कहते हैं इंसान अगर ठान ले तो पत्थर को भी पिघला सकता है। बस उसका जज्बा और हौसले बुलंद होने चाहिए। कुछ ऐसे ही जज्बे के साथ भक्ति ने अपने गांव की तस्वीर बदल ली और अभी काफी कुछ बदलने पर लगी हुईं हैं।
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में भक्ति शर्मा आज जाना-पहचाना नाम हैं। वह साल 2012 में पढ़ाई और अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए अमेरिका गई थीं, जहां उन्हें एक अच्छी- खासी नौकरी मिली, लेकिन भक्ति ने कुछ और ही रास्ता तय कर लिया था। प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित गांव बरखेड़ा को आज भक्ति ने नई पहचान दी है।
पिता से मिली प्रेरणा
दरअसल भक्ति के पिता चाहते थे कि वह गांव वापस आ जाएं और यहीं पर गांववालों के साथ मिलकर कुछ काम करें। पिता की इस इच्छा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और फिर अमेरिका छोड़कर अपने देश की मिट्टी में लौट आईं।
स्वयंसेवी संस्था शुरू करने का था मन, फिर अचानक लड़ा चुनाव और जीतीं
जब वह गांव वापस आईं, तब उन्होंने यहीं पर एक स्वयंसेवी संस्था की शुरुआत करने का निर्णय किया। जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करना था। इसी दौरान गांव में सरपंच पद के चुनाव हुए और भक्ति ने भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। चुनाव में उन्हें गांव वालों का पूरा समर्थन मिला और वे चुनाव जीत गईं।
25 साल की उम्र में बनीं पहली बार सरपंच
जब वह सरपंच चुनी गईं, तब उनकी उम्र महज 25 साल थी। गांव की पहली महिला सरपंच बनने का खिताब भी उनके नाम गया। सरपंच का पद संभालते ही उन्होंने गांव के विकास का लक्ष्य लेकर अपना काम शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने सबसे पहले रुके हुए विकास कार्यों की समीक्षा की और उन्हें शुरू करवाया। भक्ति ने महज 10 महीने के भीतर ही गांव के विकास में सवा करोड़ रुपये खर्च कर दिए। जिससे नई सड़कों और शौचालयों का निर्माण करवाया गया। इतना ही नहीं गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़क का भी निर्माण करवाया गया, जिससे गांव वालों के लिए शहर से जुड़े रहना आसान बन गया।
कच्चे घर, पक्के मकान में बदल दिए
भक्ति ने जरूरतमंद लोगों के कच्चे मकानों को पक्के मकानों में भी तब्दील करवाने का काम किया। आज उनके गांव के करीब 80 प्रतिशत मकान पक्के हो चुके हैं। गांव के लोग इसके पहले बिजली और पानी की समस्या से भी जूझ रहे थे, लेकिन उन्हें इस समस्या से भी निजात मिल चुकी है। इतना ही नहीं, गांववालों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाकर भक्ति ने उन्हें आर्थिक तौर पर भी सशक्त करने का काम किया है। वह अब लगातार दो बार सरपंच पद का चुनाव जीत चुकी हैं, इसी के साथ उन्होंने ‘सरपंच मानदेय’ नाम से एक स्कीम भी शुरू की है, जिसके तहत गांव की उन महिलाओं को सम्मानित किया जाता है, जिनके घर पर बेटी पैदा होती है। भक्ति ऐसी महिलाओं को अपनी दो महीने की तनख्वाह देती हैं, इसी के साथ गांव में उस बेटी के नाम पर पेड़ भी लगाया जाता है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.