अपना शहर, परिवार घर बार छोड़कर बड़े शहरों में मजदूरी करने आने वाले परिवारों के बच्चे या तो पढ़ नहीं पाते या फिर उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। इन बच्चों के लिए ऋचा प्रशांत ने एक बीड़ा उठाया और आज वह एक लाख बच्चों को मिडडे मील और एक हजार कंबल वितरण कर चुकी हैं।
दिल्ली की ऋचा प्रशांत द सुनय फाउंडेशन चलाती हैं। इस फाउंडेशन को चलाने वाली ऋचा प्रशांत के प्रयासों से आज माइग्र्रेंट बच्चों को एक अच्छी जिंदगी मिल रही है। कॉर्पोरेट करियर छोड़कर इस अभियान को शुरू करने वाली ऋचा हेव्लेट पैकर्ड कंपनी में मोटे पैकेज की नौकरी करती थीं। 2009 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और द सुनय फाउंडेशन की नींव रखी। उन्होंने जो एनजीओ बनाया, उसका उद्देश्य सिर्फ इतना था कि जरूरतमंद तबके से आने वाले बच्चों, महिलाओं को शिक्षा व रोजगारपरक प्रशिक्षण देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया जाए और भविष्य सुधार जाए। शुरुआत में उनको कई समस्याओं से जूझना पड़ा। लोगों ने उनका मजाक बनाया, लेकिन धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ने लगे।
बैग से लेकर मिडे मील तक दिया
गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए ऋचा की संस्थान ने शुरुआत में बच्चों को स्कूल बैग, स्टेशनरी, कॉपी किताबें, मिड डे मील की जिम्मेदारी ली। धीरे-धीरे उनकी संस्थान ने दिल्ली, कोलकता, बिहार में अपने सेंटर स्थापित किए जहां वह बच्चों को मुफ्त में शिक्षा, किताबें, स्टेशनरी, स्कूल यूनिफार्म, और साथ ही, मिड-डे मील भी उपलब्ध करा रही है। जब से उन्होंने काम शुरू किया है, यहां पर एक लाख से भी ज्यादा मिड-डे मील, 1000 कंबल और 1, 500 स्कूल यूनिफार्म बांटे गए हैं। उन्होंने अब तक लगभग 500 बच्चों का स्कूलों में भी दाखिला कराया है।
बच्चों को सुरक्षित वातावरण देना है लक्षय
ऋचा की संस्था कामगार मजदूरों और गरीब तबके के बच्चों को सुरक्षित वातावरण में पढ़ाई का माहौल दे रही हैं। उनकी संस्था का स्कूल प्ले स्कूल के क्रेच जैसा है, जहां वह बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार करते हैं। यहां आने वाले सब बच्चे स्कूल जायेंगे, लेकिन दिन के चार घंटों की जिम्मेदारी उनकी संस्था की है कि उन्हें खाना खिलाया जायेगा, शिक्षा मिलेगी और उनका पूरा ध्यान रखा जायेगा। अभी उनके पास 300- 400 बच्चे हैं। पिछले दस सालों में वे लगभग 500 बच्चों को फॉर्मल स्कूल में दाखिला दिलाने में कामयाब रहे हैं। ऋचा के साथ 100 वॉलंटियर्स काम कर रहे हैं, जिनमें 8 से 80 साल तक की उम्र के लोग शामिल हैं। वे लोग हर सम्भव तरीके से काम करते हैं। इस फाउंडेशन को अब दोस्तों और परिवार के बाद कुछ अन्य संगठनों का सपोर्ट भी मिल रहा है। अब वे अपने मौजूदा केंद्रों की क्षमता बढ़ाने के अलावा, दिल्ली में कम से कम छह और स्थानों पर यह कार्यक्रम लागू करना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, उनकी सिर्फ यही कोशिश है कि दिल्ली जैसे शहर में कोई भी बच्चा अपने माँ-बाप के काम पर जाने के बाद इधर-उधर न भटके।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.