भारत की पहली कोरोना मरीज़ को कैसे पता चला कि वह इस वायरस से पीड़ित हैं और कैसे इसके बाद उन्होंने अपने आप को संभाला आइए जानते हैं उनकी जुबानी, उन्हीं की कहानी। अब वह स्वस्थ हैं और आईसोलेशन वार्ड से छुट्टी पाकर घर जा चुकी हैं।
नई दिल्ली। केरल की रहने वाली राफिया वुहान से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं और वुहान में हालात खराब होने पर 25 जनवरी को भारत आईं। उनके अनुसार जब वह आईं तो मुझे पता नहीं था कि क्या हो रहा है। जब मैंने डॉक्टरों से पूछा तो उन्होंने कहा कि सब ठीक है। 20 साल की यह लड़की पहली मरीज़ है जो भारत में कोरोना वायरस से पॉजिटिव पाई गई। राफिया (बदला हुआ नाम) ने अपने बचने की कहानी साझा की। वो एक अस्पताल में चार अन्य लोगों के साथ भर्ती थीं। बाद में सभी लोग डिस्चार्ज कर दिए गए। लेकिन उनके अनुसार मेरे टेस्ट रिजल्ट में देरी हो रही थी। कोई मुझे कुछ नहीं बता रहा था। उन्हें एकांत में रखा गया था, जहां वो धैर्य पूर्वक इंतज़ार कर रही थीं। तभी उनके फोन पर एक मैसेज आया। एक दोस्त ने टीवी न्यूज़ की एक क्लिप रिकॉर्ड करके मुझे वॉट्सऐप पर भेजी। ये न्यूज़ रिपोर्ट एक मेडिकल स्टूडेंट के बारे में थी जो वुहान से आई थी और कोरोना वायरस के टेस्ट में पॉजिटिव पाई गई थी। राफिया आसानी से यह समझ सकती थीं कि टीवी रिपोर्ट उन्हीं के बारे में है। वो कहती हैं, मुझे टीवी न्यूज़ से पता चला कि मैं कोरोना वायरस से पीड़ित हूं। 30 जनवरी को उन्हें भारत में कोरोना वायरस की पहली मरीज़ घोषित किया गया।
तभी एक घंटे के अंदर डॉक्टर आए और उन्हें बताया कि वो कोरोना वायरस टेस्ट में पॉजिटिव पाई गई हैं। उन्हें इलाज के अस्पताल में और अधिक रुकना पड़ेगा। वो घबराईं नहीं, धैर्य रखा। उनके अनुसार मुझे पता था कि यह वायरस बुज़ुर्गों और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए बड़ा खतरा है। मैं शांत थी और पॉजिटिव सोचती थी। प्रशासन भी तुरंत एक्शन में आया और उनसे हर उस शख्स का नाम पता पूछा जिनसे भी वो 25 जनवरी की सुबह भारत आने के बाद मिली थीं। उनके परिवार को तत्काल कई तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उनकी मां को त्रिशूर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में एक अलग वॉर्ड में एकांत में रखा गया। यहां राफिया का भी इलाज चल रहा था, लेकिन वे दोनों एक दूसरे से मिल नहीं सकती थीं।
उनके पिता और भाई को घर में ही एकांत में रखा गया था। राफिया कहती हैं, ''वायरस लेकर घूमने से कहीं अच्छा है आप एकांत में रहो। वो कहती हैं कि डॉक्टर और नर्स बिना किसी झिझक या डर के उनसे बात करते थे। वो टेस्ट के लिए आते थे तो प्रोटेक्शन गियर पहनकर। वे बहुत अच्छे थे। चीन में कोरोना वायरस का भयंकर प्रकोप देखने के बाद वो इसकी मेडिकल प्रक्रिया से वाकिफ थीं।
वुहान में आराम से कर रहे थे पढ़ाई
वह बीते तीन सालों से वुहान में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थीं। एयरपोर्ट पर थर्मल स्क्रीनिंग में वह सामान्य थीं और वायरस के लक्षण नहीं थे। वो बताती हैं, 9 जनवरी तक हमारी क्लास थी और सेमेस्टर एग्जाम भी हो रहे थे। उसके बाद हम चार हफ्ते की छुट्टियों पर जाने वाले थे लेकिन अचानक से सब रूक गया। आधा महीना बीता और मौत आंकड़ा बढ़ता जा रहा था। अफवाहें भी तेजी से हर तरफ फैल रही थीं। 20 जनवरी को हमें पता चला कि यह बीमारी तेजी से फैल रही है, इसलिए हमने वहां से निकलने का फैसला किया और मैंने अपनी फ्लाइट टिकट बुक कर ली। ये भारत सरकार की ओर से राहत-बचाव विमान चीन भेजे जाने से पहले की बात है। शहर के पूरी तरह बंद होने से ठीक पहले राफिया किसी तरह वहां से निकल गईं। वुहान से चलकर वो कोलकाता एयरपोर्ट पर उतरीं और वहां से कोच्चि के लिए दूसरी फ्लाइट ली।
स्क्रीनिंग में वायरस के लक्षण नहीं दिखे
वो कहती हैं, कोलकाता एयरपोर्ट और कोच्चि एयरपोर्ट पर मैं थर्मल स्क्रीनिंग से गुजरी, मुझमें वायरस के लक्षण नहीं थे। अगले दिन उन्हें बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास से मैसेज मिला कि जो भी लोग चीन से बाहर गए हैं वो अपना मेडिकल परीक्षण जरूर करा लें। उन्होंने ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी से मुलाकात की और चेकअप में कुछ भी चिंताजनक नहीं था, लेकिन दो दिन बाद 27 जनवरी को जब वो सुबह उठीं तो उनका गला खराब था और उन्हें अहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है। उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया गया और तब टेस्ट में पॉजिटिव पाई गईं।
एक खिड़की से देखती थीं बाहर की दुनिया
20 दिनों तक राफिया एक छोटे से कमरे तक ही सीमित रहीं और एक खिड़की से बाहर की दुनिया देखती थीं। उनके अनुसार मुझे विश्वास था कि मेरा इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस से लड़ लेगा। काफी दिनों तक उनका परिवार घर में बंद था। वो कहती हैं कि यह मेरी ज़िंदगी में नया अनुभव था। मुझे खुद की चिंता नहीं थी, मुझे परिवार और दोस्तों की चिंता थी। उनके अनुसार जब भी हालात सामान्य होंगे, मैं वापस वुहान जाऊंगी और अपना छह साल का कोर्स पूरा करूंगी। वो कहती हैं, बतौर मेडिकल स्टूडेंट उन्होंने बहुत बड़ा सबक सीखा है, जब मैं डॉक्टर बन जाऊंगी तो सबसे पहले मरीज को उसकी स्थिति के बारे में बताऊंगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.