मध्य प्रदेश के धार की एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री ने अपने कठिन परिश्रम के चलते पूरे गांव की सोच बदल दी।
नई दिल्ली। गांव-देहात में आज भी प्रसव को घर में कराना ही उचित समझा जाता है। हालांकि अस्पताल में प्रसव के कई सुरक्षित तरीके मौजूद हैं और सरकार इस दिशा में कई अभियान भी चला रही है, लेकिन जानकारी के आभाव और अशिक्षा के कारण आज भी गांव-देहात के क्षेत्रों में प्रसव घर में ही कराना उचित समझा जाता है। मध्य प्रदेश के धार में भी कुछ ऐसा ही चलन था, लेकिन यहां की एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री ने अपने कठिन परिश्रम और लगन के दम पर यहां के लोगों की सोच बदलने को मजबूर कर दिया। 22 साल से आंगनबाड़ी कार्यकत्री के रूप में काम कर रहीं राजुबाई की मेहनत का ही परिणाम है कि आज यहां के लोग प्रसव के लिए अस्पताल का रुख करते हैं।
40 साल की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता राजूबाई देलमी में 158 परिवार की जिम्मेदारी संभालती है। उनका सफर 1998 में शुरू हुआ, जब वो आंगनबाड़ी कार्यकत्री बनीं। शुरुआत में जब वो महिलाओं का गर्भावस्था और प्रसव के बारे में जानकारी देतीं, तो उन्हें नजरअंदाज किया जाता। राजुबाई समझ गईं कि प्रारम्भ में घर पर प्रसव को लेकर समझाना मुश्किल है। विशेष रूप से घर की बुजुर्ग महिलाएं को। उनकी सोच को बदलना पत्थर पर लकीर खींचने के समान है। लेकिन राजुबाई ने हार नहीं मानी। करीब पांच साल तक अपनी टीम के साथ घर-घर जाकर महिलाओं को समझाया, इसके बाद धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी। 1998-99 की बात करें तो राजूबाई के इलाके में 39 प्रसव घर पर हुए थे। जबकि एक प्रसव अस्पताल में करवाया गया था। 2014 के बाद उनके इलाके में एक भी प्रसव घर नहीं हुआ है। राजूबाई का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की सोच बदलने में काफी दिक्कते आती है। उनके साथ जुड़ना होता है। उनकी मालवी भाषा में संवाद करते हैं। उससे उन्हें अपनापन लगता है और वे हमारी बात मानती हैं। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि राजूबाई का दिमाग हार्ड डिस्क की तरह है। वह कुपोषित बच्चों के नाम के साथ उनके जन्म समेत अन्य डाटा मुंह जुबानी याद रखती हैं। राजूबाई ने बताया कि हम कुपोषण और टीकाकरण को लेकर शत-प्रतिशत रिजल्ट देने का काम करते हैं।
लावारिस नवजातों के लिए भी करती हैं काम
राजुबाई ने जिला अस्पताल के एसएनसीयू में कई लावारिस नवजात बच्चों भर्ती करवाया जाता है। वह लावारिस नवजात को अपने बच्चों की तरह देखभाल से लेकर उन्हें लाड़-दुलार करती हैं। वे कहती हैं कि ये बच्चे हमारे लिए परिवार का हिस्सा होते हैं। जन्म के पश्चात् बच्चों को फेंकने में उस बच्चे का क्या कसूर है। उनकी इस सोच ने कई बच्चो को नया जीवन प्रदान किया हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.