जब भी खेती में किसी नई खोज की बात होती है तो सबसे पहले किसी पुरुष किसान का चेहरा ही सामने आता है लेकिन राजस्थान की रहने वाली भगवती देवी ने फसलों को दीमक से बचाने के लिए एक नई खोज की है। इसके लिए उन्हें 'खेत वैज्ञानिक सम्मान' और 'कृषि प्रेरणा सम्मान' से सम्मानित भी किया जा चुका है।
नई दिल्ली। राजस्थान के सीकर (राजस्थान) के गांव दांतारामगढ़ की रहने वाली भगवती देवी की आज देश में अलग ही पहचान है। उन्होंने फसलों को दीमक से बचाने के लिए एक कारगर और ठोस उपाय ढूंढ निकाला है। जिसको अब अन्य किसान भी अपना रहे हैं। पहले उनकी खोज पर किसी को यकीन नहीं हुआ लेकिन जब उनकी चर्चा कृषि अनुसंधान केंद्र तो पहुंची तो उन्होंने भी भगवती देवी की पद्धति को अपनाकर देखा तो फसलों को दीमक से बचाने के लिए सही साबित हुई। इसके बाद उन्हें खेत वैज्ञानिक सम्मान दिया गया।
जब किसी किसान का जिक्र आता है तो अनायास खेत में हल चलाते पुरुष की तस्वीर जेहन में उभर आती है, जबकि धान की रोपाई हो या फसल की कटाई, हर जगह महिलाएं ही काम करती दिखती हैं। इतना सब होने के बाद भी महिला को किसानों हमारा ग्रामीण परिवेश पुरुषों की तरह तवज्जो नहीं देता है लेकिन अब बदलते जमाने के साथ यह मिथक भी टूट रहा है। ऐसी ही महिला किसानों में एक नाम है, सीकर के गांव दांतारामगढ़ निवाी सुंडाराम वर्मी की पत्नी भगवती देवी का, जिन्होंने दीमक से फसलों के बचाव के लिए खुद का अजीबोगरीब तरीका ईजाद कर दिया है। जिसकी चर्चा हर तरफ हो रही है।
कैसे ईजाद हुई तकनीक
'खेत वैज्ञानिक सम्मान' और 50 हजार रुपए के 'कृषि प्रेरणा सम्मान' से नवाजी जा चुकीं भगवती देवी बताती हैं कि उनके खेत में अरड़ू, बेर, खेजड़ी, नीम, सफेदा, बबूल, शीशम आदि के पेड़-पौधे हैं। खेत की मेड़ों पर पड़ी इनकी लकड़ियों में प्रायः दीमक लगते रहते हैं। एक बार उन्होंने देखा कि सफेदे की लकड़ी में दीमकों की भरमार है। तभी उनके मन में एक सवाल कौंधा कि यूकेलिप्टस (सफेदे) की लकड़ी को ही दीमक क्यों इतने चाव से खोखला कर रहे हैं। फिर उन्हें एक तरकीब सूझी कि अगर फसलों के बीच में सफेदे की लकड़ियां रख दी जाएं तो दीमक फसलों को छोड़कर इनके साथ लिपट जाएंगी और शायद फसल बर्बाद होने से बच जाएगी। चूंकि बाद में बोई गई फसल पर दीमक ज्यादा लगती हैं, सो उन्होंने गेहूं की फसल उस बार देर से खेत में डाली। उसके बाद उन्होंने फसल के बीच में सफेदे की एक लकड़ी रख दी। फिर क्या था, अगले दिन उन्होंने देखा फसल छोड़कर दीमक सफेदे की लकड़ी में जुटी हुई हैं। भगवती देवी बताती हैं कि दीमकों को ललचाने के लिए उन्होंने सफेदे की लकड़ियों को बड़े आइडियल तरीके से रखा। तीन-तीन फीट लंबी लकड़ियों को फसलों की कतारों के अंतर पर मिट्टी में आधे-आधे गाड़ दिए। बाद में उन्होंने देखा कि जहां-जहां लकड़ियां रखी थीं, वहां-वहां की फसल ज्यादा सुरक्षित रही क्योंकि दीमक सफेदे की लकड़ियां चूसने में लग गई थीं। फसलें सुरक्षित रहने लगीं। धीरे-धीरे उनकी यह बात दूर-दूर के किसानों तक पहुंच गई।
कृषि वैज्ञानिकों तक पहुंची बात तो हुआ शोध
धीरे-धीरे यह बात क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों के कानों तक पहुंची तो उनको काफी हैरत हुई क्योंकि दीमक भगाने के लिए किसान काफी कीटनाशक दवा इस्तेमाल करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। इस तकनीक से इसे रोका जा सकता था। एक दिन सुनी सुनाई बात की हकीकत जानने के लिए राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (बीकानेर) के कृषि अनुसंधान निदेशक डॉ. एमपी साहू भगवती देवी के खेतों पर पहुंच गए। उस समय उनके खेत में मिर्च की फसल लगी हुई थी। उन्होंने सफेदे की लकड़ी फसल के बीच रखकर अपना प्रयोग डॉ साहू को दिखा दिया। उसके बाद डॉ साहू के निर्देशन में भगवती देवी का वह दीमक विरोधी परीक्षण पुनः शेखावटी कृषि अनुसंधान केंद्र पर किया गया। वहां भी प्रयोग सफल रहा तो कृषि विश्वविद्यालय की ओर से इसके बारे में प्रदेश कृषि विभाग के उच्चाधिकारियों को सूचित किया गया। एक बार फिर इसका अजमेर के अडॉप्टिव ट्रायल सेन्टर पर परीक्षण किया गया। नतीजे वही निकले, जो भगवती देवी ने डॉ साहू को शुरू में बताए और दिखाए थे। उसके बाद भगवती देवी के अनुसंधान को कृषि विभाग ने अपने पैकेज ऑफ प्रैक्टिस में दर्ज कर लिया। इस तरह भगवती देवी की यह कृषि खोज स्थापित हो गई।
खेत में यूकेलिप्टस के पड़े लगाओ, दीमक भगाओ
दीमक से बचाने के लिए अब तक किसान कीट नाशकों का इस्तेमाल करते रहे हैं, जिसमें हर साल उनका अच्छा खासा पैसा डूबता रहा है। हर फसल में कई-कई लीटर कीटनाशक के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता पर भी इसका खराब असर पड़ता है साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। अब सफेदे की कुछ सौ रुपए की लकड़ी से किसान के हर साल हजारों रुपए बच जाते हैं। न प्रदूषण का झंझट, न उर्वरता का खतरा। भगवती देवी बताती हैं कि सफेदा खरीदने की भी जरूरत है। अपने खेत में एक दो पेड़ पर यूकलिप्टस के पौधे लगा लीजिए, हमेशा के लिए दीमकों से छुट्टी मिल जाएगी। अब राजस्थान कृषि विभाग भगवती देवी की इस तकनीक को देश के बाकी किसानों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए उनको प्रदेश एवं केंद्र सरकारों से सम्मानित भी किया जा चुका है। अब तो वह देश के अलावा विदेशी पाठ्यक्रमों में भी आ चुकी हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.