अमिता ने कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही बच्चों को शिक्षित करना शुरू कर दिया था। विवाह के बाद उन्होंने एक बुक बैंक खोला, जहां बच्चों को नि:शुल्क किताबें मिलती हैं। कुछ किताबों से शुरू हुए इस बुक बैंक में आज हजारों किताबें मौजूद हैं।
अमिता शर्मा मेरठ की रहने वाली हैं और जरूरतमंद बच्चों को उनके पाठ्यक्रम के अनुरूप फ्री में किताबें उपलब्ध कराती हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के पतला गांव में हुआ। उनका परिवार मध्यमवर्गीय था। स्कूली पढ़ाई के बाद जब उन्होंने कॉलेज जाना शुरू किया, तब वह इस दुनिया से परिचित हुई। समाज की समस्याएं जब उन्होंने अपनी आंखों से देखी व महसूस की तब उन्होंने सामाजिक कार्य करने की ठान ली। वह जितना कर सकती थी उसी के अनुसार छोटे बच्चों की शिक्षा में मदद करने लगी। इस बीच उनकी एक सहेली को उसके परिजनों ने स्कूल के बाद कॉलेज भेजने से मना कर दिया। क्योंकि उसका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, और किताबें खरीदने में असमर्थ। तभी उन्होंने ठान लिया कि कुछ ऐसा करूंगी, ताकि किसी को किताबों के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहना पड़े। इस बीच, उनकी शादी हो गई और वह अपने पति के घर मेरठ चली गईं। उनके पति कोचिंग सेंटर चलाते हैं। शादी के बाद अमिता ने अपने पति से अपने विचार के बारे में बताया, तो उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए इसे जारी रखने के लिए कहा। तब अमिता ने एक नि:शुल्क बुक बैंक बनाने के बारे में सोचा, ताकि जरूरतमंद बच्चों को उनके पाठ्यक्रम के अनुरूप किताबें मिल सकें। इसके बाद उन्होंने मेरठ के विजयनगर में एक केंद्र खोला, जहां जरूरतमंदों को आधार कार्ड की कॉपी से प्रमाणित कर किताबें दी जाती हैं।
प्रेरणा बुक बैंक
अमिता को यह बात बेहद परेशान करती है कि कई जरूरतमंद होनहार बच्चों की शिक्षा इसलिए अधूरी रह जाती है, क्योंकि उनके पास किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं होते हैं। प्रेरणा बुक बैंक की शुरुआत उन्होंने अपनी किताबों के साथ किया था। इसके बाद कुछ पुरानी किताबें अगली कक्षा में पहुंच चुके विद्यार्थियों ने दी। वहीं जब दूसरे जरूरतमंद बच्चे किताब लेने लगे तो, अन्य बच्चों को भी इसके बारे में जानकारी हुई।
सबके लिए किताबें
अमिता ने बहुत-सी किताबें रद्दी बेचकर इकट्ठा कीं। उनकी इस बुक बैंक से कोई भी छात्र-छात्रा, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले या फिर कोई बड़ा-बुजुर्ग, अपनी रूचि के हिसाब से एक महीने से एक साल की अवधि तक के लिए मुफ्त में किताबें ले सकता है। बदले में उन्हें सिर्फ आधार कार्ड की एक फोटोकॉपी जमा करनी होती है। इसे प्रमाण के तौर पर रखा जाता हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर संपर्क किया जा सके।
आधार से प्रमाण
आधार कार्ड की कॉपी लेने की प्रक्रिया इस लिए शुरू हुई, क्योंकि बहुत से लोगों ने किताबें लौटाई ही नहीं और इससे दूसरे लोगों को वे किताबें देने में परेशानी हुई। इस तरह की कई राज्यों में दर्जनों शाखाएं चल रही हैं। लेकिन अमिता ने कोई संगठन नहीं बनाया है। काम के बारे में पता चलने के बाद अब लोग खुद फोन कर किताबें ले जाने के लिए बुलाते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.