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खेत से रसोई तक जैविक उत्पाद पहुंचा रहीं श्रिया

Published - Tue 08, Dec 2020

मुंबई की रहने वाली श्रिया मिलावटी खाद्य पदार्थों से परेशान रहती थीं। जब वह विदेश से पढ़ाई करके लौटीं तो अपने देश में जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने का फैसला किया और किसानों के साथ मिलकर काम करने लगीं। उनकी यह मेहनत रंग लाई। अब वह खेत से रसोई तक जैविद उत्पाद पहुंचा रही हैं।

shriya nahta

नई दिल्ली। श्रिया नाहटा मुंबई की रहने वाली हैं। स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने बिजनेस एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से स्नातक पूरा किया और भारत आ गई। श्रिया की मानें तो मेरी बहन पहले से ही अपने रेस्त्रां उद्योग के लिए पूर्ण जैविक खेती करने वाले किसानों की खोज कर रही थीं। मैंने किसानों से संपर्क किया, तो पता चला कि किसान बाजार तक आसानी से नहीं पहुंच पाते हैं। अत्यधिक फसल उत्पादन के लिए वे मिलावटी खाद व कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। इससे उत्पन्न फसलें स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होती हैं। अगर उन्हें उपज की सही कीमत मिले, तो वे मिलावटी खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करेंगे। तब मुझे लगा इनके लिए एक ऐसी पारिस्थितिकी होनी चाहिए, जिसमें जैविक खाद्य उत्पादक किसान ग्राहकों तक सीधे पहुंच सकें। मुझे लगा कि किसानों के साथ मिलकर काम करना ज्यादा बेहतर होगा, इसलिए मैंने उन किसानों से संपर्क किया, जिन्हें जैविक खेती और उसके फायदे के बारे में जानकारी थी। इसके बाद मैंने जामा ऑर्गेनिक्स कंपनी बनाई और किसानों के खेत से लोगों के घर तक जैविक खाद्य पदार्थ, मसाले, फल आदि पहुंचाने की शुरुआत की। मेरे साथ हजारों किसान जुड़े हैं। उनकी आय बेहतर हो रही है।        

स्थानीय उत्पाद के लिए आदिवासी समुदाय को जोड़ा

मैंने असम से ब्लैक राइस और चाय मंगानी शुरू की। दक्षिण भारत से काली मिर्च और कोंकण से हल्दी लेना शुरू किया। इसके अलावा मशरूम और हिमालयन पिंक साल्ट जैसे जैविक उत्पाद के लिए मैंने अपने साथ आदिवासी समुदाय को जोड़ा। 

शुरूआत में रही चुनौती 

शुरुआत में, स्वच्छ, स्थानीय उपज का विचार न केवल बेचने के लिहाज से कठिन था, बल्कि इसलिए भी कि हम एक दिन में केवल एक-दो डिलीवरी ही कर पा रहे थे और यह मात्रा परिवहन लागत को वहन करने के लिए भी पर्याप्त नहीं थी।

घरेलू उत्पादों पर रहा फोकस

हमने उत्तराखंड के किसानों के साथ अपना बेस बनाया। किसानों के साथ-साथ मैंने कारीगरों और स्वयं सहायता समूहों को भी जोड़ा, जो अचार, जैम, तेल और चॉकलेट जैसे घर के बने उत्पादों को तैयार करते हैं।  फिर मैंने इन्हें अलग अलग-अलग शहरों में भेजना शुरू कर दिया।