पिथौरागढ़ के देवलथल तहसील क्षेत्र के ग्राम लोहाकोट निवासी परुली देवी को अब पेंशन मिल सकेगी। पूर्व उप कोषाधिकारी डीएस भंडारी के प्रयास से जारी हो सका आदेश...
साल 1952 में परुली देवी महज 12 साल की थीं, जब शादी के दो महीने बाद सैनिक उनके पति गगन सिंह को गोली लगने से मौत हो गई थी। पति के साथ यह हादसा कैसे हुआ, इस बारे में परुली देवी को आज भी जानकारी नहीं है। पति की मौत के बाद परुली देवी को पेंशन नहीं मिल सकी। समय बीतता गया और कई साल बीत गए।
7 साल की लड़ाई के बाद पेंशन का हकदार घोषित
हालांकि इस दौरान एक बार अपने गांव में महिलाओं के साथ बातचीत में उन्होंने अपने ही जैसी एक सैनिक की विधवा से उसे मिल रही पेंशन के बारे में सुना, जिसके बाद उनके मन में पेंशन मिलने की उम्मीद जगी। परुली देवी को 7 साल की लड़ाई के बाद पेंशन का हकदार घोषित कर दिया गया। सेवानिवृत्त उप कोषाधिकारी डीएस भंडारी के प्रयास से अब परुली आमा की पेंशन स्वीकृत हो गई है।
एक सैनिक की विधवा के तौर पर पहचान मिली
पेंशन की हकदार घोषित किए जाने के बाद परुली देवी ने कहा कि यह पैसों को लेकर नहीं, बल्कि मेरे नुकसान का प्रमाण है। एक सैनिक की विधवा के तौर पर पहचान मिलने के बाद परुली ने कहा कि वो खुश हैं कि अब उन्हें मान्यता मिली। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसके बगैर काट दी। उनके पति गगन ने साल 1946 में कुमाऊं रेजीमेंट ज्वॉइन की थी। जब गगन सिंह की मौत हुई, जब वो बहुत छोटी थीं। लिंठ्यूड़ा गांव के स्व. रतन सिंह की पुत्री परुली देवी का विवाह 10 मार्च 1952 को देवलथल क्षेत्र के लोहाकोट निवासी सैनिक गगन सिंह के साथ हुआ था। दुर्भाग्य से 14 मई 1952 को ही राइफल की गोली चलने से गगन की मृत्यु हो गई। मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही परुली विधवा हो गईं थीं। उन्होंने मायके में ही जीवन बिताया। पति के सैनिक होने के बावजूद उन्हें पेंशन नहीं मिली, जबकि वर्ष 1985 से लागू पारिवारिक पेंशन के लिए भी परुली हकदार हो गई थीं, लेकिन ससुराल और मायके पक्ष को इसकी जानकारी नहीं मिल सकी।
44 वर्ष की पेंशन का एरियर 19-20 लाख रुपये मिलेगा
शिवविहार कॉलोनी रई निवासी सेवानिवृत्त उपकोषाधिकारी डीएस भंडारी को जब इसका पता चला तो उन्होंने पेंशन के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कराई। इस प्रक्रिया में कई बाधाएं आईं। आखिरकार 18 जनवरी 2021 को प्रधान नियंत्रक रक्षा लेखा पेंशन प्रयागराज से उनका पेंशन स्वीकृति आदेश (पीपीओ) स्वीकृत हुआ। भंडारी ने बताया कि परुली की पेंशन 22 सितंबर 1977 से स्वीकृत हुई है। इसलिए उन्हें 44 वर्ष की पेंशन का एरियर 19-20 लाख रुपये मिलने का अनुमान है। पति के निधन के 69 साल बाद 83 वर्ष की उम्र में पेंशन लगने से परुली काफी खुश हैं। उन्होंने भंडारी का आभार जताया है।
पांच हजार से अधिक लोगों की पेंशन शुरू कराने में मदद कर चुके हैं भंडारी
रिटायर्ड अस्सिटेंट ट्रेजरी ऑफिसर दिलीप सिंह भंडारी ने कहा कि पिथौरागढ़ में बहुत से लोग मिलिट्री की नौकरी करते हैं, लेकिन पेंशन सिस्टम के बारे में नहीं जानते हैं खासकर सैनिकों की विधवाएं। इसलिए उन्होंने रिटायरमेंट के बाद उन्होंने ऐसी महिलाओं की मदद करने का फैसला किया। भंडारी पांच हजार से अधिक लोगों की पेंशन शुरू कराने में मदद कर चुके हैं। ऐसी ही एक महिला जिसकी दिलीप भंडारी ने साल 2014 में मदद की थी, वो लिनथुरा गांव में रहती थी। दिलीप ने बताया, "उन्होंने मुझसे एक सवाल किया, 'क्या मैं योग्य हूं?' मुझे इसके बारे में सोचना पड़ा।" उन्होंने कहा कि इस केस की शुरुआत करना काफी कठिन था। यह बहुत पुराना केस था। उनके पति की लड़ाई में या पोस्टिंग में मृत्यु नहीं हुई थी। भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग के नियमों के अनुसार, मृत्यु के लिए पेंशन तब दी जाती है जब किसी की सेवा में मृत्यु हो जाती है, या सैन्य सेवा के कारण या युद्ध या आतंकवाद विरोधी अभियानों के कारण। फैमिली पेंशन नेचुरल डेथ के केस में आखिरी सैलरी का तीस फीसदी दी जाती है। गगन की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से नहीं हुई थी। भंडारी ने बताया, "लेकिन जुलाई 1977 में एक महिला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस रूल को चैलेंज किया था कि सिर्फ वार विडो ही आर्मी से पेंशन के काबिल होंगी। साल 1985 में जज ने उनके फेवर में फैसला सुनाया था।"
परुली देवी को 11,700 रुपये की पेंशन मिलना शुरू
उन्होंने मामले को याद किया और परुली के दावे के पक्ष में इसका हवाला दिया। भंडारी ने बताया, " मैंन इलाहाबाद में कंट्रोल जनरल ऑफ डिफेंस अकाउंट्स और रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट सेटर में मामला उठाया। सात साल तक चले संवाद के बाद आखिकार कुमाऊं रेजीमेंट ने परुली देवी का दावा मंजूर कर लिया है। उनकी पेंशन 11,700 रुपये अब शुरू हो गई है और जुलाई 1977 से अबतक के पेंशन बकाया के रूप में उन्हें 20 लाख रुपये दिए जाएंगे।"
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.