कोरोनाकाल ने लोगों को केवल घर बैठने का मौका ही नहीं दिया बल्कि कुछ नया करने का मौका भी दिया। ऐसा ही मौका दिया गरिमा जुनेजा को। जिन्होंने कुछ घरेलू समस्याओं के चलते जॉब छोड़ दी थी लेकिन लॉकडाउन में उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारा और एक सफल मनोवैज्ञानिक बन गईं। उन्होंने लोगों को इस दौरान मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में जानकारियां दीं।
नई दिल्ली। जब भी एक नौकरीपेशा महिला मां बनती है तो उसके सामने दो चुनौतियां जरूर आती हैं कि वह अपनी नौकरी जारी रखे या बच्चों के लालन-पालन के लिए उसे छोड़ दे। इस दुविधा से वह लंबे समय तक जूझती रहती हैं।
साल 2006 में कुछ ऐसी ही दुविधा चंडीगढ़ की रहने वली गरिमा जुनेजा के सामने आई। सोच-समझकर उन्होंने अपने बच्चों के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी लेकिन मनोविज्ञान में उनकी दिलचस्पी बनी रही। जल्द ही उन्होंने मनोविज्ञान में एमए कोर्स कर लिया। साथ ही उन्होंने गॉटमैन कपल थेरेपी, कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी, रैशनल इमोशनल बिहेवियर थेरेपी, हिप्नोथेरेपी सहित कई अन्य थेरेपी से जुड़े कोर्स किए। उन्होंने एक मनोवैज्ञानिक बनने के लिए करीब छह साल की ट्रेनिंग और काउंसलिंग में बिताया। लाकडाउन में गरिमा को इस शौक को पेशे में बदलने का मौका मिला और 2020 में उन्होंने एक मेंटल हेल्थ स्टार्टअप शुरू किया।
कुछ लोगों ने संपर्क किया तो ऑनलाइन काउंसलिंग शुरू की
गरिमा कहती हैं कि एक मनोवैज्ञानिक के तौर पर मैं पहले से ही सेशन के लिए ग्राहकों से व्यक्तिगत रूप से मिल रही थी। साथ ही मैं स्कूली बच्चों की देखभाल करने वाले दो गैर सरकारी संगठनों से जुड़ी थी। महामारी की पहली लहर के दौरान ऑनलाइन परामर्श के लिए कुछ लोगों ने मुझसे संपर्क किया, जो मेरे लिए भाग्यशाली साबित हुए। इससे पहले हम शायद ही कभी फोन या जूम कॉल पर थेरेपी सेशन देते थे, लेकिन ऑनलाइन सेशन क्लाइंट/मरीजों के लिए बेहद सफल चिकित्सीय अनुभव साबित हुआ। इसके बाद मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहती थी और इसकी ओर पहला कदम बढ़ाते हुए मैंने लाइटरूम नाम से एक वेबसाइट बनाई, फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसलिए रखा लाइटरूम नाम
उन्होंने अपनी थेरेपी और परामर्श सेवाओं का नाम 'लाइटरूम' इसलिए रखा क्योंकि यह बताता है कि अंधेरे और अशांत समय के दलदल में रहने के बाद, रोगी के जीवन में प्रकाश लाने का यह जरिए है। गरिमा कहती हैं, लाइटरूम असल में कोई कमरा नहीं है, बल्कि यह किसी के दिमाग के बारे में है जो ऑनलाइन/व्यक्तिगत थेरेपी सेशन के जरिए से सही दिशा में खुल जाता है। इसके जरिए ही वह लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां देती हैं।
बेटियों को बड़ा करने संग सपना भी किया बड़ा
गरिमा कहती हैं, मेरी दो बेटियां हैं और मैं काफी भाग्यशाली हूं कि जब वह बड़ी हो रहीं थीं तो मैं हमेशा उनके साथ रही। साथ ही मैं खुद को धीरे-धीरे एक मनोवैज्ञानिक के रूप में तैयार कर रही थी, जिससे मैं समाज में लोगों को सेवाएं दे सकूं। मेरा मनोवैज्ञानिक के तौर पर यह सफर ही था, जिसने मुझे अपना मेंटल हेल्थ स्टार्टअप - लाइटरूम थेरेपी शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.