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सकारात्मक सोच से सुनीता इटला ने कैंसर को हरा दिया

Published - Fri 12, Mar 2021

अगर हम दिमागी रूप से मजबूत हों और सोच सकारात्मक हो तो हम किसी भी मुश्किल का निडरता से सामना कर सकते हैं और उससे बाहर निकल सकते हैं। अपने कैंसर के सफर के दौरान मैंने भी खुद को पॉजीटिव रखा और खुद पर, भगवान पर और अपने डॉक्टर पर भरोसा रखा। अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को देखकर मुझे जीने की प्रेरणा मिला करती और मैं अंदर ही अंदर खुद से कहती कि, ‘इन बच्चों के लिए मुझे जीना ही होगा’।

sunitha itla

सुनीता इटला को जब अपने दाएं स्तन में कैंसर होने का पता चला, उस वक्त वो अकेली थीं, पति विदेश में नौकरी कर रहे थे। उन्होंने काफी दिनों तक पति को यह बात नहीं नहीं बताया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह सब सुनकर वे परेशान न हो जाएं। उन्होंने उस कठिन परिस्थिति में अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखा और ऑफिस से लेकर दो छोटे बच्चों की देखभाल, डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाना, टेस्ट करवाना, रिपोर्ट दिखाने जाना जैसे काम अकेले ही करतीं रहीं।

अपने उन दिनों को याद करते हुए सुनीता कहती हैं, 2014 की बात है, एक दिन अचानक मुझे अपने दाएं ब्रेस्ट में एक छोटी सी गांठ महसूस हुई। मैंने इस बात को नजरअंदाज नहीं किया और दूसरे दिन ही चेकअप से लिए अपनी गायनोकोलॉजिस्ट (स्त्रीरोग विशेषज्ञ) के पास चली गईं। डॉक्टर ने भी ब्रेस्ट में सिस्ट होने का अंदेशा जताया और उसे कम करने के लिए एक महीने की दवा दी। महीना खत्म होने को था, लेकिन मेरी दवा खत्म हो गई थी, लेकिन गांठ खत्म होने की बजाय बढ़ी हुई लग रही थी। मैं घबरा गई और डॉक्टर की सलाह पर ऑन्कोलॉजिस्ट को दिखाने चली गई। ऑन्कोलॉजिस्ट ने अल्ट्रासाउंड करवाने को कहा। मैंने अगले ही दिन करवा लिया। यह सब मुझे अकेले ही करना पड़ रहा था क्योंकि उन दिनों पति विदेश में नौकरी कर रहे थे। पति परेशान ना हों, इसलिए अभी कुछ भी कहना नहीं चाहती थी। इस बीच मैंने अपनी इस बीमारी के बारे में इतना कुछ पढ़ लिया था कि अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट देखने के बाद मैं समझ गई कि कुछ ठीक नहीं है। अब तो पति को सब कुछ बताना ही था। मेरी सारी बात सुनने के बाद उन्होंने मुझे हौसला दिया और भारत आ गए। जल्दी ही मेरा इलाज शुरू हो गया। डॉक्टर ने मेरी इस तरह से काउंसलिंग की और बहुत सारे ऐसे लोगों के उदाहरण दिए जिनकी बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंचने के बावजूद वे पूरी तरह ठीक हो चुके थे और सामान्य जिंदगी बिता रहे थे। इसीलिए मैं भी ठीक होने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी’। विशाखापट्टनम की सुनीता इटला इस समय अपने परिवार के साथ न्यूजीलैंड में रह रहीं हैं और वहीं की एक कंपनी स्पार्क न्यूजीलैंड टेलीकम्यूनीकेशन में बतौर सीनियर टेस्ट एनालिस्ट कार्यरत हैं।

कैंसर की तीसरी स्टेज थी
सुनीता का कैंसर देर से डिटेक्ट होने के कारण वह तीसरी स्टेज में पहुंच चुका था। इसीलिए उनकी इमरजेंसी में सर्जरी करनी पड़ी। सर्जरी के तीन हफ्तों बाद कीमोथैरेपी शुरू हुई। कीमोथैरेपी के दौरान उन्हें जो शारीरिक कष्ट हो रहे थे, उसके चलते वे खुद को मानसिक रूप से भी कमजोर महसूस करने लगी थीं। लेकिन जल्दी ही उन्होंने इस सबसे खुद को बाहर निकाल लिया।  सुनीता कहती हैं, ‘कीमोथैरेपी के दौरान मुझे बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही थी। मुझे थोड़ी देर बैठना भी भारी पड़ता था। ज्यादातर समय मुझे लेटकर ही बिताना पड़ता था। यह सब मुझे अच्छा नहीं लग रहा था और चाहकर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी। अपने पहले के दिनों की दिनचर्चा के बारे में सोच-सोच कर मेरे आंखों से आंसुओं की धार बह जाती और मैं सोचती क्या वे पहले वाले दिन फिर से वापस आ सकेंगे? ऑफिस में घंटों काम करना, छुट्टी वाले दिन पेंटिंग करना, बैडमिंटन, वॉलीबॉल प्रतियोगिताओं में भाग लेना, बच्चों के लिए उनका मन पसंद खाना बनाना... बीमारी से पहले यह मेरा रूटीन हुआ करता था। वो एक समय था जब मैं खुद को मानसिक रूप से कमजोर महसूस करने लगी थी और मुझे लगता कि क्या मैं फिर से पहले जैसी जिंदगी जी पाऊंगी’?

