हर किसी की जिंदगी में एक ऐसा पल जरूर आता है, जब उसे कुछ नहीं सूझता। कुछ ऐसा ही हुआ बंगाल की अनिमा मजूमदार के साथ, तब उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की और उनके जीवन की दिशा बदल गई।
नई दिल्ली। अनिमा मजूमदार सिर्फ एक बीघा जमीन में अपने परिवार का गुजारा कर रही थी। एक समय ऐसा आया, जब खाने के लिए संघर्ष भी करना पड़ रहा था। इस बीच उन्होंने मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण लिया और उत्पादन शुरू किया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर गई। अनिमा पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले से ताल्लुक रखती हैं। उनकी मानें तो मेरे पति सीमांत किसान हैं। जमीन ही हमारी आय का एकमात्र जरिया है। मात्र एक बीघा जमीन में ही मेरा घर और खेत, दोनों है। मेरे पति मुर्गी पालन करते थे, मैं भी उनकी मदद करती थी, क्योंकि इसी से हमारे घर का खर्च चलता था, लेकिन आस-पड़ोस के लोगों ने शिकायत की, तो हमने मुर्गी पालन का काम बंद कर दिया, क्योंकि उससे बदबू आती रहती थी। फिर तो ऐसा हुआ कि हमें बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे जुटाने और रोजी-रोटी के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ा। एक दिन किसी ने मुझे गांव के पास ही मौजूद कृषि विज्ञान केंद्र के बारे बताया। मैंने वहां की अधिकारी से बात की और अपनी समस्या बताई। उन्होंने मुझे मशरूम उत्पादन करने का प्रशिक्षण देने की बात कही। फिर मैंने प्रशिक्षण लेकर अपने घर में ही मशरूम फार्मिंग शुरू की। शरुआत में मशरूम के बीज भी मुझे कृषि विज्ञान केंद्र से ही मुफ्त में मिले।
मेहनत का मिला परिणाम
कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेने के बाद मशरूम की फसल तो हमने उगा ली, लेकिन अब समस्या यह थी कि इसे बेचा कहां जाए? उस समय गांव में कोई मशरूम खरीदने और खाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। सिलीगुड़ी
हमारे यहां का सबसे नजदीकी शहर है, तो मैं और मेरे पति लगभग दो घंटे का सफर तय कर वहां के बाजार में मशरूम बेचने जाते थे। मैंने जहां उत्पादन पर मेहनत की, वहीं पति ने बाजार पर ध्यान दिया।
अवशेष का भी उपयोग
धीरे-धीरे मशरूम की खेती में अच्छा उत्पादन होने लगा। एक तरह से हमारा मशरूम का फार्म अच्छी तरह से तैयार हो गया। बाजार में बिक्री से आय भी अच्छी होती थी। फसल का जो अवशेष बचता है, उसे मैं खाद की तरह इस्तेमाल करती हूं, लेकिन चुनौती हमेशा यही रहती है कि यदि कभी पूरी फसल नहीं बिकी, तो क्या होगा, क्योंकि मशरूम को ज्यादा दिन तक घर में नहीं रखा जा सकता है।
उत्पाद बनाने शुरू किए
इसलिए हमने मशरूम की प्रोसेसिंग कर उसके उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। मैंने मशरूम से अचार, पापड़ और दाल की बड़ियां बनानी शुरू कीं। बाजार में मशरूम से अधिक मांग इन उत्पादों की ही रहती है। हमारी आर्थिक स्थिति अब पहले से काफी बेहतर हो गई है। मैं लगातार उत्पादों की गुणवत्ता सुधारने का काम कर रही हूं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.