मध्य प्रदेश की सबसे कम उम्र की सरपंच मोना गांव के विकास के साथ ही रूढ़ीवादी मान्यताओं को भी बदलने का काम कर रही हैं। महिला सशक्तिकरण पर भी सरपंच का खास ध्यान है।
भोपाल। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, तबीयत से एक पत्थर उछाल करके तो देखो। ये लाइनें मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की सड़ूमर ग्राम पंचायत सरपंच मोना कौरव पर एकदम सटीक बैठती हैं। मोना ने सरपंच बनने के बाद न केवल अपने पंचायत की तस्वीर बदली, बल्कि बेटे की तरह बेटियों के पंचायत में जन्म लेने पर उत्सव मनाने आैर बैंडबाजा बजवाने व उपहार देने की परंपरा की भी शुरुआत की। इतना ही नहीं युवा सरपंच ने लाड़लियों की शिक्षा को लेकर चली आ रही रूढ़ीवादी सोच को भी उलटकर रख दिया। मप्र में सबसे कम उम्र में सरपंच बनने वाली मोना को उनके कार्यों के लिए उपराष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं। मोना 2015 में जब सरपंच बनीं तो उनकी उम्र महज 21 साल 3 महीने थी।
आसान नहीं रहा सफर
सड़ूमर गांव में रूढ़ीवादी सोच के चलते बेटियों की पढ़ाई कक्षा 8वीं के बाद ही बंद करा दी जाती थी। इसका कारण गांव में हाईस्कूल या हायर सेकंडरी का नहीं होना था। ग्रामीण नहीं चाहते थे कि उनकी बेटियां दूसरे गांव में जाकर पढ़ें। वर्ष 2011-12 में ननिहाल में रहते हुए मोना कौरव ने जब आठवीं के बाद आगे पढ़ने की जिद की, तो उनके माता-पिता ने साफ इंकार कर िदया। ऐसे समय में मोना का साथ उनके मामा राव विक्रम सिंह ने दिया। उन्होंने अपने गांव से तकरीबन 8 किमी दूर कौड़िया कन्या स्कूल में मोना का दाखिला करा दिया। इस दौरान मोना के साथ पढ़ने वाली अन्य लड़कियां पढ़ाई छोड़कर घर बैठ गईं। युवा सरपंच बताती हैं कि ननिहाल से स्कूल तक के रास्ते में कई बाधाएं थीं। पहली समस्या यह थी कि कोई साधन नहीं मिलता था। दूसरी रास्ते में एक पुलविहिन नाला था। इस परेशानी भरे हालात में मोना का साथ दिया उनके रिश्ते के मामा राधे ठाकुर ने। वह रोजाना उन्हें साइकिल से स्कूल छोड़ने जाते थे। इस दौरान कई बार नाले में पानी ज्यादा होने से रोड पर बैठकर पानी कम होने का इंतजार करना पड़ता था। कई बार तो मामा के कंधे पर बैठाकर नाला पार कराया।
मोना को देख दूसरी लड़कियां भी जाने लगीं स्कूल
मोना के मुताबिक जब उनका स्कूल आना-जाना शुरू हो गया तो गांव की 4 अन्य लड़कियों ने भी स्कूल में दािखला ले लिया। बाद में मुख्यमंत्री साइकिल वितरण योजना से साइकिल मिलने पर सभी साथ में स्कूल जाने लगीं। मोना ने कौड़िया में 10वीं तक पढ़ाई के बाद फिर गाडरवारा में पढ़ाई की और बाद में भोपाल के नूतन कॉलेज में प्रवेश लिया जहां से एमएससी फूड एंड न्यूट्रीशियन का कोर्स किया।
मिले ये पुरस्कार और उपलब्धियां
- 17 फरवरी 2018 को मुंबई में फेमिना प्रेजेंटेशन में वुमेन सुपर अचीवर अवॉर्ड मिला।
-23 जनवरी 2018 में पुणे में उच्च िशक्षित आदर्श युवा सरपंच पुरस्कार मिला।
- 17 दिसंबर 2017 में जोधपुर यूथ पार्लियामेंट ने मोना को भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्र निर्माण पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
- 11 दिसंबर 2017 में दिल्ली में आयोजित हुए भारत-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप समिट में मप्र का प्रतिनििधत्व करते हुए वन यूथ वन कल्चर थीम पर लोकतांत्रिक व्यवस्था व स्मार्ट विलेज पर विचार व्यक्त किए।
- मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग ने महिला सशक्तिकरण से डॉक्यूमेंट्री मोना के ऊपर बनाई है।
इन कार्यों को कराकर बदली गांव की सूरत
-कुपोषित बच्चों को गोद लेकर आंगनवाड़ी तक पहुंचाया और उनकी सेहत सुधारी।
-मुक्तिधाम जाकर महिलाओं-युवतियों के वहां न जाने की न केवल परंपरा तोड़ी, बल्कि अतिक्रमण हटवाकर शेड बनवाया।
-185 साल पुराने तालाब का जीर्णोद्धार कराकर उसके पानी को दैनिक उपयोग के लायक बनवाया।
- सरपंच निधि से पंचायत की 3 छोटी कच्ची सड़कों का निर्माण कराया।
-बेटी के जन्म पर बैंडबाजे के साथ उत्सव मनाने और उपहार देने की परंपरा शुरू की।
-जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए शासन की योजनाओं से करीब 100 गोबर गैस संयंत्रों का निर्माण कराया।
-बच्चों को परीक्षा की तैयारी कराने के लिए सरपंच पाठशाला की शुरुआत कराई। यहां उच्च शिक्षित युवाओं के साथ वे खुद पढ़ाती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.