बिहार में 1985 में किसान-मजदूर अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे थे और उसी बीच 1991 में बिहार के सरकारी कर्मचारी केंद्र कि तर्ज पर समान वेतन के लिए आंदोलन पर उतर आए और इन्हीं के बीच महिलाओं ने भी अपने हक की आवाज उठाई और महिलाओं को लंबे आंदोलन के बाद पीरियड्स लीव का अधिकार मिल गया।
नई दिल्ली। बिहार जैसे पिछड़े राज्य में महिला अधिकारों की बात करना बेहद मुश्किल है, खासकर पीरियडस लीव जैसे मुद्दो पर बोलना तो एक तरह से अपराध ही है। लेकिन बिहार की महिलाओं ने पीरियडस लीव के लिए लड़ाई लड़ी और जीतीं भी। 1985 में भी किसान और मजदूरों के अधिकारों के लिए भी बिहार में आंदोलन हुए और ग्रामीण और निम्नवर्ग की महिलाओं ने इसमें बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद 1991 में बिहार में सरकारी कर्मचारी केंद्र सरकार की तर्ज पर वेतन लागू किए जाने की मांग करने लगे। इस हड़ताल में स्कूल, यूनिवर्सिटी टीचर्स, बोर्ड कॉर्पोरेशन और बिहार राज्य कर्मचारी महासंघ भी शामिल था। खासकर महिलाएं इस आंदोलन में बेहद सक्रिय हो रहीं थीं और प्रदर्शन कर रहीं थीं। इन आंदोलनों में महिलाओं के मुद्दो पर चर्चा होने लगी।
महिलाओं ने मांगने शुरू किए अपने अधिकार
संविधान में मिले अधिकार के बावजूद महिलाओं को वोट से दूर रखना, बराबर मजदूरी की मांग जैसे मुद्दे गांव, देहात में महिलाएं उठा रही थीं।शहरों में युवा महिलाओं पर भी इन मुद्दों का असर हो रहा था। राज्य में बुद्दिजीवी महिलाएं औरकामकाजी महिलाएं, उनके लिए हॉस्टल और क्रेच की सुविधा देने की मांग उठाने लगीं। वहीं, इस बीच सरकारी कर्मचारियों का आंदोलन भी जोर पकड़ रहा था। जब ये हड़ताल चल रही थी उस दौरान सरोज चौबे ऐपवा में सचिव के पद पर थीं। वे बताती हैं कि सरकारी महिला कर्मचारियों की संख्या बहुत कम थी और महिला संगठनों ने जबउन्हें हड़ताल में शामिल होने को कहा था तो उनमें हिचकिचाहट भी थी क्योंकि उनका मानना था कि जब इसमें पुरुष शामिल हो रहे हैं तो उनका बैठकों या आंदोलन में भाग लेने का क्या काम। लेकिन अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ द्वारा संचालित इस हड़ताल में धीरे-धीरे महिला कर्मचारी, शिक्षिका, नर्स और टाइपिस्ट जुड़ती चली गईं। जब समस्याओं पर चर्चा हुई और सारी मांगों को सूचीबद्ध किया जा रहा था तभी हड़ताल में शामिल महिलाओं की तरफसे ये मांग उठी थी कि पीरियड्स के दौरान छुट्टी मिलनी चाहिए।
लालू यादव थे सीएम
उस समय लालू यादव सीएम थे। धीरे-धीरे हड़ताल ने जोर पकड़ा। अराजपत्रित कर्मचारी समान वेतन के लिए संगठित हो गए तो महिलाएं भी अपने अधिकारों के लिए लड़ने पर अड़ गईं। बैठकों का दौर शुरू हो गया। सरकार और प्रतिनिधियों के बीच बैठकें होने लगीं। इन्हीं बैठकों में महिलाओं के पीरिड्स के दौरान तीन दिन की छुट्टी का भी मुद्दा उठा। सीएम लालू ने उसे सुना और सहमति जताई की दो दिन की छुट्टी दी जा सकती है। बिहार सरकार की तरफ से राज्य की सभी नियमित महिला सरकारी कर्मचारियों को हर महीने दो दिनों के विशेष आकस्मिक अवकाश की सुविधा देने का फैसला लिया गया।
प्रोफेसर भारती एस कुमार ने ली पहली पीरियड्स लीव
बिहार में इस क्रांतिकारी फैसले के बाद पटना यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर भारती एस कुमार पहली महिला बनीं, जिन्होंने पीरियड्स लीव ली। वो इतिहास के पीजी विभाग में प्रोफेसर थीं। भारती को पता था कि सरकार ने ये फैसला लागू कर दिया है, लेकिन यूनिवर्सिटी ने इस अधिसूचना को कहीं नहीं लगाया है और ये आदेश फाइलों में ही बंद था। उन्होंने एसोसिएशन से पूछा, तो पता चला कि आदेश जारी हो चुका था लेकिन यूनिवर्सिटी सर्कुलेट होकर हम तक नहीं पहुंच रही थी, दूसरे महिला शिक्षिकाएं इस लीव को लेने में झिझक रहीं थीं। तब भारती ने ठाना कि वो पीरियड्स लीव लेंगी और पीरियड्स आने पर चिट्ठी लिखकर विभाग के हेड को दे दी। झिझक के बीच हेड ने उसपर साइन कर क्लर्क को बढ़ाया और उन्हें छुट्टी मिल गई।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.