समय के साथ महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है। घर-परिवार की जिम्मेदारी के साथ ही अब महिला ने अंतरिक्ष तक अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी है। वहीं, महिलाओं का एक बड़ा वर्ग आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। कई प्रकार के प्रतिबंधों की बेड़ियों को ये आधी आबादी तोड़ना चाहती है, लेकिन सही दिशा नहीं मिलने से भटक रही हैं। आइए जानते हैं महिलाओं के ऐसे कौनसे अधिकार हैं, जो उन्हें हर हाल में मिलने चाहिए।
गोपनीयता का अधिकार
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दुष्कर्म पीड़िता केवल महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवा सकती है। सुनवाई के दौरान वहां किसी और व्यक्ति को उपस्थित होने की जरूरत नहीं है। वैकल्पिक रूप से वह एक ऐसे सुविधाजनक स्थान पर केवल एक पुलिस अधिकारी और महिला कांस्टेबल के साथ बयान रिकॉर्ड करवा सकती है। उस स्थान पर भीड़ नहीं होनी चाहिए तथा किसी चौथे व्यक्ति के बयान सुनने की आशंका भी नहीं होनी चाहिए। पुलिस अधिकारियों के लिए एक महिला की निजता को बनाए रखना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि दुष्कर्म की शिकार महिला का नाम और पहचान सार्वजनिक नहीं हो।
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देर से भी शिकायत दर्ज करने का अधिकार
छेड़छाड़, दुराचार जैसी घटनाओं में काफी समय बीत जाने के बाद भी एक महिला एफआईआर दर्ज करवा सकती है। पुलिस इससे मना नहीं कर सकती। कई बार दुष्कर्म की घटना के बाद महिलाएं प्रतिष्ठा को लेकर भय के कारण रिपोर्ट दर्ज करवाने से बचती है या फिर घटना से आहत होकर वह सदमे में चली जाती है, ऐसे में वह तत्काल रिपोर्ट दर्ज नहीं करवा पाती। अगर बाद में वह शिकायत दर्ज करवाना चाहे तो करवा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के आदेश दे रखे हैं, जिसमें घटना और शिकायत के बीच लंबा समय बीत जाने के बाद भी महिला रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है।
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निशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
यह धारणा बनी हुई है कि जब भी अकेली महिला पुलिस स्टेशन में बयान दर्ज कराती है तो उसे तोड़-मरोड़ के लिखा जाता है या इसकी आशंका बनी रहती है। ऐसी परिस्थितियों में कई बार महिलाएं रिपोर्ट तक दर्ज करवाने से घबराती हैं। लेकिन उन्हें यह जानकारी होनी चाहिए कि महिलाओं को ऐसे मामलों में कानूनी मदद का अधिकार है। यह इसकी मांग कर सकती है। राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं को मुफ्त में कानूनी सहायता उपलब्ध करवाए।
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सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार हर कार्यालय में जहां महिलाएं काम करती हों, वहां यौन उत्पीड़न शिकायत समिति होना अनिवार्य है। इसका नेतृत्व महिला द्वारा ही किया जाना चाहिए तथा सदस्यों के तौर पर इसमें पचास फीसदी महिलाओं को भी शामिल किया जाना जरूरी है। समिति में एक सदस्य महिला कल्याण समूह से भी होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जिस महिला के साथ कोई घटना होती है तो उसकी पारदर्शिता के साथ पूरी सुनवाई होनी चाहिए और न्याय मिलना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की वो महिला कर्मचारी स्थायी है या अस्थायी। यह आदेश सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जारी किए गए हैं। कार्यालय में उत्पीड़न की शिकार महिला घटना के तीन महीने के भीतर इस समिति को लिखित शिकायत दे सकती है। यदि कंपनी में दस या अधिक कर्मचारी हैं और उनमें से केवल एक महिला है तो भी कंपनी के लिए इस समिति का गठन करना आवश्यक है। जहां यह समिति नहीं है या समिति पर भरोसा नहीं हो तो महिला जिला स्तर पर मौजूद स्थानीय शिकायत समिति से सीधे संपर्क कर सकती हैं। शिकायत पीड़िता के अलावा अन्य व्यक्ति भी कर सकता है।
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घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
कई बार महिलाएं इसी सोच से घर पर हिंसा को सहन करती रहती हैं कि उनका घर टूट जाएगा। उन्हें घर से निकाल दिया जाएगा। ऐसे में वह अपने पति सहित ससुराल वालों की प्रताड़ना और मारपीट को सहन करती रहती है। आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करती है। इसके अलावा दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी सजा का प्रावधान है। इस धारा के तहत एक बार इस पर दर्ज की गई एफआईआर इसे गैर-जमानती अपराध बना देती है। शारीरिक, मौखिक, आर्थिक, यौन संबंधी या अन्य किसी प्रकार का दुर्व्यवहार धारा 498-एक के तहत आता है। आईपीसी की इस धारा के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है।
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कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव से पहले लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगाता है। भू्रण हत्या को रोकने में यह कानून उपयोगी है।
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इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार
महिला की सहमति के बिना तस्वीर या वीडियो, इंटरनेट पर अपलोड करना अपराध है। किसी भी माध्यम से इंटरनेट या सोशल मीडिया पर साझा की गई आपत्तिजनक या खराब तस्वीरें और वीडियो किसी भी महिला के लिए बुरे सपने से कम नहीं है। महिला उस वेबसाइट से सीधे संपर्क कर सकती है। ये वेबसाइट कानून के अधीन होती हैं और उनका पालन करने के लिए भी बाध्य होती हैं। इसके लिए महिला अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकती हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने को निषेध करती है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है।
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समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान है। यह भर्ती व सेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
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जीरो एफआईआर का अधिकार
एक महिला को ईमेल या पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेष अधिकार है। महिला यदि किसी भी कारण से पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती है तो वह पंजीकृत डाक के जरिये अपनी लिखित शिकायत थाने तक पहुंचा सकती है। इसमें पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को संबोधित किया जाना आवश्यक है। वहीं, दुष्कर्म पीड़िता जीरो एफआईआर के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती है। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता है कि वह क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.