Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

प्रदूषण से जंग लड़ने के लिए खड़ी हुईं दो लड़कियां

Published - Tue 24, Sep 2019

भारत की राजधानी दिल्ली विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में भी गिनी जाती है। राजधानी के आसपास के इलाकों के कारण भी यहां के प्रदूषण का स्तर घटता-बढ़ता रहता है। खासकर आस-पड़ोस के राज्यों में पुआल जलाने के कारण दिल्ली गैस का चेंबर बन जाता है। धुंध और धुआं यहां की आबोहवा में फैल जाती है। दिल्ली को इसी समस्या से दूर रखने के लिए दो लड़कियां केतकी और श्रुति आगे आईं और दिल्ली को प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में किसानों को जागरुक कर रही हैं।

ketki

दिल्ली

प्रदूषण भारत में तेजी से फैल रहा है। खासकर शहरों में तो प्रदूषण की स्थिति बेहद चिंताजनक है। दिल्ली जैसे शहर में हवा में पीएम 2 लेवल जानलेवा स्तर पर पहुंच जाता है। वायु प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए दिल्ली की केतकी और श्रुति ने बीड़ा उठाया है। इन्होंने 'हैप्पी सीडर, हैप्पी लंग्स' नामक एक क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया है। दिल्ली की इन दो लड़कियों ने इस पहल के माध्यम से 2018 में तीन महीनों के अंदर 3.5 लाख रुपये से अधिक जुटाने में कामयाबी हासिल की है। उन्होंने इस पैसे का इस्तेमाल ऐसी मशीनों को खरीदने के लिए किया है जो पराली को उर्वरक में बदल सकती हैं। इन मशीनों को उन्होंने झज्जर, हरियाणा में किसानों को डिस्ट्रीब्यूट कर दिया। इस मशीनों को वितरित करने के पीछे श्रुति और केतकी का मकसद फसलों के अवशेषों को उर्वरक में बदलना था, जिससे किसान उन्हें जलाएं नहीं और प्रदूषण पर कंट्रोल हो।

दोनों ने पराली जलाने को रोकने के लिए समाधान खोजने शुरू किए। इंटरनेट पर वह घंटों इसके उपाय के बारे में खोज करती रहतीं। उनका प्रयास रंग लाया और दोनों 'हैप्पी सीडर डिवाइस' तक पहुंच गईं। दोनों इस मशीन के बारे में जानकर बेहद खुश थीं, लेकिन उनकी चिंता का बड़ा कारण था मशीन का बेहद मंहगा होना। दोनों ने तय किया कि वह इन मशीनों को खरीदने के लिए क्राउडफंडिग करेगी और किसानों के बीच वितरित करेंगी। उनहोंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की मदद से क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया

पराली जलाने के समाधान खोजने के लिए उन्हें प्रयास शुरू किए और हैप्पी सीडर डिवाइस तक पहुंच गईं। लेकिन इनकी कीमत इतनी अधिक थी कि इन्हें खरीदना उनके बस में नहीं था। दोनों ने इसके लिए फंड जुटाने, खरीदने और किसानों को वितरित करने का फैसला किया।
2018 में, केतकी और श्रुति ने केटो प्लेटफॉर्म पर तीन मशीनों की खरीद के लिए एक क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया। दोनों ने हैप्पी सीडर तकनीक को सर्दियां के दौरान जलाई जाने वाली पराली की समस्या से निपटने के तौर पर देखा। 2001 में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में ग्रिफिथ के इंजीनियरों के एक समूह द्वारा विकसित की गई मशीन, मिट्टी से फसल के अवशेषों को काटती है, इसे गलाती है और यहां तक कि इसके स्थान पर नए बीज भी बोती है। सभी किसानों को अपने ट्रैक्टर पर डिवाइस लगानी होती है और उसे चलाना होता है। इस मशीन पराली को गीली घास में परिवर्तित किया जा सकता है और इससे फसलों के लिए उर्वरक तैयार किया जा सकता है। लेकिन मशीन की कीमत ही 1.7 लाख थी।
केतकी और श्रुति ने क्राउडसोर्सिंग के जरिए लगभग 3.5 लाख रुपये जुटाए। उन्होंने अलग-अलग विक्रेताओं से तीन हैप्पी सीडर मशीन खरीदने के लिए इस पैसे का इस्तेमाल किया। दोनों ने इस मशीन को हरियाणा के झज्जर में मातनहेल ब्लॉक के ग्राम संगठन को मशीनें देने का निर्णय लिया। इस ब्लॉक में कुल 53 गांव हैं। इन गांवों में ज्यादातर किसान महिलाएं हैं। दोनों ने किसानों से थोड़ा भुगतान लेकर मशीनों को कुछ विशेष दिनों के लिए किराए पर देने का मकैनिज्म पेश किया। इसके बाद किसानों से प्रतिक्रिया मिली वे हैरान करने वाली थी। दोनों लड़कियों ने गांवों में पराली के जलने के कारण होने वाले प्रदूषण के बारे में जागरूकता सेशन आयोजित किए। साथ ही लोगों को ये भी समझया कि हैप्पी सीडर मशीन इसे रोकने में कैसे मदद कर सकती है। उनके प्रयास अंततः सफल हुए, और आज केतकी और श्रुति ने 3,600 एकड़ भूमि को पराली जलाने से मुक्त बना दिया है। केतकी भविष्य में मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हैं, जबकि श्रुति पर्यावरण इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने का सपना देख रही है। हालांकि, दोनों ने अपने प्रयास को जारी रखने की योजना बनाई है। उनका अंतिम उद्देश्य: देश भर में जलती हुई पराली की प्रथा को समाप्त करना है।