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मोदी जी, पुरुषों से कहिए, घर के काम में हाथ बटाएं

Published - Fri 31, Jul 2020

कोरोना वायरस के दौर में लॉकडाउन के दौरान घरेलू कामकाज़ कौन करेगा, इसे लेकर चली रस्साकसी ने भारत के घरों में मौजूद जेंडर पॉलिटिक्स को सतह पर ला दिया है। यह रस्साकशी अभी तक जारी है क्योंकि इस दौरान यह बहस छिड़ी कि क्यों घर का सारा काम केवल महिलाएं ही करें। फिर चाहें व कामकाजी हों या घरेलू। इन्हीं सब बातों को लेकर लेखिका सुबर्णा घोष ने एक याचिका दायर की है। जिसमें कहा कि क्या घर के कामों पर केवल महिलाओं का नाम लिखा होता है। साथ ही वह चाहती हैं कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर अपनी राय रखें। उनका कहना है कि देश के अधिकतर पुरूष आजकल मोदी जी की बात मानते हैं, इसलिए उन्हें इस मुद्दे पर जरूर बोलना चाहिए। वह चाहती हैं कि पीएम भारतीय पुरुषों को इस बात के लिए उत्साहित करें कि वे घर का काम बराबरी से करने की अपनी जिम्मेदारी को समझें। हालांकि उनके इस बयान के बाद कई लोग सोशल मीडिया पर उनका विरोध भी कर रहे हैं कि मोदी जी को इन बेकार बातों के लिए समय नहीं जबकि कुछ ने उनका समर्थन भी किया है।

Subarna ghosh

नई दिल्ली। भारत में घरेलू कामकाज आमतौर पर एक बोझिल और थकाऊ काम होता है। पश्चिमी देशों के उलट यहां हर परिवार में डिशवॉशर, वैक्यूम क्लीनर या वॉशिंग मशीन नहीं होती। ऐसे में हर थाली या कटोरी हाथ से धोनी पड़ती है। कपड़ों को बाल्टियों में भिगोकर धोना पड़ता है और सूखने के लिए लटकाना पड़ता है। सूखने के बाद तह बनाकर अलमीरा में रखने होते हैं। घरों को झाड़ू और पोंछे से साफ करना पड़ता है। इसके बाद बच्चों और बड़ों की देखभाल भी करनी पड़ती है। उनकी फरमाइश का खाना, नाश्ता बनाना पड़ता है। देश के उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों में घर का कामकाज घरेलू सहायकों पर टिका होता है। इनमें पार्टटाइम रसोइये, साफ-सफाई करने वाले और आया शामिल होते हैं। इसके अलावा मध्यम मध्यमवर्गीय में भी साफ-सफाई वाली सहायकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जहां पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा हैं, वहां आया भी रखी जाती हैं। लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब सभी का घर पर आना बंद हो गया तो काम को लेकर घरों में झगड़े शुरू हो गए क्योंकि अचानक से घर के काम की पूरी जिम्मेदारी घर की महिलाओं पर आ गई और उनका काम अचानक कई गुना बढ़ गया। इन्हीं सब बातों के जवाब खोजने के लिए लेखिका सुबर्णा घोष ने यह याचिका डाली है।

