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ढलती उम्र में खुद को दें स्पेस और जिएं अपने मन के मुताबिक

Published - Sun 23, Jun 2019

कई बार बच्चों की व्यस्तताएं बुजुर्गों को नकारात्मक बना देती हैं, उन्हें लगने लगता है कि बच्चे उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। लेकिन इन जज्बातों से बाहर निकलें। अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं और अपने लिए खुद ही रास्ता चुनें।

old age happy

जिंदगी में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जब बुजुर्ग अपने बच्चों से अलग नहीं रह पाते। ऐसे में जरूरी है आपसी समझ। बच्चों के साथ ही मां-बाप को भी यह समझने की जरूरत है कि उम्र के हर पड़ाव पर 'थोड़े-से स्पेस' की जरूरत सभी को होती है। मां-बाप यह सोच लेते हैं कि वह बच्चों और पोते-पोतियों को छोड़कर कहां जाएंगे, लेकिन उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि उनकी अपनी जिंदगी है। बच्चों के साथ-साथ उन्हें भी अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक है। कई बार बच्चों की व्यस्तताएं बुजुर्गों को नकारात्मक बना देती हैं, उन्हें लगने लगता है कि बच्चे उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। लेकिन इन जज्बातों से बाहर निकलें। अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं और अपने लिए खुद ही रास्ता चुनें। कुछ नया करें और अपने जीवन में बदलाव लाएं। हालांकि, कुछ बुजुर्ग अपने जीवन के स्वर्णिम काल में अपना जीवन अपने ढंग से गुजारना पसंद करने लगे हैं। कुछ रिटायर्ड लोगों को अपने अनुभव की वजह से समय काटने के लिए कुछ न कुछ काम मिल जाता है, जिससे वह किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहते। वे स्वेच्छा से अपना काम चुनते हैं और अपनी सुविधा के अनुसार उसे पूरा करते हैं। अपनी स्वतंत्रता और सम्मान अब उन्हें ज्यादा महत्वपूर्ण लगने लगे हैं। वे सक्रिय रहते हुए संसार से कूच करना चाहते हैं। निष्क्रिय रहकर एक कोने में पड़े उपेक्षित बूढ़ों की तरह नहीं। कुछ लोग अब भी अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं, जिसमें कोई बुराई नहीं है। यह आपका अधिकार है और खुद को खुश रखना आपकी आदत होनी चाहिए।

कहां है कमी
यही सब बातें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या बुढ़ापे में भरपेट खाना मिल सके, इसलिए मां हो या पिता, उन्हें अपने बच्चों की सेवा चाकरी करनी जरूरी है? क्यों माता-पिता को अपने ही घर में तिरस्कृत या नौकरों के सामान जीवन बिताना पड़ता है? बच्चों को बड़ा करने में माता- पिता कहां चूक कर बैठते हैं? या संस्कार में कोई कमी रह जाती है? आखिर क्यों परिवार की शान कहे जाने वाले बड़े-बुजुर्ग, आज परिवार में अपने ही अस्तित्व को तलाशते नजर आ रहे हैं।

तलाश ली राह
लेकिन समाज में बुजुर्गों का एक ऐसा तबका भी है, जो अब दर-दर भटकने से अच्छा अपनी पहचान बनाए रखना समझता है। तिनका-तिनका जोड़कर अपने बच्चों के लिए आशियाना बनाने वाली ये पुरानी पीढ़ी के लोग अब खुद आशियाने की तलाश में दरबदर भटकने, वृद्ध आश्रम की शरण लेने से ज्यादा अच्छा समझ रहे हैं, अपने पैरों पर खड़े रहना। ऐसे में इनको रहने के लिए छत और खाने के लिए भरपेट भोजन मिल रहा है। अपने वजूद की तलाश में उनको भटकना नहीं पड़ रहा। उन्होंने अपनी राह खुद तलाश ली है। एक विज्ञापन ‘40 साल के बूढ़े या 60 साल के जवान...’ को हकीकत में चरितार्थ करते हुए ऐसे ही जवानों से मैं आपको रूबरू करवाती हूं।

सक्रिय रहना है जरूरी
जहां पहले सीनियर सिटीजन अपने बेटे बहू, पोते पोती के साथ रहना चाहते थे, आज जीवन के स्वर्णिम काल में अपना जीवन वे अपने ढंग से गुजारना पसंद करने लगे हैं। अपनी स्वतंत्रता और सम्मान अब उन्हें ज्यादा महत्वपूर्ण लगने लगा है। वे एक्टिव रहते हुए संसार से कूच करना चाहते हैं। निष्क्रिय रहकर एक कोने में पड़े उपेक्षित बूढ़े की तरह नहीं।

वर्चस्व की लड़ाई
कम्युनिकेशन गैप कहें या जनरेशन गैप जो भी है दोनों पीढ़ियों में अक्सर टकराव होता रहता है। गहराई से समझा जाए तो कहीं न कहीं यह लड़ाई वर्चस्व की भी है। समझने वाली बात यह है कि किसी न किसी को तो दूसरे नंबर पर रहना ही पड़ेगा। अब किस तरह इस समस्या का समाधान निकालते हैं, यह तो समझ पर ही निर्भर करता है। शायद यही कारण है कि आज बहुत से बुजुर्ग दूसरी पोजीशन पर आने से बेहतर समझते हैं दूर रहकर या अलग रहकर प्यार बना रहे। जाहिर सी बात है जब तक मां बाप के हाथों में घर खर्च की बागडोर थी, वे घर में सर्वेसर्वा थे। लेकिन सैकंड पोजीशन पर रहकर वही बातें सालती हैं। ऐसी स्थिति आने, से पहले ही कई उम्रदराज लोग बच्चों की शादी के बाद अलग रहना पसंद करते हैं।

