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शिशुओं को स्तन दुग्ध उपलब्ध करा रहीं डॉ. ऐश्वर्या

Published - Sun 22, Nov 2020

कई बार ऐसा होता है कि महिलाएं मां तो बन जाती हैं लेकिन वह कई कारणों से अपने बच्चों को स्तनपान नहीं करा पाती हैं तो कुछ ऐसी भी होती हैं, जिन्हें स्तन दूध नहीं होता है या इतना कम होता है कि नवजात या शिशु का पेट ही नहीं भरता। ऐसे में डॉ ऐश्वर्या एम जहां महिलाओं को स्तनपान कराने के लिए जागरूक कर रही हैं तो वहीं वह स्तन दूध एकत्रित करके दुग्ध बैंक तक पहुंचाने का भी नेक काम कर रही हैं। जिससे हर बच्चे को स्तन दुग्ध मिल सके।

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नई दिल्ली। तमिलनाडु में कोयंबटूर की रहने वाली डॉ ऐश्वर्या एम की मानें तो जब मेरी बेटी का जन्म हुआ, तो मुझे मां बनने का सबसे खूबसूरत एहसास हुआ। तब तक मैं स्तनपान की महत्ता के बारे में जागरूक नहीं थी। मातृत्व सुख का एहसास और चुनौतियों का सामना मैंने मां बनने के बाद किया। मुझे लगा, ऐसी सैकड़ों माताएं होंगी, जो स्तनपान की चुनौतियों से जूझ रही होंगी। हमारे आसपास स्तनपान को लेकर बड़ी भ्रांतियां थीं। मुझे लगा कि माताओं में स्तनपान को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, इसलिए मैंने स्तन दुग्ध बैंक के लिए अभियान चलाया। हालांकि कुछ लोग सोशल मीडिया पर इस दिशा में जागरूकता के लिए काम कर रहे थे। मैंने उनसे संपर्क किया, तो वे एक साथ काम करने को तैयार हो गए। मातृत्व सुख का एहसास और चुनौतियों का सामना मैंने मां बनने के बाद किया। मुझे लगा, ऐसी सैकड़ों माताएं होंगी, जो स्तनपान की चुनौतियों से जूझ रही होंगी, इसलिए मैंने स्तन दुग्ध बैंक के लिए अभियान चलाया। जब मैं गर्भवती थी, तो मैंने कम से कम नौ बच्चों को स्तनपान कराया। हमारे समूह की माताओं में से एक ने स्तनपान पाठ्यक्रम पूरा किया था। हमने अन्य महिलाओं के माध्यम से इस पर और जानकारी इकठ्ठा की। इसके बाद हमने दादा-दादी और माता-पिताओं को जागरूक करने के लिए कोयंबटूर पैरेंटिंग नेटवर्क नामक संगठन बनाया। वर्ष 2016 में शुरू हुए अभियान के तहत हमने माताओं से स्तन का दूध इकठ्ठा करने के लिए कई अभियान चलाए। इकठ्ठा किया हुआ दूध स्तनपान करवाने में अक्षम माताओं तक पहुंचाया जाता है, ताकि नवजात शिशुओं को जन्म के समय से स्तन दुग्ध मिल सके। दान किया गया दूध विशेष पैकेट में संग्रहीत किया जाता है और फिर कोयंबटूर मेडिकल कॉलेज, अस्पताल और कई अन्य दूध बैंकों को दिया जाता है।    

चुनौतियों का सामना 

हमारी पहली चुनौती थी माताओं को खुद का दूध दान करने के लिए राजी करना। फिर उसे इकट्ठा कर संग्रहीत करना। हमने काफी मशक्कत के बाद माताओं को इस काम के लिए राजी किया। दुग्ध बैंक को दिए जाने वाले दूध को जमा करने से पहले साफ किया जाता है।  

दूध बैंक से मदद

हम शहर में परित्यक्त शिशुओं की भी मदद करते हैं, जो अक्सर कम वजन वाले और कमजोर होते हैं। दान किए गए दूध की बदौलत दूध बैंक तकरीबन सौ बच्चों का छह दिनों तक ख्याल रखने के लिए सक्षम हैं। 

भ्रांतियों से आगे 

नवजात शिशु के स्तनपान को लेकर हमारे समाज में कई तरह की भ्रांतियां हैं। मैं अभिभावकों और विशेषतः माताओं को माताओं को इस दिशा में शिक्षित करना चाहती हूं, ताकि यह अभियान देश के अन्य हिस्सों में भी फैल सके।