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गूगल के खिलाफ शैनॉन जीतीं हक की लड़ाई

Published - Thu 13, May 2021

गूगल जैसी बड़ी कंपनी में अस्थायी कर्मचारी शैनॉन वेट ने न केवल अपने हक की लड़ाई लड़ी और जीती, बल्कि इस तरह उन्होंने बाकी लोगों को भी यह रास्ता दिखाया कि कंपनी में काम करने वाले छोटे से छोटे कर्मचारियों के भी हक होते हैं और वो उन्हें पाने के हकदार हैं। इस मामले में गूगल को भी मानना पड़ा कि कंपनी की हरेक कर्मचारी को कार्यस्थल के माहौल और मिलने वाले वेतन के बारे में चर्चा करने का अधिकार है।

shenon wet

शैनॉन वेट की लड़ाई गूगल से तब शुरू हुई , जब उसे कंपनी से मिली पानी की बोतल टूट गई। जिस डाटा सेंटर में वह काम कर रही थीं, वहां बेहद गर्मी थी। बोतल टूटने के बाद उन्होंने कंपनी से एक और बोलत मांगी, लेकिन गूगल के लिए उनसे काम कराने वाले ठेकेदार ने बोतल देने से इनकार कर दिया। इसके बाद कई और भी घटनाएं होती गईं और शैनॉन समझ गईं कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है, लेकिन वह इसे कतई बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थीं। दरअसल, शैनॉन को गूगल ने सीधे भर्ती नहीं किया था। वह एक एजेंट कंपनी के जरिए गूगल की कर्मचारी बनी थी।

 

डाटा सेंटर में काम करने वाली शैनॉन के साथ होता था भेदभाव
2018 में इतिहास की डिग्री लेने वाली शैनॉन ने अमेरिकी शहर साउथ कैरोलाइना में गूगल के एक डाटा सेंटर में काम करना शुरू किया था। उन्हें हर घंटे के 15 डॉलर मिलते थे। शैनॉन कहती हैं, "मैं सर्वर ठीक करती थी, जिनमें हार्ड ड्राइव बदलनी पड़ती थीं, मदरबोर्ड बदलने पड़ते थे, भारी बैटरी उठानी पड़ती थीं। ये एक मुश्किल काम था।" डाटा सेंटर में बेहद गर्मी होती है। बोतल टूटने के बाद उसने जब दूसरे कर्मचारियों से बात की तो पता चला कि स्थायी कर्मचारियों को गूगल कंपनी लॉ के हिसाब से पैसे देता है, जबकि अस्थायी कर्मचारियों के साथ वेतन को लेकर भेदभाव होता है। यही नहीं, काम के घंटों को लेकर और अन्य सुविधाओं को लेकर भी कंपनी में उसने भेदभाव देखा। उसके साथ काम करने वाली उनकी महिला मित्र स्थायी वर्कर थी और उससे शैनॉन को पता चला कि जब भी उसकी वॉटर बोतल टूटती है और वो नई बोतल के लिए कंपनी में कहती है तो तुंरत ही उसे नई बोतल दे दी जाती है।

 

एजेंट कंपनी के जरिए गूगल की कर्मचारी बनी थीं
शैनॉन गूगल में ठेके पर काम करती थीं। इसका मतलब यह है कि वो काम तो गूगल के लिए कर रही थीं, लेकिन उन्हें नियुक्त एक मोडीज नाम की कंपनी ने किया था। यह एडेको नाम की एक कंपनी का हिस्सा है, जिसकी ऐसी कई कंपनियां हैं। गूगल में इस तरह ठेके पर काम कराना सामान्य बात है। एक रिपोर्ट के मुताबिक गूगल में आधे कर्मचारी ऐसे हैं, जो ठेके पर काम करते हैं। शैनॉन कहती हैं कि जब महामारी आई तो उनका काम मुश्किल होता गया, एक शिफ्ट में होने वाला काम बढ़ गया। शैनॉन कहती हैं, "मई 2020 में गूगल ने घोषणा की कि लोगों का मान रखते हुए कंपनी कोरोना महामारी का सामना करेगी। कंपनी ने कहा कि हर कर्मचारी को बोनस मिलेगा, जिनमें ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं। लेकिन जब बोनस मिलने का समय आया तो हमें यह नहीं मिला। इसे लेकर हम चिंतित थे, क्योंकि कई चीजों के लिए हमें पैसे की जरूरत थी। शैनॉन के अनुसार कंपनी ने कहा कि वेतनभत्तों पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए।

