ऐसा शायद ही कोई शख्स हो जिसे दुनिया भर के देशों के नाम ही मुंहजबानी याद हों लेकिन एक ढाई साल की बच्ची प्रनिना टंडन ऐसी हैं कि जिन्हें सभी देशों की राजधानियां इस कदर रटी हुई हैं कि वह एक जुबान में इसे फटाफट सुना देती है।
नई दिल्ली। सोशल मीडिया पर एक ढाई साल की बच्ची का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इस छोटी सी बच्ची को 205 देशों की राजधानियों के नाम याद हैं। लोग इसे वंडर गर्ल कर रहे हैं। इन राजधानियों में कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिसको लेना बड़े से बड़े लोगों के बस की बात नहीं। बच्ची के वीडियो को छत्तीसगढ़ की आईएएस अधिकारी प्रियंका शुक्ला ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट किया है। प्रियंका सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं, उन्होंने इस वीडियो को शेयर कर अपने फॉलोअर्स से पूछा है कि वो कितने देशों की राजधानियों के नाम जानते हैं? बच्ची का नाम प्रनिना टंडन है। वीडियो में एक महिला प्रनिना से एक-एक करके कई देशों की राजधानियों का नाम पूछती है और वह बताती चली जाती हैं।
एक-एक करते बताती है सभी देशों की राजधानियों के नाम
वीडियो में आप देख सकते हैं कि प्रनिना सबसे पहले कैमरे के सामने अपना परिचय देती हुई नजर आती है। इसके बाद एक महिला उससे एक-एक करके कई देशों की राजधानी का नाम बताने के लिए कहती है। शुरूआत अफगानिस्तान की राजधानी का नाम बताने से होती है। इसके बाद फिर अजरबैजान, कंबोडिया, चीन, साइप्रस, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, मलेशिया, लेबनान, कुवैत, मालदीव, नेपाल, उत्तर कोरिया, आर्मेनिया, बहरीन, चीन, इजराइल, जापान, पाकिस्तान और कई अन्य देशों की राजधानियों के नाम वह फटाफट बताती जाती है। इस वीडियो को देखकर हर कोई हैरान है कि कैसे एक महज ढाई साल की बच्ची ये सब बता ले रही है, जबकि इस उम्र का बच्चा कई बार ठीक से बोल भी नहीं पाता है। यह वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहा है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.