महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की सविता डकले ने सिर्फ एक सफल किसान हैं, बल्कि महिलाओं को भी इस दिशा में सफल बना रही हैं।
नई दिल्ली। शहरी चमक-दमक और सुविधाओं से दूर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक छोटे से गांव में जन्म लेने वाली सविता का परिवार बड़ा था। उनके अलावा घर में चार भाई-बहन और थे। पिता मजदूरी करने के लिए औरंगाबाद बस गए और मां ने सब्जी बेचकर गुजारा शुरू किया। परिवार का गुजारा मुश्किल से हो रहा था तो सविता की पढ़ाई पर भी मुश्किलें आने लगीं थीं। जैसे-तैसे दसवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी की और भाई-बहनों की पढ़ाई जारी रखवाने के लिए फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। सविता को पढ़ाई करने का समय नहीं मिलता, नतीजा वो दसवीं में फेल हो गईं। जब सविता 17 साल की हुईं, तो 2004 में उनकी शादी औरंगाबाद जिले के पेंडगांव के एक किसान से कर दी गई। पति के पाए एक एकड़ जमीन थी, जिसपर वो कपास की खेती करते थे। यहीं से सविता का जीवन और उद्देश्य बदला और शुरू हुई एक नई जिंदगी।
जब सविता ने सीखी खेती
शादी के बाद पढ़ाई-लिखाई करना तो मुमकिन नहीं था, ऐसे में सविता ने पति के साथ रहकर खेती का काम सीख लिया। इसके पीछे भी भी एक खास वजह थी। सविता को खेती-बाड़ी नहीं आती थी, तो गांव की औरतें उसपर हंसती थीं। थोड़े ही दिन में वो इस काम में माहिर हो गईं। पहले जहां वो एक दिन में दस किलो ही कपास चुन पाती थीं, सीखने के बाद वो अस्सी किलो तक कपास चुनने लगीं।
गांव आई एक संस्था
पढ़ाई छूट चुकी थी, सारे सपने धरे रह गए थे। अब तक तो सविता ने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया और खेती-बाड़ी को जिंदगी समझकर काम करने लगीं। इसी बीच गांव में एक ‘सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेन एसोसिएशन’ नाम की संस्था आई। सेवा संस्थान से जुड़कर सविता ने काम करना शुरू किया। संस्था द्वारा ग्रामीण महिलाओं को मैनेजेरियल स्किल्स व स्वरोजगार के अलग-अलग तरीकों की ट्रेनिंग दी जाती है। इन स्वरोजगार योजनाओं में जैविक खेती की ट्रेनिंग भी होती है। सविता ने 2018 में इसका प्रशिक्षण लिया। सविता ने जैविक खेती के बारे में सीखा। इस ट्रेनिंग के दौरान उन्हें समझ में आया कि केमिकल खाद और कीटनाशक डालकर किस तरह किसान दूसरों की सेहत के साथ तो खिलवाड़ करते ही हैं, साथ ही अपनी ज़मीन को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इस ट्रेनिंग में जैविक खाद बनानासीखकर सविता ने सबसे पहले अपने खेत में प्रयोग करने शुरू किए।
गांव में शुरू की जैविक खेती
प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सविता ने जैविक खेती शुरू की और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित किया। घर के काम से फ्री होकर वह खेत पर पहुंच जातीं और शाम ढले फिर घर को संभालती। इसके साथ-साथ सविता ने गांव की महिलाओं को भी इसके बाद में जागरुक करना शुरू किया और जैविक खेती को जीवन का लक्षय बना लिया। शुरू में सभी ने सविता का मजाक बनाया और किसी ने भी जैविक खेती को गंभीरता से नहीं लिया। सविता ने हिम्मत नहीं हारी। वह कृषि-प्रदर्शनी, खेती किसानी से जुड़े अन्य कार्यक्रमों में जाने लगीं और सीखने लगीं। जो वो सीखतीं, उसे आकर अपने खेत में आजमाती। नतीजा ये हुआ कि खेत में फसल लहला उठी। सविता ने कपास की खेती छोड़कर अनार लगाया और जैविक तरीके से खेती की। फसल भी खिल उठी। गांव की महिलाओं ने जब सविता के हुनर को देखा तो हैरान रह गईं।
गांव की महिलाओं को शिक्षित करना शुरू किया
सविता की मेहनत रंग लाई और गांव की महिलाओं ने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाए। सविता ने गांव की दो सौ महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरूरू किया। साथ ही गांव के पहले महिला बचत गुट की शुरुआत की। एक गुट से शुरू हुआ सविता का प्रयास दस बचत गुट तक पहुंच गया। सविता अपने पांच साल के बेटे आदित्य और ग्यारह साल की बेटी कन्यश्री को भी खेती की बारीकियां बतातीं। उन्होंने अंग्रेजी मीडियम में उनका दाखिला कराया। खेती के साथ-साथ सविता कपड़े सिलने का काम करने लगीं और बच्चों की बेहतर शिक्षा देने की ओर बढ़ती गईं।
जब दोबारा दी दसवीं की परीक्षा
बचपन से ही सविता बहुत पढ़ना चाहती थीं और नर्स बनना चाहती थीं, लेकिन पारिवारिक स्थिति सही न होने के कारण सविता अपना सपना पूरा न कर सकीं। बच्चों को शिक्षित करते हुए सविता ने सोचा क्यों न फिर परीक्षा दी जाए। सविता ने दुबारा दसवीं में दाखिला लिया और 2 जनवरी 2020 को परीक्षा भी दी है। वह परीक्षा पास कर ग्यारहवीं में दाखिला लेना चाहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.