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तैराकी ने मनस्विता को दी जिंदगी, दिखाई नई मंजिल

Published - Thu 21, Jan 2021

मनस्विता का जब जन्म हुआ था उस समय डॉक्टरों ने कहा था कि वह ताउम्र शायद ही अपने पैरों पर चल सकें, पर तैराकी ने उनके जीवन में चमत्कार किया है। तैराकी बेहतर हाइड्रोथेरेपी है। इसी के चलते उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में अपना नाम कमाया है।

manasvita tiwari

हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है। इसे चरितार्थ कर दिखाया तैराकी में कई मेडल और ट्राफियां जीतकर डॉक्टरों की बात को झुठला देने वाली मनस्विता तिवारी ने। मनस्विता का जब जन्म हुआ तो उनके शरीर में किसी तरह की हलचल नहीं थी। यहां तक कि वह रोई भी नहीं थी। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें सेरिब्रल पाल्सी नामक बीमारी है और वह शायद ताउम्र अपने पैरों पर चल भी नहीं पाएंगी। 
इस खबर से उनका पूरा परिवार तनाव और अवसाद में चला गया था। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने मनस्विता को फिजियोथेरेपिस्ट और मनोवैज्ञानिकों के पास ले जाना शुरू किया। एक फिजियोथेरेपिस्ट ने सुझाव दिया कि तैराकी उनके शारीरिक शक्ति में सुधार कर सकती है। उसके बाद उनकी मां मनस्विता को स्विमिंग पूल में ले जाना शुरू किया। जब उन्होंने तैराकी शुरू की तब उनकी उम्र पांच साल थी। शारीरिक समस्याएं उनके पढ़ाई-लिखाई में भी बाधा बन रही थीं। वह किसी तरह कक्षा 9 तक पढ़ाई कर सकीं। लेकिन तैराकी ने धीरे-धीरे उनके शरीर के अंगों को मजबूत करना शुरू किया। अभ्यास के बाद उन्होंने देश-विदेश में पैरा-स्वीमिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। उनके परिवार वालों के लिए यह चमत्कार जैसा था कि कई प्रतियोगिताएं जीतकर उन्हें एक सफल तैराक बनने का लक्ष्य पूरा किया। आज मनस्विता के पास 17 मेडल और सर्टीफिकेट हैं। अब तक हुई प्रतियोगिताओं में उनका सर्वाधिक रिकॉर्ड 400 मीटर फ्री स्टाइल स्वीमिंग रहा है। इसके अलावा 400 मीटर स्वीमिंग में 50 मीटर के 8 लैप बिना रुके लगाए हैं।
चुनौतियां अनेक
हालांकि उनकी जिंदगी से संघर्ष कम नहीं हुआ। एक दिन अचानक हार्ट अटैक के चलते उनके पिता की मृत्यु हो गई। लेकिन उनकी मां ने मनस्विता के जीवन को संवारने के लिए हिम्मत जुटाई और उनकी तैराकी पर कोई असर नहीं आने दिया। तैराकी से पहले उन्हें जमीन पर पैर जमाकर चलने का अभ्यास करना पड़ा, जिसके लिए वह रोज सीढ़ियां चढ़ती थी। 
मां का साथ मिला 
सीढ़ियों पर उतार-चढ़ाव से जहां उनके पैरों की मांसपेशियां विकसित हुईं। वहीं तैराकी से मस्तिष्क में रक्त का संचार अच्छा होने लगा, तो आईक्यू लेवल भी सामान्य बच्चों के बराबर हो गया है। अब किसी भी चीज के बारे में वह आसानी से समझ लेती हैं। मनस्विता कहती हैं, मेरी मां ने ही मेरा यह जीवन बनाया है। उन्होंने मुझे तैराकी सिखाने से पहले खुद तैरना सीखा।  
जीवन का अहम हिस्सा 
वह कहती हैं, 'तैराकी मेरे जीवन का अहम हिस्सा है। वर्ष 2013-14 में, मैंने राष्ट्रीय पैरालंपिक तैराकी चैंपियनशिप जीती और तीन स्वर्ण पदक जीतकर राष्ट्रीय चैंपियन बनी। वहीं 2017 में दुबई में, एशियाई युवा पैरा खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। मेरा मानना है कि विजय बलिदान मांगता है, और मैं इसके लिए हमेशा तैयार हूं।'