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खानाबदोश समुदाय के बच्चों को उच्च शिक्षा के काबिल बना रहीं हैं आर रेवती

Published - Wed 26, Feb 2020

हमने एक ऐसे समुदाय के लिए एक स्कूल शुरू किया, जो खानाबदोश था। पर अब इसी समुदाय से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले बच्चे निकल रहे हैं। खुद को आगे बढ़ाने के लिए मैंने जो रास्ता चुना, भले ही वह असंभव लग रहा था, पर सुकून भरा जरूर है। यह कहना है तमिलनाडु के नागपत्तनम जिले की रहने वाली आर रेवती का।

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खानाबदोश समुदाय के बच्चों को उच्च शिक्षा के काबिल बना रहीं हैं आर रेवती
नई दिल्ली। हमने एक ऐसे समुदाय के लिए एक स्कूल शुरू किया, जो खानाबदोश था। पर अब इसी समुदाय से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले बच्चे निकल रहे हैं। खुद को आगे बढ़ाने के लिए मैंने जो रास्ता चुना, भले ही वह असंभव लग रहा था, पर सुकून भरा जरूर है। यह कहना है तमिलनाडु के नागपत्तनम जिले की रहने वाली आर रेवती का।
उनके अनुसार मैं पेशे से पत्रकार और फिल्म उद्योग से संबंधित एक कंपनी में सहयोगी निर्देशक थी। यह सब वर्ष 2004 में शुरू हुआ, जब सुनामी के प्रभाव ने तमिलनाडु के निवासियों का जीवन बदल दिया। हजारों लोग बेघर हो गए। मैं और मेरे कुछ दोस्त सुनामी से प्रभावित लोगों की मदद कर रहे थे। सुनामी के प्रभाव में बूम बूम माटुकरन नामक एक घुमंतू समुदाय भी आया। इस समुदाय के लोगों को राहत शिविरों से निकाल दिया गया था और वे एक सार्वजनिक पार्क में रह रहे थे। उनके बच्चे भीख मांगते थे। एक बार मैंने भीख मांग रही एक बच्ची का पीछा किया। बच्ची हमें पार्क तक ले गई। हमने समुदाय के सदस्यों को खाद्य पदार्थ भेजने के प्रयास किए। पर मैंने देखा कि उन तक किसी भी तरह की राहत सामग्री पहुंचने से रोका जा रहा था। आपदा के वक्त इस तरह की नफरत और भेदभाव चौंकाने वाला था। समुदाय के बच्चों में कुपोषण से होने वाली बीमारियां फैली हुई थीं। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। हमने प्रभावित बच्चों को वहां से बाहर निकाला और अस्पतालों में भर्ती कराया।

समुदाय को बताया, शिक्षा ही एकमात्र आगे बढ़ने का रास्ता
मैंने देखा कि बच्चे इधर-उधर घूमते रहते थे, ऐेसे में उन्हें शिक्षित करना आवश्यक था। हमने पार्क के पास ही एक घर किराये पर लिया और स्कूल की शुरुआत की। मैंने और मेरे दोस्तों ने स्कूल शुरू करने में अपना पैसा लगाया। पर बच्चों की संख्या बढ़ने के बजाय घटती जा रही थी। बहुत जल्द, हमें एहसास हुआ कि इसका असर नहीं हो रहा था। इसलिए हमने वनविल ट्रस्ट का गठन किया। जिसके माध्यम से एक स्थायी स्कूल का संचालन किया जाना था। मेरे पास पैसे नहीं थे और समुदाय के लोग उस पैसे को बचा रहे थे, जिसे बच्चे भीख मांगकर कमा रहे थे। बच्चे हमारी पहली प्राथमिकता थे, इसलिए हमने समुदाय के साथ मजबूत संबंध बनाए और उन्हें आश्वस्त किया कि शिक्षा ही आगे बढ़ने का रास्ता है। यह सुनिश्चित किया गया कि स्कूल ही वह जगह है, जहां से निकलकर बच्चे अपने जीवन के निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होंगे।

दोस्तों और टीम ने इकट्ठा किया धन
हमारे दोस्तों और टीम के सदस्यों ने धन इकट्ठा करने का काम शुरू किया। और अंतत: हम एक पूर्णकालिक स्कूल की स्थापना करने में कामयाब हो गए। अब भी, ट्रस्ट मुख्य रूप से व्यक्तिगत दान पर चलता है और यह एक बारहमासी चुनौती है, जिसके लिए हम काम करते हैं। हम बच्चों के बीच कुपोषण को कम करने में सफल रहे हैं और यह हमारी सबसे बड़ी सफलता है। एक और चुनौती परिवारों को सरकार से राहत और पुनर्वास प्रमाण पत्र दिलाने की है। हमने जिम्मेदार आधिकारियों के चक्कर लगाकर कुछ बच्चों के लिए सामुदायिक प्रमाण पत्र प्राप्त किए हैं। अब बहुत से युवा हैं, जो हमारी मदद करते हैं। वनविल स्कूल में कई स्वयंसेवक हैं। मुठ्ठी भर बच्चों के साथ शुरू हुए इस स्कूल में अब दो सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। हमारा मकसद हमेशा शिक्षा के माध्यम से समानता लाना रहा है।