मदर्स डे पर मां को समर्पित अपराजिता का वीडियो खूब शेयर किया जा रहा है। यह वीडियो लोग काफी पसंद कर रहे हैं। अमर उजाला के अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल्स अभियान के तहत लखनऊ में ड्राइंग कॉम्पीटिशन हुआ था, जिसमें 60 स्कूलों के 5000 बच्चों ने हिस्सा लिया था।
लखनऊ। ‘मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आंसू, मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।’, ‘ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया।’,‘जरा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए, दीये से मेरी मां मेरे लिए काजल बनाती है।’ मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने मां की जिस तासीर को अपने अशआरों में पिरोया, उसी एहसास को स्कूली बच्चों ने रंगों की मदद से कागज पर उतारकर दिल जीत लिया। स्कूली बच्चे अपनी भावनाओं को अमर उजाला की 'अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल्स' मुहिम के तहत शनिवार को लोहिया पार्क में मदर्स डे के उपलक्ष्य में आयोजित ड्रॉइंग कॉम्पीटिशन में मां को कागज पर उतार रहे थे। हजारों बच्चों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। किसी ने मां की सौम्यता, सरलता व मातृत्व को रंगों में पिरोया तो किसी ने मां के संघर्ष व जिजीविषा को कागज पर उतारा। सुबह सात बजे से ही स्कूली बच्चों का आगमन पार्क में शुरू हो गया था। एम्फीथिएटर में जगह भर जाने के बाद बच्चों ने पार्क में पेड़ों की छांव में चित्रकारी करनी शुरू की। प्रतियोगिता में 60 स्कूलों के 5000 के करीब छात्र-छात्राएं शामिल हुए। तीन श्रेणियों में प्रतियोगता हुई। पहली श्रेणी प्राइमरी में कक्षा तीन से पांच तक के बच्चे शामिल हुए। जूनियर वर्ग में कक्षा छह से आठ तक और सीनियर वर्ग में कक्षा नौ से 12 तक के बच्चों को शामिल किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि महापौर संयुक्ता भाटिया थीं। उन्होंने स्कूली बच्चों को उत्साहवर्धन किया और उनके साथ तस्वीर खिंचवाई। इसके अतिरिक्त जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश कुमार भी मौजूद रहे।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.