिप्रिया ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए ट्वीट किया, 'आप मेरे प्रति सहानुभूति महसूस करते हैं, ठीक है, पॉइंट पर आते हैं। लोकसभा और राज्यसभा दोनों में चल रहे संसद सत्र में आपके कितने सांसद मेरी मांगों को मानने वाले हैं? मैं ये भी नहीं चाहती हूं कि आप सिर्फ ट्विटर अभियान के लिए मेरे नाम का उपयोग करें, मेरी आवाज कौन सुन रहा है?'