मुश्किल का निडरता से सामना करें
सुनीता कहती हैं, ‘अगर हम दिमागी रूप से मजबूत हों और सोच सकारात्मक हो तो हम किसी भी मुश्किल का निडरता से सामना कर सकते हैं और उससे बाहर निकल सकते हैं। अपने कैंसर के सफर के दौरान मैंने भी खुद को पॉजीटिव रखा और खुद पर, भगवान पर और अपने डॉक्टर पर भरोसा रखा। अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को देखकर मुझे जीने की प्रेरणा मिला करती और मैं अंदर ही अंदर खुद से कहती कि, ‘इन बच्चों के लिए मुझे जीना ही होगा’। इलाज के दौरान ही मैंने लगातार ध्यान का अभ्यास किया। धीरे-धीरे मेरा उस बीमारी को देखने का नजरिया बदलने लगा और सोच सकारात्मक होने लगी। मेरी इस पॉजीटिव सोच के चलते ही कैंसर तीसरी स्टेज में पहुंचने के बाद भी जल्दी ही इलाज के अच्छे परिणाम आने लगे थे’। यह कहना है विशाखापट्टनम की सुनीता इटला का। सुनीता इस समय अपने परिवार के साथ न्यूजीलैंड में रह रहीं हैं और वहीं की एक कंपनी स्पार्क न्यूजीलैंड टेलीकम्यूनीकेशन में बतौर सीनियर टेस्ट एनालिस्ट कार्यरत हैं। सुनीता को जब कैंसर डिटेक्ट हुआ उस समय उनके पति देश के बाहर नौकरी कर रहे थे। इस बात को उन्होंने काफी दिनों तक पति को नहीं बताया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह सब सुनकर वे परेशान न हो जाएं।  उन्होंने उस कठिन परिस्थिति में अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखा और ऑफिस से लेकर दो छोटे बच्चों की देखभाल, डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाना, टेस्ट करवाना, रिपोर्ट दिखाने जाना जैसे काम अकेले ही करतीं रहीं।  

पेंटिंग और ध्यान लगाने से जिंदगी बदल गई
‘उस दौरान अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को देखकर मैं भावुक हो जाया करती और सोचती अगर मैं ठीक नहीं हो सकी तो इन दोनों की देखभाल कौन करेगा? अपने मन को हल्का करने के लिए यह सब बातें मैं अपनी एक खास दोस्त से शेयर किया करती। वो मुझे समझाती और कहती कि, “मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊंगी और फिर से पहले से भी ज्यादा काम करने लगूंगी”। मेरा ध्यान बीमारी से हटाने के लिए एक दिन वह एक बड़ी सी शीट और पेंटिंग का सामान ले आई। मैंने हर रोज थोड़ी-थोड़ी देर बैठकर उस पेंटिंग को पूरा किया। इलाज के दौरान किया गया यह मेरा पहला रचनात्मक काम था। उस पेंटिंग को बनाकर मुझे यह आत्मविश्वास आने लगा था कि अगर मैं हिम्मत करूं तो देर तक बैठ सकती हूं। उसी दौरान मुझे अपने घर के पास ही मेडिटेशन सेंटर के बारे में पता चला और मैंने वहां जाना शुरू कर दिया। वहां जाकर मन को बहुत शांति मिलती और मैं अच्छा महसूस करती। धीरे-धीरे मैं खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत महसूस करने लगी थी। जल्दी ही मैंने ऑफिस भी ज्वाइन कर लिया और जिंदगी फिर से पटरी पर आने लगी थी’। सुनीता इस समय पूरी तरह ठीक हैं और पहले की तरह ही ऑफिस के काम के अलावा वे सभी काम कर रहीं हैं जो पहले किया करतीं थीं।

 

लोगों को कैंसर के बारे में कर रहीं जागरुक
सुनीता ने इलाज के दौरान देखा कि लोगों को कैंसर के बारे में कितनी कम जानकारी है और बीमारी को लेकर उनके मन में कितनी अधिक भ्रांतियां हैं। इसीलिए आज जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे लोगों को कैंसर के बारे में जागरूक करती हैं। वे कहती हैं, ‘जैसे ही मेरे आस-पास के लोगों को मुझे कैंसर होने की बात पता चली तो कुछ ने मुझसे दूरी बनाना शुरू कर दिया। क्योंकि उन्हें लगता था कि यह कम्यूनिकेबल डिजीज है और मरीज से बात करने या छूने से उन्हें भी हो सकती है। यह सब देखकर मुझे बहुत दुख होता था और सोचती थी कि अगर पढ़े-लिखे लोगों का यह हाल है तो कम पढ़े लोगों का क्या होगा? इसीलिए बीमारी से ठीक होने के बाद मैंने सोच लिया था कि लोगों को कैंसर के बारे में जागरूक करूंगी ताकि बीमारी के बारे में सही जानकारी उन तक पहुंच सके और उनके मन से गलत धारणाएं निकल सकें। यही कारण है कि जब भी मुझे मौका मिलता है मैं लोगों को कैंसर के बारे में जागरूक करतीं हूं’।