चेन्नई की एक छोटी बच्ची लक्ष्मी साई ने 58 मिनट में 46 लजीज व्यंजन बनाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम कर दिया है।
नई दिल्ली। रसोई में हाथ आजमाना अगर सीखना है तो चेन्नई की छोटी बच्ची लक्ष्मी साई से सीखिए। खाना बनाने की कला में लक्ष्मी को इतना महारथ हासिल है कि उन्होंने महज 58 मिनट में 46 लजीज व्यंजन बनाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया। साथ ही इतने कम समय में इतनी डिश बनाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है। लक्ष्मी ने 'यूनिको बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में अपना नाम दर्ज कराया है।
मां से सीखा खाना बनाना
एसएन लक्ष्मी साई श्री का कहना है कि उन्होंने अपनी मां से खाना बनाना सीखा है। उन्हें खाना बनाने में मजा आता है और उनका ये शौक धीरे-धीरे जुनून में बदल गया और उन्होंने सोचा कि क्यों ने इसमें ही कुछ नया किया जाए और इसकी तैयारी शुरू कर दी। वह जल्दी से जल्दी खाना बनाने की प्रैक्टिस करने लगीं और नई-नई डिश बनाने लगीं। इसी शौक ने उनके नाम एक अनोखा रिकॉर्ड कर दिया है। वह कहती हैं कि इस मुकाम को हासिल करने के बाद वह बेहद खुश हैं।
लॉकडाउन में खाना बनाना शुरू किया
लक्ष्मी ने खाना बनाने में तब हाथ आजमाना शुरू किया, जब देशभर में लॉकडाउन लगा था। स्कूल बंद तो थे, तो उन्होंने इस ओर कदम बढ़ाया और सीखना शुरू किया। पिता ने उन्हें विश्व रिकॉर्ड बनाने का प्रयास करने का सुझाव दिया। तब लक्ष्मी ने सोचा कि वह जरूर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाएंगी और उन्होंने ऐसा कर भी दिखाया। लक्ष्मी की मां एन कलीमगल कहती हैं कि लक्ष्मी को खाना बनाने में रूचि है। बेटी के रिकॉर्ड में पिता का भी बड़ा हाथ है। लक्ष्मी के पिता ने कुकिंग के वर्ल्ड रिकॉर्ड पर रिसर्च करना शुरू किया। उन्होंने पाया कि केरल की एक 10 वर्षीय लड़की साणवी ने लगभग 30 व्यंजन बनाए। इसके बाद उन्होंने लक्ष्मी को इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए प्रेरित किया, जिसे लक्ष्मी ने सच कर दिखाया है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.