चेंज.ऑर्ग पर डाली है याचिका

याचिका में पूछा गया है , क्या झाड़ू पर यह लिखा होता है कि इसे केवल महिलाएं ही चलाएंगी? पोंछा केवल महिलाएं लगाएंगी। यह याचिका चेंज.ऑर्ग पर डाली गई है। इसमें यह भी पूछा गया है, क्या वॉशिंग मशीन पर लिखा होता है कि इस केवल महिलाएं चलाएंगी। क्या वॉक्यूम क्लीनर पर लिखा होता है कि यह केवल महिलाएं चलाएंगी ? यह कहां लिखा है कि खाना केवल महिलाएं बनाएगी, कपड़े केवल महिलाएं सुखाएगी। उनके अनुसार वह खाना बनाते-बनाते, साफ-सफाई करते और कपड़े धोते-धोते थक चुकी हैं। ऊपर से उन्हें अपने दफ्तर का काम भी घर से करना होता है। मेरी जैसी तमाम महिलाएं ऐसी ही परिस्थिति में हैं। घर के कामकाज का जिम्मा केवल महिलाओं पर होता है। मैं खाना बनाती हूं, साफ-सफाई करती हूं, बिस्तर बिछाती हूं, कपड़े धोती हूं, कपड़े तह करती हूं और बाकी दूसरे काम भी करती हूं। अब थक गई हूं। मुंबई की रहने वाली घोष ने बताया कि उनके जैसी न जाने कितनी महिलाएं इस परिस्थति से जूझी होंगी या जूझ रही हैं। यह याचिका उन्हीं के जीवन के अनुभवों का सार है। 

लॉकडाउन में बुरी तरह थक गई थीं 

वह कहती हैं कि उनके पति एक बैंकर हैं। वह घरेलू कामकाज करने वालों में से नहीं हैं। उनका टीनेज बेटा और बेटी कभी-कभार ज़रूर उनकी मदद कर देते हैं। घोष एक चैरिटी चलाती हैं। उन्हें लॉकडाउन में अपने कामकाज से सबसे ज्यादा समझौता करना पड़ा। वह कहती हैं कि लॉकडाउन के पहले महीने में मैं हर वक्त काम करके बुरी तरह से थक गई थी। हमारे परिवार के समीकरण बिगड़ गए थे।  मैंने निश्चित तौर पर काफी शिकायत की। जब मैं शिकायत करती थी तो लोग कहते थे, तो ये सब मत करो।

तीन दिनों तक नहीं किया कोई काम 

एक दिन उन्होंने यह सुनकर की नहीं होता तो यह सब मत करो, मई की शुरुआत में तीन दिनों तक न बर्तन धोए और न ही कपड़े धोए। इसके बाद सिंक बिना धुले बर्तनों से भर चुकी थी। गंदे कपड़ों का ढेर लगातार बढ़ता जा रहा था। उनके पति और बच्चे जान गए थे कि वह बेहद नाराज हैं और उन्होंने इस गंदगी को निबटाना शुरू किया। वह कहती हैं, यह एक मूलभूत सवाल है, फिर भी इस पर ज्यादा लोग बात नहीं करना चाहते, इसलिए वह चाहती हैं कि मोदी जी इस पर बात करें। घोष की याचिका पर अब तक 70,000 से ज्यादा दस्तखत हो चुके हैं. घोष की याचिका पर अब तक 70,000 से ज्यादा दस्तखत हो चुके हैं।

लैंगिक असमानता बड़ा मुद्दा, पीएम को इस पर बात करनी चाहिए

 घोष कहती हैं कि लैंगिक असमानता एक बड़ा मसला, मोदी जी को इस पर बात करनी चाहिए। वे कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि वह इस बारे में जरूर बात करेंगे। मोदी जी को महिलाओं का बड़ा समर्थन हासिल है। ऐसे में उन्हें महिलाओं से जुड़े इस अहम मसले पर जरूर बात करनी चाहिए। साथ ही वह कहती हैं कि ज्यादातर पुरुष अपनी पत्नियों की बजाय प्रधानमंत्री जी की बात ज्यादा मानते हैं, इसलिए उनके कहने पर वह उनकी बात जरूर मानेंगे। 

बिना भुगतान के काम करती हैं घर की महिलाएं

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में शहरी भारत में महिलाओं ने बिना भुगतान वाले देखभाल के काम करने में 312 मिनट खर्च किए। इसके उलट पुरुषों ने इस काम पर महज 29 मिनट लगाए। गांवों की महिलाओं ने  291 मिनट काम किया, जबकि पुरुषों ने केवल 32 मिनट दिए।