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एक लड़की जो ले चुकी है 142 दुष्कर्मियों का इंटरव्यू

Published - Wed 04, Mar 2020

2012 में हुए निर्भया कांड के बाद मधुमिता पांडे बिल्कुल अंदर से हिल गई थीं। वह उन पुरूषों से मिलना और देखना चाहती थीं, जिन्होंने बलात्कार किए थे। वह देखना चाहती थीं कि ऐसा करने वाले पुरूषों की सोच कैसी होती है, ऐसा उन्होंने क्यों किया था। किसी भी महिला को अपना शिकार बनाकर, बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते वक्त उनके मन में क्या चल रहा होता है। क्या ये कैदी आम इंसानों से अलग होते हैं, इनकी प्रवृति कैसी होती है? इन सब सवालों को जानने के लिए मधुमिता पांड ने निर्भया कांड के बाद तिहाड़ जेल में 142 बलात्कारियों के साक्षात्कार किए। मधुमिता ने कैदियों के यह इंटरव्यू अपनी डॉक्टरल थीसिस के लिए किए। फिलहाल वह ब्रिटेन में शेफील्ड हॉलम विश्वविद्यालय में अपराधशास्त्र की लेक्चरर हैं। इन इंटरव्यू के जरिए वह अपराध को आकार देने वाले कैदियों के दृष्टिकोण को समझना चाहती थीं।

madhumita panday

नई दिल्ली। 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद मधुमिता पांडे बिल्कुल अंदर से हिल गई थीं। वह उन पुरूषों से मिलना और देखना चाहती थीं, जिन्होंने बलात्कार किए थे। वह देखना चाहती थीं कि ऐसा करने वाले पुरूषों की सोच कैसी होती है, ऐसा उन्होंने क्यों किया था। किसी भी महिला को अपना शिकार बनाकर, बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते वक्त उनके मन में क्या चल रहा होता है। क्या ये कैदी आम इंसानों से अलग होते हैं, इनकी प्रवृति कैसी होती है? इन सब सवालों को जानने के लिए मधुमिता पांड ने निर्भया कांड के बाद तिहाड़ जेल में 142 बलात्कारियों के साक्षात्कार किए। मधुमिता ने कैदियों के यह इंटरव्यू अपनी डॉक्टरल थीसिस के लिए किए। फिलहाल वह ब्रिटेन में शेफील्ड हॉलम विश्वविद्यालय में अपराधशास्त्र की लेक्चरर हैं। इन इंटरव्यू के जरिए वह अपराध को आकार देने वाले कैदियों के दृष्टिकोण को समझना चाहती थीं।

पहला इंटरव्यू किया तो महज 22 साल की थीं

मधुमिता उस समय केवल 22 साल की थीं, जब वह भारत में पहली बार बलात्कारियों से मिलने और साक्षात्कार लेने के लिए दिल्ली के तिहाड़ जेल में गई थीं। 2013 से अब तक उन्होंने कुल 142 कैदियों के साक्षात्कार लिए हैं। मधुमिता ने कैदियों के ये इंटरव्यू अपनी डॉक्टरल थीसिस के लिए किये थे। दरअसल, उस समय वो यूनाइटेड किंगडम की एंजला रस्किन यूनिवर्सिटी से क्रिमिनोलॉजी की पढ़ाई कर रही थीं। उसी दौरान साल 2012 में दिल्ली में एक दिल दहला देने वाली दुर्घटना घटित हुई थी, जिसे हम सब निर्भया गैंगरेप के नाम से जानते हैं। निर्भया कांड ने देश-दुनिया के तमाम लोगों को झकझोर कर रखा दिया था। इस दर्दनाक घटना ने मधुमिता को भी अंदर तक हिला दिया था। साथ ही रेप के आरोपियों की मानसिकता पर रिसर्च करने के लिए भी मजबूर कर दिया था। यह सब उन्होंने 2013 में शुरू किया था। उन्होंने ने अपने इस काम को एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया। मधुमिता इन कैदियों का इंटरव्यू करके सिर्फ इतना जानना चाहती थी कि जब ये कैदी किसी भी महिला को अपना शिकार बना कर, बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं, उस वक़्त उनके मन में क्या चल रहा होता है। क्या ये कैदी आम इंसानों से अलग होते हैं, इनकी प्रवृति कैसी होती है? आखिर ये लोग कैसे आसानी से एक पल किसी भी महिला की ज़िंदगी बर्बाद कर देते हैं? कैदियों की मानसिकता जानने के लिए मधुमिता करीब एक सप्ताह तक उनके साथ तिहाड़ जेल में रहीं। उस साल भारत को जी-20 देशों में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर सबसे बुरी जगह दी गई थी।

