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पराली से जलने वाला धुआं रहित चूल्हा बनाने वाली देबश्री

Published - Sun 14, Feb 2021

भुवनेश्वर की देबश्री ने पराली से जलने वाला‘धुआं रहित चूल्हा’ बनाया है। उनका ये अविष्कार गांव की महिलाओं के लिए एक बेहतर कदम है।

नई दिल्ली। भारत के गांवों में आज भी खाना चूल्हे पर ही बनाया जाता है। चूल्हे से निकलने वाले धुएं में अक्सर महिलाएं दमा व अन्य रोगों की शिकार भी हो जाती हैं। महिलाओं की इसी परेशानी को देखते हुए भुवनेश्वर की देबश्री ने एक ऐसा धुआं रहित चूल्हा तैयार किया है, जो जलता तो पराली से है, लेकिन धुआं नहीं देता।
बचपन से देखा था इस समस्या को
अपने घर में इनडोर प्रदूषण के दुष्प्रभाव को देखकर बड़ी हुई, भुवनेश्वर की  इंजीनियर, देबश्री पाढ़ी ने बचपन से ही घर में चूल्हा और उससे निकलने वाला जहरीला धुआं देखा था। वह वह छोटी थीं, तो धुएं के कारण उन्हें रसोई में नहीं जाने दिया जाता था। उस दौरान उनके यहां एलपीजी कनेक्शन नहीं था और घर में मिट्टी का तेल भी नहीं आता था। बचपन से इस समस्या से जूझती आ रहीं देबश्री ने जब होश संभाला तो तय कर लिया कि वह इस दिशा में काम करेंगी। पढ़ाई में होशियार देबश्री ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और इस दिशा में काम करने लगीं। उन्होंने  ‘अग्निस’ नामक खाना पकाने का स्टोव तैयार किया है जिससे कोई प्रदूषक तत्व नहीं निकलते हैं और यह 0.15 पीपीएम से कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। ‘अग्निस’ का एक और लाभ यह है कि इसे उपयोग करने वालों को लकड़ी के लिए जंगलों में भटकने की जरूरत नहीं है। इस एन्ड टू एन्ड कुकिंग तकनीक से खाना पकाने में सामान्य से आधा समय लगता है।

गांव में रहने के दौरान आया आइडिया
देबश्री गर्मियों की छुट्टियों में अक्सर अपने ओडिशा के भद्रक स्थित पुश्तैनी गांव नामी में जाकर समय बिताती थीं। वहां खाना बनाने की परेशानियों को देखकर उनके दिमाग में ये आइडिया आया कि क्यों न महिलाओं को चूल्हें के संघर्ष से आजादी दिलवाई जाए और उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया। जब वह कॉलेज में तीसरे वर्ष में थीं, तो उन्हें प्रोजेक्ट भी ऐसा मिला, जो उनकी पसंद का था। उन्हें ऐसी समस्या का समाधान खोजने के लिए कहा गया, जिसमें बड़ी संख्या में जनसंख्या प्रभावित होती है। इसलिए उन्होंने धुआंरहित चूल्हा बनाने को चुना। देबश्री ने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मैसूरु, कर्नाटक से अपनी इंजीनियरिंग पूरी की है। उन्हें अपने इस इनोवेशन को प्रोडक्ट्स के तौर पर मार्किट करने के लिए 6.25 लाख रुपये की धनराशि मिली।इन्क्यूबेशन से मिले फंड और अपने परिवार से कुछ मदद के साथ, देबश्री ने अपनी कंपनी, डीडी बायोसोल्यूशन टेक्नोलॉजी को रजिस्टर किया और एग्रो-वेस्ट क्लीन कुकिंग फ्यूल तकनीक विकसित की। देबश्री ने सीएसआईआर – इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटेरियल्स टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर से इस तकनीक के लिए प्रमाण हासिल किया। यह अनोखा स्टोव 2019 में लॉन्च किया गया। पहले उन्होंने पहले अपने गांव में इस अनोखे स्टोव की बिक्री की। साथ ही, किसानों को पैलेट बनाने वाली मशीन भी किराये पर दी ताकि सभी के लिए यह फायदेमंद हो। एक किलो पैलेट की कीमत 6 रुपए होती है, जो 50 मिनट तक जलते हैं। पैलेट बनाकर बेचने से जो भी मुनाफा हो रहा है उसे देबश्री और किसानों के बीच बांटा जाता है। चूंकि खाना पकाने की प्रक्रिया अग्निस स्टोव में दो गुना तेज है, इसलिए ग्रामीणों को पैलेट्स पर औसतन 120-150 रुपये प्रति माह खर्च करने पड़ते हैं। साथ ही खाना जल्दी पकता भी है और ईंधन भी कम लगता है।