शैनॉन को प्रबंधक की तरफ से मिला संदेश
लेकिन शैनॉन ने कहा कि यह नाइंसाफी है। उसने कंपनी में अपने साथी कर्मचारियों से इस बारे में कई बार बात की। आखिरकार शैनॉन के मैनेजर ने उन्हें ईमेल करके कहा कि साथी कर्मचारियों से अपने वेतन के बारे में चर्चा करना ठीक नहीं है। लेकिन उनको बोनस दिया जा रहा है। शैनॉन को बोनस तो मिल गया, लेकिन इतने समय तक काम करने के बाद भी उसे स्थायी नहीं किया गया। वह निराश हो गईं। उन्हें उम्मीद थी कि गूगल में उन्हें स्थायी नौकरी मिल जाएगी। शैनॉन ने जब इस बारे में जानकारी ली तो पाया कि कंपनी में स्थायी तौर पर अस्थायी कर्मचारी रखने की संस्कृति बढ़ती जा रही है। वह कहती हैं कि कंपनी में ऐसे अस्थायी कर्मचारी कई थे, जो कभी स्थायी नहीं होने वाले, भले वे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें। शैनॉन कहती हैं कि वो प्रंबधन के रवैये से खीज रही थीं और फिर वो पल आ गया जब उन्होंने अपना आपा खो दिया। वह कहती हैं, "डेटासेंटर में काफी गर्मी होती है। गूगल ने हमें एक पानी की बोतल दी, लेकिन उसका ढक्कन मुझसे टूट गया।" ऐसा उनकी एक और सहयोगी के साथ भी हुआ। वह स्थायी कर्मचारी थीं। शैनॉन के मुताबिक उनकी सहकर्मी को तो नई बोतल दे दी गई, पर उन्हें नहीं। एक ऐसा समय आ गया जब उनके सब्र का बांध टूट गया। वह घर गईं और फेसबुक पर उन्होंने एक पोस्ट लिख दी।

फेसबुक पर गूगल की गलत नीतियों के बारे में लिखा
शैनॉन ने कंपनी की गलत नीतियों से हताश होकर फेसबुक पर लिखा। शैनॉन बताती हैं, अगले दिन जब मैं काम पर गई तो मुझे कॉन्फ्रेंस रूम में बुलाया गया, जहां मैनेजरों समेत सब लोग मौजूद थे। उन्होंने मुझसे कहा कि फेसबुक पर मैंने जो पोस्ट की है, वह कंपनी के साथ किए गए मेरे एग्रीमेंट का उल्लंघन है। मुझसे कहा गया कि मैं कंपनी के लिए खतरा हूं। मुझसे तुरंत अपना बैज और लैपटॉप वापस करने को कहा गया। वो मुझे दफ्तर से बाहर ले गए।" गूगल के कर्मचारियों ने जनवरी 2021 में एल्फाबेट वर्कर्स यूनियन बनाई थी। इसे अमेरिका के नेशनल लेबर रिलेशंस बोर्ड ने मान्यता नहीं दी है। कई बार इसे माइनॉरिटी यूनियन भी कहा जाता है, क्योंकि गूगल में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी इसके सदस्य नहीं हैं, लेकिन शैनॉन इसकी सदस्य थीं और यूनियन ने तब उनका मामला उठाया। फरवरी में यूनियन ने शैनॉन की ओर से अनुचित श्रम कानूनों के तहत दो मामले दर्ज कराए। पहला मामला, उन्हें यूनियन के समर्थन में बात करने पर अवैध तरीके से निलंबित करने और दूसरा मामला, उनके मैनेजर के उस कथन के खिलाफ दायर किया गया कि वह अपने वेतन पर चर्चा नहीं कर सकती हैं। मामला जब उछला तो इसके बाद गूगल, मोडीज और अल्फाबेट वर्कर्स यूनियन के बीच समझौता हो गया और इस तरह शैनॉन का निलंबन वापस ले लिया गया।

आखिरकार गूगल ने माना, कर्मचारियों को अपने हक पर बात कर सकते हैं...  
इस समझौते के बाद गूगल ने एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। इसमें कहा गया है कि उसके कर्मचारियों को अपने वेतन, बोनस और कार्यस्थल की दशा पर चर्चा करने का अधिकार है। ये शैनॉन और नई बनी यूनियन के लिए एक जीत थी। अपनी इस एतिहासिक जीत के बाद शैनॉन ने कहा, "इस ट्रिलियन डॉलर कंपनी के वेयरहाउस और डाटा सेंटर में काम कर रहे लोग अपने छोटे-छोटे हक के हनन से थक चुके हैं। उन्हें यह अहसास हो रहा है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों को नहीं सुन रही हैं। अब हम कंपनियों को अपनी बात सुनाएंगे।"

एक कर्मचारी की दुर्लभ जीत
शैनॉन अब फिर से गूगल के डेटासेंटर में काम नहीं करना चाहतीं, बल्कि इतिहास में अपनी पीएचडी करना चाहती हैं। इतनी बड़ी कंपनी के खिलाफ लड़ाई जीतकर उन्होंने इतिहास की किताबों में अपनी जगह तो पक्की कर ही ली है। यह किसी बड़ी कंपनी के खिलाफ एक कर्मचारी की दुर्लभ जीत है।

- story by sunita kapoor