लाड कहती हैं, मुझे खुशी है कि मेरे आसपास मासिक धर्म को लेकर चुप्पी टूटी हुई है, और ज्यादातर महिलाएं अब इसके बारे में स्वतंत्र रूप से बात कर रही हैं। मेरी मेहनत रंग ला रही है। लड़कियां भी अब स्कूल जा रही हैं।
राजस्थान का मैदानी इलाका 15वीं शताब्दी में गोदौलिया लोहारों (घुमंतू समुदाय) का घर हुआ करता था। इसी समुदाय से आती है लाड लोहार। लाड उदयपुर के रामनगर की रहने वाली हैं। बचपन से ही उनमें कुछ नया सीखने के लिए तीव्र इच्छा रहती थी और स्कूल बहुत आकर्षित करता था। उनके समाज में महिलाओं को बाहर जाने अनुमति नहीं होती है, नौकरी तो बहुत दूर की बात है। लेकिन उन्हें हर हाल में सीखना ही था इसलिए चोरी-छुपे किताबें इकठ्ठा कीं और घर पर ही प्राथमिक शिक्षा पूरी कर डाली। इस बीच उनकी शादी भी कर दी गई, लेकिन जल्द ही पति ने मुझे तलाक दे दिया। तलाक के बाद जब उनके आगे पीछे कोई खड़ा नजर नहीं आया तब उन्हें अहसास हुआ कि शिक्षित होना, करियर बनाना, और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना कितना जरूरी है। ऐसे में उन्होंने तय किया कि कुछ ऐसा करना है, जिससे मेरी तरह और लड़कियों का स्कूल न छूटे। तब उन्होंने अपनी आसपास की लड़कियों से बात की, तो पता चला कि कई युवा लड़कियां सैनिटरी पैड की उपलब्धता से बेखबर थीं। जिन्हें इसके बारे में कुछ ज्ञान था, वे पैसे खर्च करके खरीदने में सक्षम नहीं थीं। तब लाड ने एक एनजीओ से प्रशिक्षण लिया और खुद ही सैनिटरी पैड बनाकर उन्हें देना शुरू कर दिया। उनके प्रयासों के चलते गांव की कई लड़कियां नियमित रूप से स्कूल जाने लगी और कुछ ने उनके हस्तक्षेप और प्रशिक्षण के बाद दसवीं की पढ़ाई भी पूरी की है। यहां तक कि सरपंच भी आज उनके मिशन में के साथ खड़ी हैं।
समस्याओं का सामना
लाड लोहार को जब पता चला कि मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड तक पहुंच न होना लड़कियों के स्कूल छोड़ने का कारण बन रहा है, तो उन्होंने इसे रोकने के लिए कुछ करना चाहा। वह मासिक धर्म की समस्याओं के बारे में जानने के लिए घर-घर गई, लेकिन लोगों ने उन्हें भगा दिया। पर लाड हार कहां मानने वाली थी। आखिरकार उन्होंने उनका विश्वास हासिल किया और सब ने उनका साथ देना शुरू कर दिया।
औरों को भी सिखाया
लाड ने 10,000 रुपये की शुरुआती पूंजी से बेसिक मशीनरी और अन्य सामग्रियां खरीदकर सैनिटरी पैड बनाने की शुरुआत की। एक बार जब उन्हें बनाने में कामयाब हो गई, तो फिर 500 महिलाओं को सैनिटरी पैड बनाना सिखाया।
कम कीमत
अब वे सभी महिलाएं आत्मनिर्भर हैं, और मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रख सकती हैं। लाड खुद एक दिन में दस सैनिटरी पैड बनाती हैं। हालांकि, अधिकांश ग्राहक कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से हैं, इसलिए सेनिटरी पैड को बेहद कम कीमत पर बेचती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.