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अंग्रेजी की कमजोरी को हथियार बनाकर पाई सफलता

Published - Thu 22, Aug 2019

10वीं के बाद स्कूल ने अंग्रेजी विषय देने से इनकार कर दिया था, आज अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं डा. शिल्पी सक्सेना 

dr. shilpi saxena

ग्रेटर नोएडा। शहर की एडब्ल्यूएचओ सोसायटी में रहने वाली डॉ. शिल्पी सक्सेना आज अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं, लेकिन कभी अंग्रेजी उनकी सबसे बड़ी कमजोरी हुआ करती थी। 10वीं के बाद स्कूल ने अंग्रेजी विषय देने से इनकार कर दिया था। कला वर्ग की छात्रा होने के कारण नाम के आगे डॉक्टर लगाने की भी चुनौती थी। इन सभी चुनौतियों को पार कर वो अपराजिता बनी।
जीएल बजाज कॉलेज में अंग्रेजी की प्रोफेसर डॉ. शिल्पी मूलरूप से अलीगढ़ की रहने वाली हैं। डॉ. शिल्पी ने बताया कि बचपन में परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। अंग्रेजी पर पकड़ भी बेकार थी, इसलिए 10वीं की बोर्ड परीक्षा में अंग्रेजी में अच्छे नंबर नहीं मिले। 11वीं में स्कूल ने अंग्रेजी देने से इंकार कर दिया। काफी मशक्कत के बाद स्कूल ने शर्त लगा दी कि अगर अर्द्धवार्षिक परीक्षा में नंबर अच्छे नहीं आए तो अंग्रेजी विषय हटा दिया जाएगा। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अर्द्धवार्षिक परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के साथ-साथ 12वीं में भी अच्छे नंबर प्राप्त किए। एमए भी अंग्रेजी विषय से की। उन्होंने यहीं हार नहीं मानी। उनके भाई-बहन विज्ञान वर्ग से पढ़े और उनके डॉक्टर बनने के ज्यादा उम्मीद थी। तभी शिल्पी ने नाम के आगे भी डॉक्टर लगाने की ठानी और वर्ष 2006 में अंग्रेजी में पीएचडी कर प्रोफेसर बनीं।
यहीं नहीं, बचपन में वो काफी शर्मीली थी। ज्यादा बोलती नहीं थी, लेकिन आज वे राष्ट्रीय स्तर की स्पीकर है। मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस ने इनको ड्रग्स प्रीवेंशन का वक्ता नियुक्त किया है। वह गोष्ठी में भाग लेती हैं। एनजीओ कॉस्मिक स्माइल फाउंडेशन से सामाजिक कार्यों में भागीदारी निभा रही हैं। अलग-अलग जगह जाकर निर्धन बच्चों को निशुल्क पढ़ती भी हैं। महिला के उत्थान को लेकर भी विभिन्न कार्यक्रम और संगठन से जुड़ी हैं। उन्होंने अमर उजाला के अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स अभियान की सराहना करते हुए कहा कि इससे समाज में महिलाओं के प्रति सोच में बड़ा बदलाव आएगा।