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माता-पिता की मौत के बाद आखिरी निशानी के लिए जंग लड़ रहीं तेजल

Published - Thu 10, Sep 2020

कोरोना वायरस ने गुजरात की रहने वाली तेजल की जिंदगी में कभी न थमने वाला तूफान ला दिया। इस वायरस से जहां उनके माता-पिता को महज 48 घंटों में छीन लिया। वहीं अस्पताल प्रबंधन ने उनके मां-बाप की आखिरी निशानी भी बच्चों को नहीं लौटाई। जिसके लिए तेजल से जंग शुरू कर दी है। जिसे वह आखिरी सांस तक जारी रखेंगी।

नई दिल्ली। गुजरात के गांधीनगर में रहने वाली 28 साल की तेजल शुक्ला की जिंदगी कोरोना वायरस ने उलट करके रख दी है। कोरोना संक्रमण होने के शक में तेजल के माता-पिता को गांधीनगर के एक सरकरी अस्पताल में बिना कोविड जांच किए भर्ती कराया दिया गया था। जहां दो दिन के अंदर के दोनों की मौत हो गई। माता-पिता को खोने के बाद अब तेजल अपने माता-पिता के गहने वापस पाने और उन्हें अवैध तरीके से बिना कोविड जांच के कोविड वार्ड में भर्ती किए जाने की लड़ाई लड़ रही हैं। वो कहती हैं कि ये गहने उनकी आखिरी निशानी हैं और परिवार के लिए इनका अलग भावनात्मक मूल्य है। तेजल का आरोप है कि अस्पताल के अधिकारियों ने अब तक उनके माता-पिता के गहने उन्हें नहीं लौटाए हैं। उन्होंने जिला कलेक्टर से इस पूरे मामले की जांच करने की गुजारिश की है और इस बारे में 20 अगस्त को उन्हें पत्र भी लिखा है। उनके अनुसार वह अपने माता-पिता की निशानी हर हाल में पाकर रहेंगी, चाहे इसके लिए अस्पताल के आगे भूख हड़ताल करनी हो, धरना-प्रदर्शन करना हो या कुछ और। वह पीछे नहीं हटेंगी। वह कहती हैं यह लड़ाई मैं आखिरी सांस तक लड़ूंगी। 

जून से शुरू हुईं मुसीबतें 

बतौर तेजल मामला जून से शुरू हुआ, चार साल पहले मेरी मां को दिल की बीमारी हुई थी। जिसके बाद से उनका इलाज चल रहा था। 15 जून को अचानक उनका स्वास्थ्य बिगड़ा। उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की। उस वक्त प्राइवेट डॉक्टर उनका इलाज करने के लिए राजी नहीं हुए, जिसके बाद हम उन्हें गांधीनगर के सरकारी अस्पताल में लेकर गए। तेजल की मां तारा रावल आंगनवाड़ी वर्कर के तौर पर काम करती थीं और उस समय तक रिटायर हो चुकी थीं। वहीं उनके पिता गणपत रावल ड्राइवर थे। तेजल की एक बहन हैं, पूनम जो अपने पति से अलग रहती हैं। पूनम और उनके बेटे की जिम्मेदारी तारा और गणपत पर ही थी। 

बिना कोविड जांच मां को सीधे कोविड वार्ड में किया भर्ती

अस्पताल में भर्ती कराए जाने को लेकर तेजल कहती हैं, मेरी मां कोविड-19 मरीज हैं या नहीं, अस्पताल में अधिकारियों ने ये पुष्टि नहीं की बल्कि उन्होंने उन्हें सीधे कोविड-19 वार्ड में भर्ती कर दिया। हमें ये देखकर आश्चर्य हुआ लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते थे। मां के अस्पताल में भर्ती होने के बाद मेरे पिता बेचैन हो गए। मां ने अस्पताल से हमें वीडियो कॉल किया, वो रो रही थीं।  मेरे पिता के लिए उनको उस हालत में देखना मुश्किल था।

पिता को भी सीधे ले गए कोविड वार्ड

 पिता के अस्पताल में भर्ती होने को लेकर तेजल कहती हैं, मां के भर्ती होने के दूसरे दिन सैनिटाइज़ेशन के लिए और हम सभी की मेडिकल जांच करने के लिए एक मेडिकल टीम हमारे घर आई। उस समय मेरे पिता ने कहा कि उन्हें बेचैनी और थकान महसूस हो रही है, वो शायद मां की तबीयत की वजह से हो सकती है। लेकिन टीम उनके पिता को भी गांधीनगर के एक सरकारी अस्पताल ले गई और 17 जून को उन्हें एक कोविड-19 वार्ड में भर्ती कर दिया गया। 

