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मायका पक्ष को संपत्ति दे सकती है महिला, उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Published - Thu 25, Feb 2021

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि मायका पक्ष अजनबी नहीं है और वे महिला के परिवार के माने जाएंगे....

supreme court

संपत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हिंदू विधवा के पिता की ओर से आए लोग "अजनबी" नहीं माने जा सकते हैं और हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकारी हो सकते हैं। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने इस अधिनियम की धारा 15 (1) (डी) की व्याख्या करते हुए कहा कि महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को महिला की संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया गया है। बेंच ने अपने फैसले में कहा, "महिला के पिता की ओर से आए रिश्तेदार अजनबी नहीं हैं, वे भी परिवार का हिस्सा हैं। कानून में आए शब्द परिवार का संकीर्ण मतलब नहीं निकाला जा सकता। इसे विस्तार के साथ देखना होगा, जिसमें हिंदू महिला के रिश्तेदार भी शामिल होंगे। महिला के इस फैसले को लेकर उसके देवर के बच्चों ने अदालत में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को सही माना है और दोनों अदालतों ने इसी प्रावधान के तहत फैसला सुनाया।

क्या कहती है धारा 15
धारा 15 (1)(डी) कहती है कि अगर किसी महिला की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हुई तो उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार धारा 16 के मुताबिक तय होगा। इसमें पहला हक महिला के बेटे और बेटी का होगा, इसके बाद पति के रिश्तेदारों का होगा, इसके बाद महिला के माता-पिता का होगा, इसके बाद महिला के पिता के रिश्तेदारों का होगा और आखिरी में महिला की मां के रिश्तेदारों का होगा।

महिला ने सुसराल से मिली संपत्ति अपने भाई के बच्चों के नाम कर दी
महिला ने पारिवारिक समझौते के तहत अपने भाई के बेटों के नाम अपने हिस्से की जमीन कर दी थी। इस बात का विरोध महिला के देवर के बच्चों ने किया। देवर के बच्चों की तरफ से दायर याचिका में इस समझौते के फैसले को रद्द करने की अपील की गई थी।

क्या है मामला
क्यों चाची के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे भतीजे

गुड़गांव के बाजिदपुर तहसील के गढ़ी गांव का है। यहां गांव में बदलू के पास खेती की जमीन थी। बदलू की बाली राम और शेर सिंह दो संतानें थीं। 1953 में शेर सिंह की मौत हो गई। उसका कोई बच्चा नहीं था। शेर सिंह की विधवा जगनो ने अपने हिस्से की जमीन अपने भाई के बेटों के नाम कर दी। लेकिन महिला के पति के भाई यानी देवर के बेटों ने इसका विरोध किया और हाईकोर्ट में केस फाइल कर चुनौती दी। 19 अगस्त 1991 में हाई कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद महिला के देवर के बच्चों ने फैसले का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट  का दरवाजा खटखटाया था। महिला के पति के भाई के बेटों ने दलील दी थी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती है। देवर के बच्चों की तरफ से दायर याचिका में इस समझौते के फैसले को रद्द करने की अपील की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को सही माना है। उन्होंने कहा है कि दोनों अदालतों ने इसी प्रावधान के तहत फैसला सुनाया है।