अनुभव का फायदा
बहुत से सीनियर सिटीजन स्वतंत्र जीवन ही पसंद करते हैं। वे इस उम्र में भी अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं। कुछ रिटायर्ड लोगों को अपने अनुभव की वजह से समय पास करने के लिए कुछ न कुछ काम मिल जाता है। आज बहुत से सीनियर सिटीजन चाहे महिला हो या पुरुष अपनी सुविधा अनुसार अपने घर के आस-पास कहीं न कहीं, हिसाब किताब का काम, ट्यूशन, कोचिंग आदि बेहिचक कर रहे हैं।

इंदिरापुरम गाजियाबाद की ऑरेंज काउंटी सोसाइटी में, बहुत से सीनियर सिटीजन रहते हैं, जिनके बारे में जानकर आपको अच्छा लगेगा। जो आज भी जिंदादिली से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। वहां रहने वाले एक सीनियर सिटीजन रिटायर कर्नल कपूर कहते हैं, "भई हम तो जियो और जीने दो" में विश्वास करते हैं। युवा लोगों की अपनी जीवनशैली है। उनकी भागदौड़ में हम कहां फिट बैठते हैं। तो दूसरी तरफ ऑरेंज काउंटी निवासी एके गोयल जी ने कहा, "जब हम भी लाइफ एंजॉय कर सकते हैं, तो हम उन पर बोझ बनकर क्यों रहें। हमने अपना धन इस तरह से इनवेस्ट किया है कि उससे अच्छी खासी रकम मिल जाती है।"

गुप्ता जी का कहना था, "मैं थोड़ा बहुत शेयर का काम कर लेता हूं। अक्सर हम पति-पत्नी कभी सिनेमा, कभी मॉल चले जाते हैं।" जब मधु जी ने कहा, "हमें अकेलापन नहीं लगता समय कैसे बीत जाता है इसका एहसास नहीं होता। हम सबका सीनियर सिटीजन क्लब बना हुआ है। उसमें महीने में दो बार मीटिंग और कार्यक्रम होते रहते हैं। हर शनिवार हम सब मिलकर तंबोला खेलते हैं। यही नहीं हम महिलाओं का भी सीनियर सिटीजन ग्रुप बना हुआ है। यह हम सबका एक फ्रैंड सर्कल है। उनसे मेल मुलाकात हो जाती है। वैसे मैं और मेरे पति साल दो साल में फॉरेन टूर भी कर लेते हैं। हमें तो यह अपने जीवन का स्वर्णिम काल लगता है। कोई जिम्मेदारी बाकी नहीं।" यानी कि सभी लोग अपने इस पड़ाव का आनंद ले रहे हैं। सबका कहना है कि उन्होंने अपने कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाए हैं। अपने बच्चों को लायक बना दिया, जो खूब कमा रहे हैं, संस्कारवान हैं और सभी के बच्चे अपने-अपने जीवन में व्यस्त हैं। लेकिन बावजूद इसके एक फोन पर दौड़ चले आते हैं। हमें और क्या चाहिए? कोई समाज सेवा करके सुकून पाता है, तो किसी ने अपना एक कविता समूह बनाया हुआ है, जहां दस बारह कविता प्रेमी एक-दूसरे को अपनी कविताएं सुनाकर खुश रहते हैं। साठ के हो जाने के बाद भी वे बखूबी डांस, स्विमिंग स्पोर्ट्स आदि में भाग ले रहे हैं। असल में यही तो जीवन है। इसी का नाम है जीना आखिरी सांस तक जिएं शिद्दत से जिएं। शायद मर-मर के जीने से अच्छा है, मरते दम तक जीना।

कुछ कदम खुद के लिए
मैसाचुसेट्स के ब्रिघम एंड वुमन्स हॉस्पिटल के शोध के मुताबिक, कुछ कदम चलकर स्वास्थ्य पर पड़ने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है। शोध में पता चला है कि वृद्ध महिलाओं ने एक दिन में सिर्फ 4,400 कदम चलकर अपनी असमय मृत्यु के खतरे को 40 फीसदी से ज्यादा कम कर दिया। शोधकर्ताओं का कहना है कि दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियों को शामिल करने से आपके कदमों की गिनती बढ़ सकती है और आप स्वस्थ रह सकती हैं। टीम ने चार साल तक 62 से 101 वर्ष की उम्र की 16,700 महिलाओं पर अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि एक दिन में 2,700 कदम चलने वाली महिलाओं के मुकाबले उन महिलाओं में 41 फीसदी असमय मौत का खतरा कम था, जो प्रतिदिन लगभग 4,400 कदम चलीं। इसके साथ ही 7,500 से अधिक कदम चलने से मृत्यु दर में कमी देखी गई।