Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

एक पुरुष को मिल चुका है बेस्ट मॉम का अवॉर्ड, वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

Published - Mon 11, May 2020

कहते हैं एक महिला जब मां बनती है तो वह किसी भी बच्चे के लिए वह सबसे बढ़कर होती है। वहीं एक मां का स्थान दुनिया में कोई नहीं ले सकता है, लेकिन आज हम आपको पुणे के रहने वाले आदित्य तिवारी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें 'बेस्ट मॉम' के अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।

बेटे अवनीश संग आदित्य

नई दिल्ली। आप ये सोच रहे होंगे कि एक पुरुष को कैसे 'बेस्ट मॉम' का अवॉर्ड कैसे मिल सकता है। आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह। ज्यादातर लोग ये सोच कर हैरान है कि एक पुरुष को बेस्ट मॉम का अवॉर्ड क्यों दिया गया।  दरअसल साल 2016 में आदित्य ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित एक बच्चे को गोद लिया था। जिसके बाद वह अकेले ही बच्चे की परवरिश कर रहे हैं। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहे आदित्य तिवारी ने बच्चे को गोद लेने के बाद नौकरी छोड़ दी और अब वह ऐसे माता- पिता को मोटिवेट करते हैं, जिनके स्पेशल चाइल्ड हैं। उनके इस समर्पण को देखते हुए इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर बंगलुरु में एक कार्यक्रम वेमपावर का आयोजन किया गया था। जिसमें उन्हें बेस्ट मॉम के अवार्ड से नवाजा गया। 

गोद लेने के बाद बदल गई जिंदगी
बतौर आदित्य, मुझे बेस्ट मॉम के रूप में सम्मानित होने पर बेहद खुशी हुई, क्योंकि इसमें हमेशा से मां (महिला) का हक रहा है लेकिन एक पुरुष होने के बाद बेस्ट मॉम का अवार्ड मिलना बहुत ही अलग अनुभव है। एक स्पेशल चाइल्ड की परवरिश में क्या- क्या अनुभव होते हैं और सिंगल पैरेंट होने का वाकई में क्या मतलब होता है, सच यह मुझसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। उन्होंने 1 जनवरी 2016 को 22 महीने के बच्चे को गोद लिया था, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। बच्चे को गोद लेने के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। बच्चे का नाम उन्होंने अवनीश रखा है। 

मोटिवेशन सेशन में बेटा भी होता है साथ 
आदित्य पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, लेकिन बच्चे के गोद लेने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और देशभर में स्पेशल बच्चों के साथ माता-पिता की काउंसलिंग, मार्गदर्शन और उन्हें मोटिवेट करने का काम शुरू किया। वह जब भी कहीं स्पीच के लिए जाते हैं तो उनका बेटा भी उनके साथ होता है। उन्होंने बताया मैं जब भी ऐसे माता- पिता को मोटिवेट करता हूं जिनके स्पेशल बच्चे हैं तो उस दौरान अवनीश भी साथ में होते हैं। वह बोल नहीं सकते, लेकिन उनकी उपस्थिति माता-पिता के लिए एक प्रमुख प्रेरणा का स्रोत बन जाती है। 

10 हजार माता-पिता जुड़े हैं
आदित्य ने अब तक अपने बेटे का साथ 22 राज्यों का दौरा किया है। लगभग 400 स्थानों पर मीटिंग्स, वर्कशॉप और कॉन्फ्रेंस में शामिल हो चुके हैं। वह दुनिया में 10,000 माता-पिता से जुड़े हैं। आदित्य ने कहा कि उनके जीवन में अवनीश की उपस्थिति ने यह महसूस करने में मदद की कि भारत में बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए न तो कोई अलग श्रेणी थी और न ही सरकार ने उनके लिए विकलांगता प्रमाण पत्र प्रदान किया था।  हमने केंद्र के साथ इस मुद्दे को उठाया और एक ऑनलाइन याचिका भेजी। परिणामस्वरूप, सरकार को ऐसे बच्चों के लिए एक अलग श्रेणी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब उन्हें विकलांगता प्रमाणपत्र भी मिलते हैं। आदित्य का परिवार पुणे के वाकड में रहता है। 

स्कूल जाते हैं अवनीश
अवनीश बालवाड़ी के एक स्कूल में जाते हैं। उन्हें डांस, म्यूजिक, फोटोग्राफी और इंस्ट्रूमेंट बजाना काफी पसंद है। अवनीश को जंक फूड नहीं दिया जाता है। उनके खाने-पीने पर खास ध्यान दिया जाता है। आदित्य ने बताया , अवनीश के दिल में दो छेद थे, लेकिन बिना किसी मेडिकल मदद के छेद गायब हो गए हैं। हालांकि, उन्हें कुछ चिकित्सा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और उसे दो सर्जरी से गुजरना पड़ रहा है। "उनके जीवन के लिए दोनों सर्जरी महत्वपूर्ण हैं ... उनका जल्द ही ऑपरेशन करना होगा। फिलहाल पिता और बेटे की जोड़ी माता- पिता को प्रेरित कर रही है।

विश्व स्तर पर बना चुके हैं पहचान
आदित्य के अनुसार उन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए निमंत्रण मिला था। जिसमें बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों की जिंदगी के बारे में चर्चा करनी थी। यहीं नहीं उन्हें जिनेवा में आयोजित 'विश्व इकोनॉमिक्स फोरम' में शामिल होने के लिए भी निमंत्रण मिला था। जहां उन्होंने शिरकत की थी।