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हठीली और ईमानदार थीं पहली महिला आईएएस अधिकारी

Published - Wed 05, Jun 2019

अन्ना रजम मल्होत्रा 1951 में भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुईं और मद्रास काडर चुना था

आजादी के बाद भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी बहुत ही हठीली और ईमानदार महिला थी। उनका नाम था अन्ना रजम मल्होत्रा। 92 साल तक जीवित रहीं मल्होत्रा को देश की पहली आईएएस बनने का गौरव प्राप्त है। वे सचिवालय में पद प्राप्त करने वाली भी पहली महिला थीं। उनका जन्म जुलाई 1927 में केरल के एर्नाकुलम जिले में हुआ था और तब उनका नाम अन्ना रजम जॉर्ज था। कोझिकोड में स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे चेन्नई चली गईं ताकि मद्रास विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकें। मल्होत्रा 1951 में भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुईं और मद्रास कैडर चुना। जब यूपीएससी में उनका साक्षात्कार हुआ था, तो साक्षात्कार कर्ताओं ने उन्हें विदेश सेवा या सेंट्रल सेवा में जाने के लिए कहा था, क्योंकि ये सेवाएं महिलाओं के लिए उपयुक्त मानी जाती थीं। लेकिन अन्ना रजम मल्होत्रा ने सिविल सेवा में जाने का ही मन बना लिया था और वे उसी निर्णय पर कायम रहीं। इसीलिए उन्हें प्रेरक, दृढ़, हठीली व ईमानदार महिला कहा जाता है जो कि आजादी के बाद महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं। उन्होंने मद्रास राज्य (बाद में तमिलनाडु) में तत्कालीन मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में सेवा दी थी। उनकी शादी आर. एन. मल्होत्रा से हुई थी, जो 1985 से 1990 तक आरबीआई के गवर्नर रहे थे।

जेएनपीटी बंदरगाह की स्थापना में रही खास भूमिका
अन्ना रजम मल्होत्रा ने मुंबई बंदरगाह के जहाज परिवहन की समस्या का समाधान करने के लिए इसके नजदीक ही देश के पहले आधुनिक कम्प्यूटरीकृत बंदरगाह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) की स्थापना में योगदान दिया। केंद्र सरकार में डेपुटेशन के तहत उन्हें जेएनपीटी विकास कार्य की निगरानी का दायित्व मिला था। महलौत्रा जेएनपीटी की कुछ समय तक अध्यक्ष रहीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के आधुनिक बंदरगाहों में जेएनपीटी की आधुनिक सुविधाओं पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता।

सात मुख्यमंत्रियों के साथ किया था काम
उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी सहित सात मुख्यमंत्रियों के मातहत काम किया था। उनका वह अनुभव किसी भी नौकरशाह के लिए अतुल्य है। श्रीमती मल्होत्रा को सिविल सेवा की ट्रेनिंग के दौरान घुड़सवारी और निशानेबाजी का प्रशिक्षण मिला था, जब उनकी पहली नियुक्ति सब कलेक्टर के तौर पर होसुर में की गई तो उनके सामने एक ऐसी समस्या आई जिसमें छह हाथियों को मारने का ऑर्डर दिया जाना था, परंतु श्रीमती मल्होत्रा ने गांव में घुस आए उन हाथियों को मारने का आदेश देने की बजाय एक ऑपरेशन के जरिए जंगल में वापस पहुंचा दिया। यह उनका जीवों के प्रति उदार भाव का द्योतक है।  इसके अलावा 1982 में दिल्ली में जब एशियाई खेलों का आयोजन हुआ तो प्रभारी होने के तौर पर तत्कालीन सांसद राजीव गांधी के साथ उन्होंने निकटता से काम किया था। वे इंदिरा गांधी के साथ फूड प्रोडक्शन पैटर्न को समझने के लिए आठ देशों की यात्रा पर भी गई थीं। साल 1989 में उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।