दोनों वीडियो कॉल कर घर ले जाने को कहते 

वो कहती हैं कि परिवार के किसी भी सदस्य को उनसे मिलने की इजाजत नहीं थी। मुझे याद है कि वो दोनों अस्पताल से हमें वीडियो कॉल करते और हमसे कहते कि हम उन्हें घर ले आएं। अब इस बारे में सोच-सोच कर मैं सो नहीं पाती हूं।

हम अपने मां-बाप को करीब से देख भी न पाए

वह कहती हैं,  21 जून को मेरी मां की मौत हो गई। उसके बाद 23 जून को मेरे पिता चल बसे। हमारा घर ही उजड़ गया। हम उन्हें करीब से देख तक नहीं पाए। इस बात का मलाल ताउम्र रहेगा। यह सोच-सोचकर रातभर नींद नहीं आती। 

ऐसा लगा जैसे हम अछूत हो गए

मां-बाप की मौत के बाद भी तेजल और उनकी बहन पूनम की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। उन्हें इससे भी बड़ा सदमा तब लगा जब कोई उन्हें सांत्वना देने तक नहीं आया। तेजल ने कहा, जैसे ही हमारे घर को कोविड-19 संक्रमित घोषित कर दिया गया, समाज में सभी हमसे दूर हो गए। मोहल्ले के लोग हमसे दूरी मेन्टेन करते, न कोई दोस्त, न कोई रिश्तेदार, यहां तक कि हमारे पड़ोसियों ने भी हमसे बात करना बंद कर दिया। हम एक तरह से अछूत बन गए थे। हिंदू मान्यताओं के अनुसार परिवार में किसी की मौत होने पर घर में बारह दिनों तक चूल्हा नहीं जलता लेकिन इन बारह दिनों के दौरान तेजल और उनकी बहन को कहीं से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। कुछ दिनों बाद जब होश संभाला तो उन्होंने देखा कि उनके माता-पिता के गहने गायब थे। उनके पिता की अंगूठी और सोने की चेन, मां की चूड़ियां गायब थीं।

गहनों का ख्याल रखते थे माता-पिता
 तेजल कहती हैं कि पिता जी को उनके ससुर यानि नाना जी ने उपहार में अंगूठी दी थी, जिसको वो कभी नहीं उतारते थे। वो कहती हैं, शादी की 25वीं सालगिरह पर मेरे पिता ने मां को सोने की एक चेन और चांदी की चूड़ी दी थी जो मां ने कभी नहीं उतारी। इन गहनों की कीमत हम जानते हैं। हमारे लिए वो हमारे माता-पिता की ये आखिरी निशानी हैं। तेजल का आरोप है कि जब उन्होंने अस्पताल के कर्मचारियों से अपने माता-पिता के गहने मांगे तो उन्होंने उनके साथ गलत व्यवहार किया। वो कहती हैं, दो महीने बीत गए हैं, इसलिए हमारे पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। अब मैंने न्याय की उम्मीद में जिला कलेक्टर से मुलाकात की और उनकी मदद मांगी है।

आरोपों को अस्पताल ने किया खारिज

गांधीनगर के सिविल अस्पताल की रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर सुधा शर्मा के अनुसार दोनों मरीजों को स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं थीं। जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था तभी से उन्हें हेल्थ कॉम्प्लिकेशन्स थे। दोनों का इलाज प्रोटोकॉल के तहत ही किया गया और इलाज के दौरान कर्मचारियों ने उनका पूरा ध्यान रखा। हम इस संबंध में जिला कलेक्टर को रिपोर्ट सौंपेंगे। हमारे पास परिजनों को गहने सौंपे जाने की रसीद समेत सभी संबधित दस्तावेज हैं। हालांकि तेजल कहती हैं कि वो आखिरी सांस तक ये लड़ाई जारी रखेंगी। जरूरत पड़ी तो मैं अस्पताल के सामने धरने पर बैठूंगी और जरूरत हुई तो भूख हड़ताल भी करूंगी। जब तक मुझे मेरे माता-पिता के गहने नहीं मिल जाते, मैं शांत नहीं बैठूंगी।