यूपी के रायबरेली की महिलाएं बांस से चीजें बनाकर अपनी रोजी-रोटी चला रही हैं। इससे महिलाएं खुद तो स्वावलंबी हो ही रही हैं और साथ ही आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी साकार कर रही हैं....
अगर आपको जिंदगी में कुछ भी हासिल करना है तो इसके लिए एक बेहद जरूरी शर्त है और वो है आपके मजबूत इरादे। फिर चाहें कितनी भी मुश्किलें आएं, आपकी जीत पक्की है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के डलमऊ विकास खंड की महिलाओं ने भी अपने मजबूत इरादों से ऐसा काम कर दिखा रही हैं कि आज वे अकेले दम पर भी अपने पूरे परिवार का पेट पाल रही हैं।
लॉकडाउन में पति का काम नहीं रहा तो दाने-दाने को तरसे बच्चे
यहां की रहने वाली संपाति बताती हैं कि उसका पति सालों से भंगार का काम करता आ रहा था। पर जब लॉकडाउन लगा तो पति का काम एकदम बंद हो गया। वह घर पर ही रहने लगा। काम बंद हो जाने से बच्चों समेत पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज होने लगा। समझ नहीं आ रहा था कि कैसे दो जून की रोटी हम खाएं। ऐसे में राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के तहत गांव में संचालित 'रोशनी स्वयं सहायता समूह' से संपाति जुड़ीं।
पति भी जुड़ा पत्नी के काम से
घर के काम से फुर्सत पाकर वह बांस के बर्तन बनाने का काम करने लगी। हाथ में कुछ पैसा आया तो खाली बैठा पति भी संपाति के काम में ही जुट गया। दोनों के प्रयासों से अच्छी आमदनी हो रही है। अब खाने-पीने को भी मिल रहा है और सभी बच्चे पढ़ाई कर पा रहे हैं।
अपने घर के छह लोगों का पेट पाल रही रन्नो
गांव की रन्नो भी कहती हैं कि बांस के बर्तन से ही परिवार पलता है। बांस से हर तरह के बर्तन बन जाते हैं। समूह का सहयोग भी मिलता है और किसी के आगे हाथ फैलाने की जरुरत भी नहीं पड़ती। छह सदस्यों का परिवार इसी के सहारे जीवन यापन कर रहा है।
दरसअल डलमऊ विकास खंड की महिलाएं बांस से डलिया, पंखे, लैंप, टोकरियां, कई तरह के बर्तन और फर्नीचर इत्यादि बनाकर बेचती हैं और इस तरह अपने घर का खर्च चला रही हैं। कोरोना और लॉकडाउनके कारण घर के पुरुषों की कमाई ठप हो गई थी। कुछ यही कारण रहा कि उनके इन भागीरथ प्रयासों को अब घर के पुरुषों का भी साथ मिल रहा है और परिवार की सूरत भी बदल रही है
महिला स्वयं सहायता समूह
दी जीवन मे नई रोशनी
राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के तहत ज्योतियामऊ गांव में संचालित 'रोशनी स्वयं सहायता समूह' की कोषाध्यक्ष माधुरी कहती हैं कि इस पहल से कई लाभ मिले हैं। जीवन मे बदलाव भी आया है, अब यही रोजी-रोटी और कमाई का जरिया है। किसी प्रकार के आर्थिक लेन देन की जरुरत पड़ने पर भी सेठ और साहूकार के चक्कर लगाने नहीं पड़ते हैं। समूह स्तर पर ही हल निकल आता है। बांस के बर्तन बनाकर महिलाएं खुद आत्मनिर्भर भी हो रही हैं। घर पर रहकर ही आमदनी भी हो जाती है। यहीं घर पर ही व्यापारी आकर बर्तनों को ले जाते हैं। शादी और लगन के दिनों में बांस के बर्तन और अन्य सजावटी सामान की भी बेहद मांग है। रायबरेली के अलावा कानपुर, फतेहपुर, बांदा, अमेठी आदि जनपदों के व्यापारी भी उनके समूह द्वारा बनाएं गए बर्तनों को ले जाते हैं।
स्वयं सहायता समूह की एक अन्य वरिष्ठ सदस्य रानी कहती हैं कि मेहनत करने में हम कतराते नहीं हैं और न ही नई चीजों को सीखने में पीछे भी नहीं रहते हैं। यदि सरकार हमें इस काम से जुड़ा कोई प्रशिक्षण भी देगी तो हम उसे सीखकर अपने हुनर को बढ़ाने का काम कर सकेंगे।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.