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घरेलू हिंसा के खिलाफ

Published - Mon 29, Apr 2019

भारत में सभ्यता, संस्कृति, संस्कार सब हैं, लेकिन उसे बाद भी 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं। कई बार तो समय के साथ समस्या खुद सुलझ जाती है, लेकिन कई बार शादीशुदा महिलाओं का जीवन नरक हो जाता है। उन्हें दहेज के नाम पर या अन्य किसी कारण से शारीरिक और मानसिक हिंसा झेलती होती है। जानकारी के आभाव में वह लाचार होकर शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती। या तो आजीवन वह इस दंश को झेलती रहती है या उसे मार दिया जाता है। वैवाहिक जीवन में जब समस्या बढ़ने लगे, तो उसे झेलने की बजाय, आगे बढ़िए आवाज उठाइए। कानून आपके साथ है। 

घरेलू हिंसा

घरेलू हिंसा पर घबराना नहीं 

घरेलू हिंसा का मतलब घर के भीतर ऐसे लोगों द्वारा महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार की शारीरिक, यौन, भावनात्‍मक, आर्थिक हिंसा करना है, जिनका महिला के साथ पारिवारिक संबंध हो। वह पति, सास, ससुर, जेठ या अपने मातृ पक्ष का कोई सदस्य भी हो सकता है।  


-कानून कहता है कि घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम में महिला के सरंक्षण का आदेश, आवास के आदेश, बच्चों की अभिरक्षा, आर्थिक राहत और क्षतिपूर्ति दिलाई जाती है। 


-अधिनियम के अंतर्गत, संरक्षण आदेश का उल्‍लंघन एक वर्ष तक के कारावास अथवा 20,000/-रुपये तक के जुर्माने अथवा दोनों की सजा मिल सकती है।

- घरेलू हिंसा में महिला के साथ जानबूझकर किया ऐसा व्यवहार जिसमें महिला को गंभीर चोट पहुंचे, वह आंशिक या पूर्ण रूप से विकलांग हो जाए, उसमें आत्महत्या की प्रवृति पैदा हो, कोई गलत मांग मनवाने के लिए उत्पीड़न किया जा रहा हो आदि आते हैं। 


-भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए पति अथवा उसके सगे-संबंधियों द्वारा निर्दयता से संरक्षण प्रदान करती है । निर्दयता के लिए 3 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है ।