अधिकांश बलात्कारी अशिक्षित थे, कुकर्म में दिखा परवरिश का नतीजा

बतौर मधुमिता मैं नई दिल्ली में पली-बड़ी हुई हूं। मैंने निर्भया मामले के बाद एक अलग ही आक्रोश में अपने शहर को देखा था। तब उनके दिमाग में आया कि वो आखिर कौन सा विचार है जो इन लोगों को ऐसे जघन्य कृत्य के लिए प्रेरित करता है? ऐसे हालात क्या हैं, जो इस तरह के पुरुषों का निर्माण करते हैं? मधुमिता के मुताबिक, मैंने सोचा कि इस सवाल का जवाब तो सीधे रेप के आरोपियों से ही पूछा जाना चाहिए। जब मैं बलात्कारियों से मिली तो अधिकतर को यह नहीं पता था कि उन्होंने रेप किया है। वहां मिले अधिकांश पुरुष अशिक्षित थे, कुछ ने ही हाईस्कूल तक की पढ़ाई की थी। बहुत से तीसरे या चौथे ग्रेड के ड्रॉपआउट थे। जब मैं उन पर स्टडी करने गई थी तो मुझे यकीन था कि ये लोग राक्षस ही हैं, लेकिन जब आप उनसे बात करते हैं तो आप समझते हैं कि ये कोई अलग दुनिया के पुरुष नहीं हैं। वह वास्तव में साधारण हैं। उन्होंने जो कुकर्म किया है वो उनकी परवरिश का नतीजा है।

परिवार में पुरुष के वर्चस्व वाली सोच से पनपा अपराध

मधुमिता के अनुसार भारतीय परिवारों में यहां तक कि अधिक शिक्षित परिवारों में भी, महिलाएं अक्सर परंपरागत भूमिकाओं के लिए बाध्य होती हैं। यहां तक कि वो अपने पति का नाम लेकर बुला तक नहीं सकतीं। मधुमिता बताती हैं, एक प्रयोग के रूप में मैंने कुछ दोस्तों को फोन किया और पूछा, तुम्हारी मां आपके पिता को क्या कहती हैं? मुझे जो जवाब मिलते थे वह थे, 'आप सुन रहे हैं,' 'सुनो,' या 'चिंटू के पिता'। उन रेप के दोषियों से बातचीत करने के अनुभवों के बीच मैंने पाया कि इन लोगों में से बहुत से लोग यह नहीं जानते कि उन्होंने जो किया है वह बलात्कार है। उन्हें समझ नहीं आता कि सहमति क्या है। मैं तो ये सोच सोच कर हैरान थी कि क्या यह सिर्फ ये ही पुरुष ऐसे हैं? या पुरुषों का विशाल बहुमत ही ऐसा है? भारत में सामाजिक व्यवहार बहुत रूढ़िवादी हैं। स्कूल पाठ्यक्रमों में यौन शिक्षा छोड़ दी जाती है। यहां पर नीति बनाने वालों का मानना है कि ऐसे विषयों को पढ़कर युवा भ्रष्ट हो सकते हैं और पारंपरिक मूल्यों को अपमान कर सकते हैं। यहां पर माता-पिता बच्चों से बातचीत करते वक्त लिंग, योनि, बलात्कार या सेक्स जैसे शब्द भी नहीं कहेंगे। अगर वे उस पर नहीं पहुंच सकते, तो वे युवा लड़कों को कैसे शिक्षित कर सकते हैं? 'सड़ चुकी रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक सोच का प्रतिफल है रेप' साक्षात्कार में कई कैदियों ने बताया कि उन्हें ऐसा करने के लिए किसी बहाने से बहकाया गया था या कईयों ने इस बात से ही इंकार कर दिया कि उन्होंने किसी का बलात्कार किया है। केवल तीन या चार ही ऐसे थे जिन्होंने कहा कि हम अपने किए का पश्चाताप कर रहे हैं। लेकिन उनके इस पश्चाताप में भी घटिया मर्दाना सोच थी।

कई कैदियों की घृणित सोच

एक मामले का जिक्र करते हुए मधुमिता कहती हैं, एक 49 साल का कैदी जिसने एक 5 वर्षीय लड़की का बलात्कार किया था। वो अपने इस पाप पर दुख जताते हुए कहता है, 'हां मैं बुरा महसूस करता हूं। मैंने उसका जीवन बर्बाद कर दिया। अब वो तो बड़ी हो गई होगी, कोई भी उससे शादी नहीं करेगा। लेकिन मैं उसे स्वीकार करूंगा। जब मैं जेल से बाहर आऊंगा, तब मैं उससे शादी करूंगा।' सोचिए जरा रेप के लिए सजा काट रहा कैदी अब भी उसी सदियों पुरानी सोच में जी रहा है जो रेप का कारण है। उसको अब भी लगता है कि एक लड़की का अस्तित्व सिवाय उसके जिस्म के अलावा कुछ भी नहीं। अगर उसकी 'इज्जत' चली गई तो उसका जीवन भी खत्म। उस कैदी की इस प्रतिक्रिया ने मधुमिता को इतना धक्का पहुंचाया कि वो उस पीड़िता के बारे में पता करने के लिए मजबूर हो गई। इस व्यक्ति ने साक्षात्कार में लड़की के ठिकानों का विवरण दिखाया था। जब मधुमिता ने उस लड़की की मां को ढूंढ निकाला तब वो ये जानकर और भी आश्चर्य में पड़ गईं कि उस लड़की के परिवार को यह भी नहीं बताया गया था कि उनकी बेटी का बलात्कारी जेल में है। कैदियों पर किए गए मधुमिता की इस रिसर्च से एक बात तो साफ है कि वाकई अगर इन्हें बचपन से अच्छी सीख मिलती, तो शायद आज ये लोग बलात्कार के जुर्म में जेल की सजा नहीं काट रहे होते।